दो ध्रुव
श्री कृपानंदवारियार तमिल प्रान्त के कार्तिकेय के भक्त थे। वे तमिल और संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे।
इस निबन्ध में वे संसार के लोगों के दो तरह बताते हैं।
संसार में कितने ही किस्म के लोग रहते हैं। पेड़ -पौधों में कितने प्रकार के हैं? धान कितने प्रकार के हैं?फूल में गुलाब में कितने रंग है? बकरी,हिरन कितने प्रकार के हैं? वैसे ही मनुष्यों में कितने प्रकार के लोग हैं?
देश के आधार पर चीनी,जापानी,रूसी,भारतीय,आदि;रंग के आधार पर काले ,गोर ,उनमें भी कितने फरक है?
ज्ञान के आधार पर ज्ञानी ,बेवकूफ,अच्छे -बुरे,पवित्र-अपवित्र,चोर-डाकू,जेब-खतरे साधू-बदमाश आदि।
आकार के आधार पर लम्बे-नाटे ,बौने आदि।
वैसी ही मनुष्य को मार्ग दिखाने और सुमार्ग पर चलने "भक्ति-मार्ग " प्रधान है;उसमें भी कितने भेद हैं?
योग मार्ग,विधि-मार्ग,दास मार्ग,सखा-मार्ग,सत्मार्ग।
एक शहर जाने कई प्रकार के यातायात के साधन होते हैं।रेल,विमान,पैदल,बैलगाड़ी ,बस,कार आदि।वैसे ही भक्ति मार्ग के कई साधन हैं।अंत में मिलता है "मुक्ति".
जो मुक्ति पाते हैं,उनमें भी दो तरह के हैं;एक जीव-मुक्ति;दूसरा अवतार पुरुष;
मुक्त का मतलब है छूटना; किससे छूट ? लौकिक बंधन से छूट;सांसारिक जीवन से सांसारिक पाश से छूट; गुरु मंत्र और उपदेश जो ज्ञान मार्ग दिखाता हैं,उससे बंधन से छूट;
भगवान कार्तिक ने अपने उपदेश अपने पिता शिव को दिया था।
भगवान कार्तिक का उपदेश क्रोध मिटाने वाले शक्ति शूल है;
सांसारिक बंधन से जो मुक्ति पाते हैं वे जीवन मुक्त है;
अवतार पुरुष
अवतार पुरुष अपने ब्रह्मानंद को दूसरों को भी देने-दिलाने-दिलवाने अवतार लेते हैं;
एक धनी गरीबों के लिए फलों का उद्यान लगाया;वह अपने सुख दूसरों को भी देना चाहता था, उस उद्यान को न झाँकने वाले भी थे; अमीर ने उद्यान के चारों ओर सुरक्षा के लिए तीस फुट की दीवार बनवाई; कुछ लोगों ने या अफवाहें फैलाई कि उद्यान में भूत हैं;कुछ लोग दीवार पर न चढ़ सकने के कारण इन अफवाहों को और बल दिया; ऐसे ही अवतार पुरुष भक्तों को मार्ग दिखाते है।
उस उद्यान का सदुपयोग करनेवाले भी थे; एक साहस के साथ उद्यान में कूदकर खूब फल खाए;सब को बुलाया।वैसे ही ईश्वर के आनंद प्राप्त अवतार पुरुष दूसरों को भी बुलाते हैं।
तिरुम्मूलर एक तमिल संत कवि ने अपने ग्रन्थ में लिखा है--
एक ही ईश्वर है जग को;एक ही जान है प्राण-प्रद; वह है नमः शिवाय नामक फल;स्मरण करो;वह अति मधुर;
सुख प्रद;
यह शरीर शाश्वत नहीं है;यह कब गिरेगा पता नहीं;जग की भूख छोड़ ,दुख भूल,आनंद पाइये ;ईश्वर नाम स्मरण से --यही अवतार पुरुषों का मार्ग;
श्री कृपानंदवारियार तमिल प्रान्त के कार्तिकेय के भक्त थे। वे तमिल और संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे।
इस निबन्ध में वे संसार के लोगों के दो तरह बताते हैं।
संसार में कितने ही किस्म के लोग रहते हैं। पेड़ -पौधों में कितने प्रकार के हैं? धान कितने प्रकार के हैं?फूल में गुलाब में कितने रंग है? बकरी,हिरन कितने प्रकार के हैं? वैसे ही मनुष्यों में कितने प्रकार के लोग हैं?
