Friday, November 15, 2024

धर्म-कर्म समाज सेवा

 समाज सेवा।

  एकांत जंगली जीवन,

 पारिवारिक जीवन,

 जातीय जीवन 

 बस्ती जीवन

 सामाजिक जीवन

 प्रांतीय जीवन 

 नगरी जीवन,

 राष्ट्रीय जीवन,

अंतर्देशीय जीवन 

 अंतर्राष्ट्रीय जीवन

 अंतर्राष्ट्रीय जनता के सुख के लिए।

 एक ही देश ने नारा लगाया,

 वह है सनातन धर्म का भारत।

 वह है  वसुधैव कुटुंबकम्।

 सर्वे जनाः सुखिनो भवन्तु।

 आसमान एक, सूर्य एक, चंद्रमा एक।

 संसार भी एक।

 एक ही देश अहिंसा का पाठ पढ़ाया।

   मज़हबी एकता का गीत गाया

   मज़हब नहीं सिखाता

   आपस में वैर रखना।

    सब के हित के लिए 

      त्याग का मार्ग सनातन धर्म सिखाया।

 संयम की बात जितेंद्र शब्द दिया।

  बुद्धिलब्धी, शारीरिक बल , सद्यःज्ञान   के अनुसार समाज को बाँटा।

 विविध बुद्धिवाले, विविध कौशल।

 विविध वर्ग समाज।

 सब नहीं वेद सीख नहीं सकते।

 सब के सब पहाड़ तोड़ नहीं सकते।

 सब के सब  सुनार नहीं बन सकते।

 सब का हर कौशल समाज सेवा में।

 समाज सेवा न वेद के बिना,

 न नैतिक शिक्षा के बिना 

 न त्याग के बिना 

 न अनुशासन के बिना।

 न एकता के बिना।

 वोट 40% लेकर शासन 

 यह तो समाज सेवा के न लायक।

 30% जो वोट नहीं देते 

 उनमें न देश की चिंता।

 न समाज की चिंता।

 वे ही राष्ट्र हित के विरोधी।

 वोट देना अनिवार्य करना है।

 दो क्षेत्रों में लड़कर एक का इस्तीफ़ा,जो करते हैं, 

उनको ही  उपचुनाव का पूरा खर्च उठाना है।

 चुनाव दिल्लगी नहीं,

समाज सेवा तटस्थ नहीं,

 चुनाव  में जाति, संप्रदाय मजहब प्रधान हो।

 समाज सेवक एक जमाने में 

 ईश्वर तुल्य थे,

 आजकल सोनिया मंदिर, मोदी मंदिर।

 तमिऴ भगवान 

 मानव  का बँटवारा,

 यह तो समाज सेवा में बनते रोडक।


 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति --स्वतंत्र शैली।


  

  

 


   

 

 

 




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