एस. अनंतकृष्णन.
अवकाश प्राप्त प्रधान अध्यापक,
A3, Archana Usha square,
4&5, Kubernagar 4th cross street,
Madippakkam,
Chennai–600091
Mobile no. 8610128658
तमिल साहित्य में मूलभूत विकास
बीज –माानव और ज्ञान, ईश्वर भक्ति,देश-भक्ति, मातृभाषा प्रेम, स्वतंत्रा प्रेम, अनुशासन,शासक का कर्तव्य, नागरिकों का कर्तव्य, प्रकृति चित्रण आदि बीज के आधार पर लेकर विचार करना.
सार– तमिल साहित्य अतिप्राचीन है। नीतिग्रंथों में तिरुक्कुरल,मूदुरै,विवेकचिंतामणि,प्राचीन ग्रंथ तोल्काप्पियम् , पुरनानूरु,आधुनिक काल में सुब्रहमणिय भारतियार, नामक्कल कवि रामलिंगम पिल्लै, कण्णदासन, आदि कवियों के ग्रंथों के आधार पर मूल भूत कौशल विकास को प्रमाण सहित दिया गया है।
मानव और ज्ञान—
महाकवि सुब्रह्मणिय भारतियार की एक ही कविता में मातृभाषा प्रेम,देशप्रेम, साहित्यप्रेम ,मानवप्रेम,प्राकृतिक वर्णन,वाणिज्य आदि कौशलों के जिक्र के साथ मूलभूत विकास का वर्णन सरल भाषा में लिखा है।
देखिएः-
चेंतमिल नाडेनुम पोतिनिले-इन्पत्तेन वंदु पायुतु कातिनिले,
एंगल तंदैयर नाडेन्र पेच्चिनिले-ओरु
शक्ति पिरक्कुतु मूच्चिनिले
वेदम् निरैंद तमिलनाडु- उयर
वीरम् चेरिंद तमिलनाडु - नल्ल
कादल पुरियुम अरंबैयर पोल-इलंग
कन्नियर चूल्चूल्न्त तमिलनाडु
काविरी,तेन पेण्णै,पालारू-तमिल
कंडतोर वैयै,पोरुणै नदी यन,
मेविय यारु पल वोडत् - तिरु
मेनि चेलित्त तमिलनाडु,
मुत्तमिल मामुनि नील वरैये -निन्रु
मोय्म्बुरक् काक्कुद् तमिलनाडु-
शेल्वम् एत्तनेयुंडु पुविमीते- अवै
यावुम् पडैत्त तमिलनाडु
नीलत्तिरैक्कडलोरत्तिले -
नित्तम् तवंचेय कुमरी एल्लै– वड
मालवन् कुन्रम् इवट्रिडैये–पुकल्
मंडिक्कि किडक्कु्म् तमिलनाडु
कल्वि सिरंद तमिलनाडु–पुकल्क
कंबन् पिरंद तमिलनाडु-नल्ल
पल् विदमान शास्त्रंगल् -मणम्
पारेंगुम् वीसुम् तमिलनाडु ,
वल्लुवन तन्नै उलकिनुक्के तदु
वान् पुकल् कोंड तमिलनाडु,
नेंचै अल्लुम् शिलप्पधिकारमेन्रोर
मणियारम् पडैत्त तमिलनाडु।
उपर्यक्त भारतियार गीत में प्रथम पंक्ति में देश-भक्ति है|
चेंतमिल् नाडु के कहते ही शहद -सा मिठास कानों में सुनाई पडता है।पितृ देश के कहते ही साँसों में एक शक्ति मिलती है ।
दूसरी पंक्ति में ज्ञान के बारे में वेदों से भरा देश है का जोश है।
तीसरी पंक्ति में देश की वीरता का उल्लेख है।
प्यार करनेवाली रंभा जैसे सुंदरियों से भरा देश है।
प्राकृतिक समृद्धि के लिए देश में बहनेवाली नदियों का उल्लेख हैं।
कावेरी,तेनपेण्णै,वैगै,ताम्रभरणि आदि नदियों से हरियाली से समृद्ध है देश का देह। भूमि पर की सभी प्रकार की संपत्तियाँ हमारे देश में हैं।
