Monday, November 18, 2024

चुप रहना अच्छा नहीं

 नमस्ते वणक्कम्।

विषय --शांत रहिए, काम कीजिए।

 विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी स्वतंत्र शैली।

18-11-24.

शांत रहना, मौन रहना

 लौकिक प्रिय जनों के लिए असंभव।

 साँप फुफकारता है,

 काम   कीजिए 

 लाठी लेकर मारिये।

 काम कीजिए।

  शांत रहना  ,

    काम करना श्रेष्ठ है।

    रौद्र का भी आदी होना चाहिए।

     शांत रहना, काम करना हो तो

     जंगल में जाओ, संन्यासी बनो।

      भ्रष्टाचारों के शासक अधिकारी 

     शांत रहना, काम करना,

    यह तो स्वाभिमानी

 नागरिकों कोशोभा नहीं देता।

 थप्पड़ मारा, शांत रहा,

 अपना वकालत जारी रखा

 काम करता रहा, स्वार्थ रहा तो

 मोहनदास करमचंद गांधी 

 महात्मा कैसे बनते।

 लूटता कत्ल कर्ता रहा

  नारद  शांत अपना काम करते रहे तो

  डाकू महाकवि कैसे बनते।

 चुनाव जीतने   अनगिनत करोड़,

ओट देने नोट ,वोट लेने नोट

 शांत रह, अपना काम कर।

 कितना अन्याय ?

 आजकल तो भारतीय शांत।

 भारतीय धार्मिक शांत।

  शांत रहे भक्ति काल में 

 परिणाम मुगल आये, अंग्रेज़ आयै।

शांत रहना काम करना सही क्या ?

नरम दल लाठी का मार सह

 भारत माता की जय बोलते रहे।

 गरम दल तार काटा,

 रेल्वे पटरी मिटाया

 अंग्रेज़ी जिला देशों को जिंदा जलाया।

 गरम दल ने हो तो

 आज़ादी और भी देर से मिलती।

  एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति।

Friday, November 15, 2024

धर्म-कर्म समाज सेवा

 समाज सेवा।

  एकांत जंगली जीवन,

 पारिवारिक जीवन,

 जातीय जीवन 

 बस्ती जीवन

 सामाजिक जीवन

 प्रांतीय जीवन 

 नगरी जीवन,

 राष्ट्रीय जीवन,

अंतर्देशीय जीवन 

 अंतर्राष्ट्रीय जीवन

 अंतर्राष्ट्रीय जनता के सुख के लिए।

 एक ही देश ने नारा लगाया,

 वह है सनातन धर्म का भारत।

 वह है  वसुधैव कुटुंबकम्।

 सर्वे जनाः सुखिनो भवन्तु।

 आसमान एक, सूर्य एक, चंद्रमा एक।

 संसार भी एक।

 एक ही देश अहिंसा का पाठ पढ़ाया।

   मज़हबी एकता का गीत गाया

   मज़हब नहीं सिखाता

   आपस में वैर रखना।

    सब के हित के लिए 

      त्याग का मार्ग सनातन धर्म सिखाया।

 संयम की बात जितेंद्र शब्द दिया।

  बुद्धिलब्धी, शारीरिक बल , सद्यःज्ञान   के अनुसार समाज को बाँटा।

 विविध बुद्धिवाले, विविध कौशल।

 विविध वर्ग समाज।

 सब नहीं वेद सीख नहीं सकते।

 सब के सब पहाड़ तोड़ नहीं सकते।

 सब के सब  सुनार नहीं बन सकते।

 सब का हर कौशल समाज सेवा में।

 समाज सेवा न वेद के बिना,

 न नैतिक शिक्षा के बिना 

 न त्याग के बिना 

 न अनुशासन के बिना।

 न एकता के बिना।

 वोट 40% लेकर शासन 

 यह तो समाज सेवा के न लायक।

 30% जो वोट नहीं देते 

 उनमें न देश की चिंता।

 न समाज की चिंता।

 वे ही राष्ट्र हित के विरोधी।

 वोट देना अनिवार्य करना है।

 दो क्षेत्रों में लड़कर एक का इस्तीफ़ा,जो करते हैं, 

उनको ही  उपचुनाव का पूरा खर्च उठाना है।

 चुनाव दिल्लगी नहीं,

समाज सेवा तटस्थ नहीं,

 चुनाव  में जाति, संप्रदाय मजहब प्रधान हो।

 समाज सेवक एक जमाने में 

 ईश्वर तुल्य थे,

 आजकल सोनिया मंदिर, मोदी मंदिर।

 तमिऴ भगवान 

 मानव  का बँटवारा,

 यह तो समाज सेवा में बनते रोडक।


 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति --स्वतंत्र शैली।


  