देश के आधार पर चीनी,जापानी,रूसी,भारतीय,आदि;रंग के आधार पर काले ,गोर ,उनमें भी कितने फरक है?
ज्ञान के आधार पर ज्ञानी ,बेवकूफ,अच्छे -बुरे,पवित्र-अपवित्र,चोर-डाकू,जेब-खतरे साधू-बदमाश आदि।
आकार के आधार पर लम्बे-नाटे ,बौने आदि।
वैसी ही मनुष्य को मार्ग दिखाने और सुमार्ग पर चलने "भक्ति-मार्ग " प्रधान है;उसमें भी कितने भेद हैं?
योग मार्ग,विधि-मार्ग,दास मार्ग,सखा-मार्ग,सत्मार्ग।
एक शहर जाने कई प्रकार के यातायात के साधन होते हैं।रेल,विमान,पैदल,बैलगाड़ी ,बस,कार आदि।वैसे ही भक्ति मार्ग के कई साधन हैं।अंत में मिलता है "मुक्ति".
जो मुक्ति पाते हैं,उनमें भी दो तरह के हैं;एक जीव-मुक्ति;दूसरा अवतार पुरुष;
मुक्त का मतलब है छूटना; किससे छूट ? लौकिक बंधन से छूट;सांसारिक जीवन से सांसारिक पाश से छूट; गुरु मंत्र और उपदेश जो ज्ञान मार्ग दिखाता हैं,उससे बंधन से छूट;
भगवान कार्तिक ने अपने उपदेश अपने पिता शिव को दिया था।
भगवान कार्तिक का उपदेश क्रोध मिटाने वाले शक्ति शूल है;
सांसारिक बंधन से जो मुक्ति पाते हैं वे जीवन मुक्त है;
अवतार पुरुष
अवतार पुरुष अपने ब्रह्मानंद को दूसरों को भी देने-दिलाने-दिलवाने अवतार लेते हैं;
एक धनी गरीबों के लिए फलों का उद्यान लगाया;वह अपने सुख दूसरों को भी देना चाहता था, उस उद्यान को न झाँकने वाले भी थे; अमीर ने उद्यान के चारों ओर सुरक्षा के लिए तीस फुट की दीवार बनवाई; कुछ लोगों ने या अफवाहें फैलाई कि उद्यान में भूत हैं;कुछ लोग दीवार पर न चढ़ सकने के कारण इन अफवाहों को और बल दिया; ऐसे ही अवतार पुरुष भक्तों को मार्ग दिखाते है।
उस उद्यान का सदुपयोग करनेवाले भी थे; एक साहस के साथ उद्यान में कूदकर खूब फल खाए;सब को बुलाया।वैसे ही ईश्वर के आनंद प्राप्त अवतार पुरुष दूसरों को भी बुलाते हैं।
तिरुम्मूलर एक तमिल संत कवि ने अपने ग्रन्थ में लिखा है--
एक ही ईश्वर है जग को;एक ही जान है प्राण-प्रद; वह है नमः शिवाय नामक फल;स्मरण करो;वह अति मधुर;
सुख प्रद;
यह शरीर शाश्वत नहीं है;यह कब गिरेगा पता नहीं;जग की भूख छोड़ ,दुख भूल,आनंद पाइये ;ईश्वर नाम स्मरण से --यही अवतार पुरुषों का मार्ग;