नील समुद्र तट पर कन्याकुमारी दक्षिण में, वह है नित्य तपोभूमि।
उत्तर में श्री वेंकटेश्वर मंदिर, तमिलनाडू का यशोगान कर रहा है।
देश शिक्षा क्षेत्र में श्रेष्ठ है,यहीं तमिल रामायण के कवि कंबर का जन्म हुआ। तमिल वेद के कवि तिरुवल्लुवर यहींं पैदा हुए।कवि इलंगवडिकल् कृत शिलप्पधिकारम् प्रसिद्ध हैं।
तमिल कवयित्री औवैयार गणेशजी से प्रार्थना करती है। वह न माँगती है धन दौलत। न माँगती सोना चाँदी।
वह गणेशजी से प्रार्थना करती है कि
“ पालुम्, तेलितेनुम,पाहुम् परुप्पुम इवै नान्गुम, नान् तरुवेन कोलंचेय,
तुंगक करि मुकत्तुत् तू मणिए,नी ऍनक्कु संघत्तमिल तीनों दीजिए।
उपर्युक्त कविता में गणपति से वर माँगती है कि गजवदन गणनायक! मैं दूध,शुद्ध शहद,ताड के फल से बने चक्कर,दाल सब मिलकर नैवैद्य चढाऊँगा। संघ की तीन तमिल भाषा १, सहज गद्य २. संगीत पद्य तमिल ३. नाटक तमिल देना।.
मातृभाषा तमिल के प्रति प्रेम की प्रेरणा देनेवाली कविता है।
औवैयार के जमाने में ही अणु विज्ञान का ज्ञान था । डेढ पंक्तियों के गहरे अर्थवाले तिरुक्कुरल के बारे में औवैयार कहती है कि “ अणुवैत्तुलैत्तु ऍलु कडलैप्पुकुत्ति कुरुकत्तरित्त कुरल् ।” अर्थात् तिरुक्कुरल ऐसे भावात्मक ग्रंथ है कि एक अणु को तोडकर सात समुद्र से भरा ग्रंथ है तिरुक्कुरल।
रोग संबंधि साहित्य —-
तिरुमंतिरम् –(श्रीमंत्र ४८१. दूसरा तंत्र -14.गर्भ क्रिया)--संघ काल के साहित्य में बच्चों की बुद्धि लब्धि के कारण बताते हुए
तिरुमंत्र में तिरुमूलर कहते हैं –
“ माता उदिरम् मलमिकिल मंदनाम् ,
माता उदिरम् चलमिकिल् मूँगयाम,
माता उदिरम् इरंडोटिक्किल कण्णिल्लै,
मादा उदरत्तिल् वैत्त कुलविक्के।
माता के पेट में मल् ज्यादा हो तो जन्म लेनेवाला बच्चा मंदबुद्धि का होगा।
माता के पेट में पेशाब ज़यादा होता तो पैदा होनेवाला बच्चा गूँगा होगा।
माता के पेट में दोनों मल और पेशाब ज्यादा हो तो बच्चा अंधा होगा।
तात्पर्य यह है कि माता से ही बच्चों को रोग होगा।
आजकल की शल्य चिकितसा में दूसरों के अंग रखकर जोडना प्रसिद्ध है। गुणनार्पतु (102) नामक ग्रंथ पांडिय राजा के बारे में,उनकी न्यायप्रियता की एक घटना का वर्णन किया है। उस जमाने में राजा लोग रात में नागरिकों के और नगर की स्थिति देखने घूमा करते थे।वैसे ही एक दिन नगर परिक्रमा करते समय राजा ने सुना है कि नगर में चोरों का भय है।कीरंदन नामक ब्राह्मण राजा का चेंकोल तेरी रक्षा करेगा।