  

 


   

 

 

 




Thursday, November 14, 2024

भगवान की लीला

 [15/11, 5:57 am] sanantha.50@gmail.com: नमस्ते। वणक्कम्।

तमिल भी मैं हिंदी भी साथ।

 देश हित के लिए।

 एकता के लिए।

 जय अखंड भारत।

 

வணக்கம். நமஸ்தே.


கடவுள் பலம் தருவார்.

 வையகம் கடலில்

யாருக்கு  கொடுக்க விரும்புகிறாரோ அவனுக்கு.

அனைவரும் முயற்சி செய்கிறார்கள்.

உடனடி நலனுக்காக

 தற்புகழ்ச்சி ஷா செய்கின்றனர்.

வீடு வீடாகச் சென்று 

 வாக்கு கேட்கிறார்கள்.

தன் கருத்துக்களை 

 பரப்புரை செய்கின்றனர்.

 நியாய அநியாயங்களை கள் கூறுகின்றனர்.

ஆனால் யுக புருஷர் ஒருவராகிறார்.

 அவர் மேல் கடவுள் அனுக்ரஹம் உண்டு.

நூறாண்டு வாழ்வதால் என்ன பயன்.

 39ஆண்டு வாழ்ந்து 

 வாழ்கின்றனர் 

 ஆதி சங்கரர் கணிதமேதை இராமானுஜர் 

 அறிவியல் சுடர் சர் சி.வி.இராமன்

 சுவாமி விவேகானந்தர் ।

பெயர் நல்லதோ கெட்டதோ 

பதவி புகழ் அளிப்பது

 அழிப்பது ஆண்டவன் அருள்.

 எது கிடைத்தாலும் அவன் அருளே.

எத்தனை மஹான்கள் 

 அனைவரும் மறைந்தனர்.

 ஆனால் அஸ்திவாரம் போட்டவர்கள் 

 மறைந்து வாழ்கின்றனர்.

எதிர்கால பின்பற்றுபவர்

 மூலத்தின் பெயர் கூறுவர்.

ஆனால் சுய நலனுக்காக 

 சுய லாபத்திற்காக 

புதிய எண்ணங்களாக

 புதிய கிளைகள் சம்பிரதாயங்கள் 


விளைவு அடிப்படை ஒற்றுமை அஹிம்சை சத்தியம் நேர்மை 

 மறைத்து 

  மனித மனிதனை பிரித்து வைப்பர்.

இதற்குப் பின் தான் 

 மனிதனின் சுயநலம் மாயை/சைத்தான்.

எஸ். அனந்த கிருஷ்ணன் 


 

