भक्ति श्रद्धा,व्रत के साथ स्नान वगैरह करके देव-दर्शन के बाद खाना
एक ज़माना; वह तो चला गया'
यातायात की तरक्की ,भोजनालय के स्वादिष्ट भोजन ,
ट्रेवल एजेंसी के भोजन वर्णन आदि
पहले भोजन ,फिर दर्शन की चाह बढ़ने लगी है.
फिर वाणिज्य की समस्या; भक्ति कई परिवारों को खाना खिला रही है;
जो भक्त आते हैं ,दुगुना ,तिगुना मूल्य बताकर
लूटना तो साधारण बात बन गयी हैं;
मंदिर के गोपुर ,जो मेरे बचपन में दूर से दीख पड़ते थे ,
अब उन्हें गगन चुम्बी इमारतें छिपा रही हैं;
सुन्दर शिल्प-कला के मंडपों को दुकानें छिपाकर सुन्दर दुकानें बन रही हैं.
भक्तों के ईश्वर नाम की गूंजें
अब आइये मिठाई खाइए ,कपडे लीजिये .मालाएं लीजिये
और ऐसी आवाजें ईश्वर के भजन की मधुर ध्वनियों को
मंद कर रही है;
भक्ति का बाज़ार-खुला सा लगता है.
कब क्या होगा पता नहीं ,भक्तों की भीड़ एक ओर ,
भक्तों की भक्ति की कमी दूसरी ओर.
आगे भक्ति रस ,वाणिज्य रस की रूचि के आगे
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