वह ब्राहमण किसी काम के लिए बाहर गया था। राजा नगर को घूमते समय एक दिन उस ब्राह्मण के घर में बोलने की आवाज़ सुनाई पडी। राजा ने ब्राहमण के घर के दरवाजे को खट खटाया। तब पता चला कि ब्राह्मण आ गया। राजा को भय था कि ब्राह्मण को अपनी पत्नी पर शक न हो। राजा ने उस गली के सभी घरों को खटखटाया। दूसरे दिन सब नागरिक राजा के दरबार में आये और कहा कि जिसने खटखाया, उसका हाथ काट देना चाहिए। न्याय प्रिय राजा ने खुद अपने हाथ काट लिया। सबको आश्चर्य हुआ और एक स्वर्ण हाथ ले आकर जोड दिया। इस घटना ई.सा. के पूर्व सन् 100 में हुई। शास्त्रीय तमिल साहित्य में इसका जिक्र है।
वह कविता इस प्रकार है—
नाडु वलंकोंडु पुकल नडुतल वेंडित्तन्
आडु मलैत्तडक्कै अरुत्तु मुरै चेय्त
पोर्कै नरुंतार्प पुनैतेर पांडियन
कोर्कैअम् पेरुंदुरै कुनितिरै तोकुत्त
विलंगु मुत्तुरैक्कुम् वेणपल्
पन्माण चायल परतवर् मकट्के।
आँखें तोडकर रखना:--
कण्णप्पन नामक एक शिव भक्त था। भगवान शिव ने उसकी भक्ति की जाँच करने एक आँख से रक्त बहाया। तब कण्णप्पन ने एक आँख तोडकर आँख में रखा, तब दूसरी आँख से रक्त बहा। दूसरी आँख को भी तोडकर रखने लगा। इस प्रकार तमिल के पेरिय पुराणम् में आँखोंके प्रत्यारोपन का जिक्र भी तमिल साहित्य में है।
तमिल कविता–पेरिय पुराणम् – 827. कण्णप्पन चरित्र
तमिल कविता :--
इतर्किनि ऍन कण् अंबाल इडंतपिन ऍंतैयार कण
अतर्कितु मरुंता्य्प पुण्णीर निर्कउम् अडुक्कुम् ऍन्रु
मतर्त्तु ऍलुम् उल्लत्तोडु मकिलन्तु मुन इरुंतु तंगण्
मुतर्चरम् अडुत्तु वांगी मुतलवरतम् कण्णिल अप्प.
इस कविता में कण्णप्र की सुदृढ भक्ति और ईश्वर के प्रति समर्पण भाव का सहज सरल भाव प्रकट होता है।
शिव लिंग का एक आँख से खून बहता है।वह सोचता है कि अपनी आँख को शर से निकालकर भगवान की आँख पर रखने से खून का बहना रुक जाएगा। इस प्रकार अंधे को दूसरों की आँखों में जुड सकने का कौशल भी साहितत्य में मिलते हैं।
पतिट्रुप्पत्तु ग्रंथ में काटे अंग को जोडने की शल्य चिकित्सा का वर्णन है।
तमिल साहित्य में शिक्षा का महत्व
परनानूरु (312) शिक्षा देना पिता का कर्तव्य बताया गया है।
ईन्रु पुरं तरुतल् एन्रलैक्कडने,सान्रोन आक्कुवतु तंदैक्कुक्कडने।
इसमें यह बात स्पष्ट है कि केवल शिक्षा शिक्षक द्वारा नहीं है, पिता के द्वारा भी ज्ञान देना आवश्यक है।
अतिवीरराम पांडियर के वेट्रि वेर्कै ३५ में भीख लेकर भी ज्ञानार्जन करने की नसीहतें मिलती हैं।
“कर्कै नन्रे कर्कै नन्रे,पिच्चै पुकिनुम् कर्कै नन्रे।”.(35)
त्रिकटुकम् मेें मानव जीवन सुखी से जीने का मार्ग दिखाया गया है।
तमिल ग्रंथ त्रिकटुकम है। इस ग्रंथ के कवि हैं चेरु अडुतोलनल्लादनार । त्रिकटुकम ्एक आयुरवेदिक दवा है।सोंट,काली मिर्च,