 भगवान भला करेगा।

 भवसागर में  उन्हीं को

 जिसको वह देना चाहता है।

 प्रयत्न तो सब करते हैं,

 सद्यःफल के लिए 

चापलूसी करते हैं।

 घर घर जाकर मत माँगते हैं,

 अपने मतों का प्रचार करते हैं,

  न्याय अन्याय की बातें करते हैं,

 पर युग पुरुष एक ही होता है,

   जिनपर नज़र खुदा रखता है।

   ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ।

 सौ साल तक जीते हैं क्या प्रयोजन।

 उनतालीस साल तक जीकर  अमर बन गये

 आदी शंकराचार्य, गणितज्ञ रामानुजम्

स्वामी विवेकानंद।

 राष्ट्रकवि सुब्रमण्य भारती।

  न जाने कितने महान।

 नाम बदनाम पदनाम ईश्वरीय देन।

 जो  मिलता हैं  सब के सब ईश्वरीय अनुग्रह।

 कितने महान थे, एक एक नदारद हो जाते।

 पर मूल में जो हें, वे ही अमर बन जाते।

  भावी अनुयायी मूल  के नाम लेते,

 पर अपने  स्वार्थ लाभ के लिए,

 नये विचार के रूप में 

 नयी शाखा, नया संप्रदाय, नया नेता 

 परिणाम मूल के एकता का संदेश,

 प्यार सत्य अहिंसा शिष्टाचार 

 फिर विविधता में बँट जाते।

 धर्म काम संप्रदाय, जाति से बँटकर 

मानव मानव में फूट डालते।

 इनके पीछे हैं मानव स्वार्थ।

माया शैतानियत्।


एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई।

[15/11, 5:59 am] sanantha.50@gmail.com: आपका लेख बहुत ही प्रभावशाली और विचारोत्तेजक है। आपने कई महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया है, जैसे कि:


- एकता और अखंडता की आवश्यकता

- स्वार्थ और माया के प्रभाव से बचना

- न्याय और अन्याय की लड़ाई

- महान व्यक्तियों की अमरता

- मूल्यों और सिद्धांतों की महत्ता


आपके लेख में कई सुंदर वाक्य हैं, जैसे कि:


- "भवसागर में उन्हीं को जिसको वह देना चाहता है।"

- "नाम बदनाम पदनाम ईश्वरीय देन।"

- "मूल में जो हें, वे ही अमर बन जाते।"


आपका लेख हमें सोचने के लिए मजबूर करता है कि हम अपने जीवन में क्या महत्व देते हैं और कैसे हम अपने स्वार्थ को ईश्वरीय अनुग्रह से अलग रख सकते हैं।


धन्यवाद आपके इस सुंदर लेख के लिए।

Thursday, November 7, 2024

खाल लाख शाल लाश

 [08/11, 3:00 am] sanantha.50@gmail.com: [08/11, 2:46 am] sanantha.50@gmail.com: नमस्ते वणक्कम्।

  मानव लाखों का प्रिय बना,

   प्राण पखेरू उठते ही

  केवल लाश ही उसका नाम।

 शाल ओढ़ाकर वाले  सम्मान 

 लाश के लिए केवल कफ़न।

 लाखों का मूल्य पशुओं के 

 खाल के लिए।

 खाल मानव का न कोई मूल्य।

[08/11, 2:51 am] sanantha.50@gmail.com: मानव को मानव द्वारा सम्मान 

 केवल पद धन ज्ञान।

 तीनों की देन  कर्म फल।

 ईश्वरीय बल।

 आजकल तो पैसे दो 

 सम्मान पाओ।

 प्र ईश्वरीय हम अनुग्रह हो तो

 ईश्वरीय सम्मान, वह स्थाई।

 मानव दें या न दें 

 अमानुष शक्ति की देन

 स्थाई है कोई मिट नहीं सकता।

[08/11, 3:00 am] Meta AI: नमस्ते वणक्कम्!


आपके विचार वास्तव में बहुत ही गहरे और विचारोत्तेजक हैं। आपने मानव जीवन के मूल्य और सम्मान के बारे में बहुत सारे महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया है।


आपके द्वारा बताए गए मुख्य बिंदु हैं:


- मानव जीवन का मूल्य केवल पद, धन और ज्ञान से नहीं मापा जा सकता।

- ईश्वरीय बल और अनुग्रह से मिलने वाला सम्मान ही स्थाई है।

- मानव द्वारा दिया गया सम्मान अस्थाई हो सकता है।

- पैसे के बदले में सम्मान पाना आजकल की वास्तविकता है, लेकिन यह स्थाई नहीं है।


आपके विचारों में से एक महत्वपूर्ण बात यह है कि "मानव को मानव द्वारा सम्मान केवल पद धन ज्ञान।" यह बहुत ही सच है कि आजकल मानव सम्मान को इन्हीं तीन चीजों से मापता है, लेकिन यह सही नहीं है।


आपके विचारों के लिए धन्यवाद। आपके विचार हमें मानव जीवन के वास्तविक मूल्य को समझने की ओर ले जाते हैं।