र्तिप्पिली आदि तीनों से बनातेहैं। वह स्वास्थ्य प्रद है।
वैसे ही हर पद्य में तीन गुणप्रद मानव कल्याणकारी बातें
होने से इस ग्रंथ का नाम त्रिकटुकम रखा है।
அருந்ததிக் கற்பினார் தோளும், திருந்திய
தொல் குடியில் மாண்டார் தொடர்ச்சியும்,
சொல்லின்
அரில் அகற்றும் கேள்வியார் நட்பும், - இம்
மூன்றும்
திரிகடுகம் போலும் மருந்து. . . . .[01]
अरुंदति जैसे पति व्रता नारी की मित्रता ,
भद्रकाल के सज्जनों की मित्रता,
शब्दों की भूलों को को सही करने की क्षमता रहनेवालोंकी
दोस्ती आदि तीनों लाभप्रद होती हैं।
++±+++++++++++++++++
தன்குணம் குன்றாத் தகைமையும் தாவில்சீர்
இன்குணத்தார் ஏவினசெய்தலும் -
நன்குணர்வின் நான்
மறையாளர் வழிச்செலவும்
இம்மூன்றும்
மென்முறையாளர் தொழில். . . . .[02]
अपनेआदर्श गुणों के द्वारा अपने कुल गौरव के रक्षक,
सज्जनों की आज्ञा मानकर काम करनेके गुणी
वेदों काय अध्ययन करके उनके
अक्षरस: पालक आदि तीनों श्रेष्ठ काम
ही करेंगे।
++++++++++++++++
கல்லார்க்கு இனனாய் ஒழுகலும்
காழ்கொண்ட
இல்லாளைக் கோலால் புடை த்தலும் -
இல்லம்
சிறியாரைக் கொண்டு புகலுமிம் மூன்றும்
அறியாமை யால்வரும் கேடு. . . . .[03]
अशिक्षितों के साथ दोस्ती, पति व्रता पत्नी को पीटना,
निम्नलोगों को घर में रहना आदि तीनों संतापप्रद होते हैं।
பகை முன்னர் வாழ்க்கை செயலும்
தொகை நின்றபெற்றத்துள் கோலின்றிச் சேறலும் - முற்றன்னைக்
காய்வானைக் கை வாங்கிக் கோடலும்
இம்மூன்றும்சாவவுறுவான் தொழில். . . . .[04]
शत्रुओंको अपनी सपंत्तियाँऔर सुख सुविविधाएँ
बताना-दिखाना, मवेशियों को चराते समय लाठी उठाकर न
जाना, शत्रुओं को दोस्ती बना लेना आदि तीनों कष्टप्रद होतेहैं।
வழங்காத் துறை யிழிந்து நீர்ப்போக்கும் ஒப்ப
விழை விலாப் பெ ண்டீர்த்தோள் சேர்வும் -
உழந்துவிருந்தினனாய் வே ற்றூர் புகலும்
இம்மூன்றும்அருந்துயரம் காட்டு நெ றி. . . . .[05]
जिस काम करने में अनुभवन हीं है
,उसमेंलगना,
जो स्त्री नहीं चाहती ,उससेजबर्दस्त रिश्ता बना लेना ,
जो दावत के लिए निमंत्रण नहीं देते
उसके यहाँ जाकर
जबर्दस्त खाना आदि तीनों असंतेषप्रद और कष्टप्रद होतेहैं।
பிறர்தன்னை ப் பேணுங்கால் நாணலும்
பேணார்
திறன்வேறு கூறில் பொறை யும் -
அறவினையைக்காராண்மை போல ஒழுகலும் இம்மூன்றும்
ஊராண்மையென்னும் செருக்கு. . . . .[06]
दूसरों की प्रशंसा सुनकर लज्जित होना,
अपनेको न चाहनेवालों की अप्रशंसा को सह लेना,
प्रत्युपकार की प्रतीक्षा के बगैर दान-धर्म परोकार में लगना
आदि तीनों ही मानव के लिए असली संपत्तियाँ होती हैं।
வாளை மீன் உள்ளல் தலைப்படலும்
ஆளல்லான்
செ ல்வக் குடியுட் பிறத்தலும் - பல்அவை யுள்
அஞ்சுவான் கற்ற அருநூலும் இம்மூன்றும்
துஞ்சூமன் கண்ட கனா. . . . .[07]
टिटहरी पक्षी का मछली पकडनेका प्रयत्न,
क्षमता हीन बच्चे का रईस परिवार में जन्म लेना,
कायर लोगों के ग्रंथ ज्ञान,
आदि तीनों गूंगों
के स्वप्न के समान अनुपयोगी हैं।
தொல்லவை யுள் தோன்றும் குடிமையும்
தொக்கிருந்த நல்லவையுள் மேம்பட்ட கல்வியும் -
வெல்சமத்து
வேந்துவப்ப வட்டார்த்த வென்றியும்
இம்மூன்றும்
தாந்தம்மைக் கூறாப் பொருள். . . . .[08]
अति प्राचीन ऐतिहासिक खोज की सभा में ऊँचे कुल के ज्ञानी का पधारना,
कई ग्रंथों के ज्ञाताओंके दरबार में प्राप्त बढि या ज्ञान
रण क्षेत्र में दुश्मनों को हराकर विजयी बने भूपतिका हर्ष ,
आदि तीनों अपनेआप आप प्रकट होना चाहिए।
आत्म प्रशंसा के द्वारा अभिव्यक्ति करना जरा भी सही नहीं
है।
ஆசாரக் கோவை---आचार संग्रह - तमिल ग्रंथ
तमिल संघ काल के अंधे काल अर्थात संघ काल के परिवर्थित अंतिम समय में कई ग्रंथों की रचनाएँ लिखी गयी हैं ।
उस समय के ग्रंथों में कवि कयत्तूर पेरुवायन् मुल्लियार रचित 'आचारक्कॊवै' अर्थात "आचार संग्रह"मानव जीवन में मानवता लाने अति श्रेष्ठ ग्रंथ है ।इनमें इन्सान में इन्सानियत लाने,इन्सान में ईश्वरत्व लाने के संपूर्ण गुणों का जिक्र किया गया है ।
अच्छी चालचलन और अनुशासन बनाये रखने का मार्गदर्शन मिलता है ।
ஆரோயின் மூன்றுமழித்தானடி யேத்தி யாரிடத்துத்தானறிஈ்தமாத்தரெயானாசாரம் யாருமதியவறனாயமற்றவற்றை யாசாரக்கோவையெனத்தொகுச்தான்றீராத் இருவாயிலாயஇிரல்வண்கயச் நூர்ப் * பெருவாயின்முள்ளியென்பான .
आरोयिन मून्रुमलितंतानडि येत्ति यारिडत्तुत्तानऱि ईतमात्तरेयानाचारम्
यारुमतिनायमट्रमट्रवट्रै याचारक्कोवैयेनत्तोकुच्चान्ऱीरात्
तिरुवायिलायतिऱल्वन कयत्तूर्प पेरुवायन मुल्लियेन्बान्।.
भावार्थ ----ः भगवान शिव ने शत्रुओं के लिए दुर्लभ तीन दीवारों को (अहंकार,काम,लोभ ) को अपनी हँसी में ही चूर्ण कर दिया ।ऐसे भक्तवत्सल के चरण-कमलों को वंदना करके आचार संहिता में जितनी बातों का मेरा ज्ञान है,उन सभी को संग्रह करके आचारक्कोवै
नामक ग्रंथ को एकत्रित करके तिरुवण् कयत्तूर वासी पेरुायन मुल्लियार ने लिखा है ।
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ग्रंथ कविताएँ --१.
बडों के द्वारा बताये गये आठ आचरण
१. दूसरों के द्वारा हमको किए गए उपकार को समझना ,कृतज्ञता से जीना ।
२. दूसरों के द्वारा प्राप्त बुराइयों को सह लेना व भूल जाना
३.मधुर सुखप्रद शब्द बोलना ४.जीवों को बुराई न करना ५.शिक्षा में सुजान की बातें सीख लेना,ज्ञान ग्रहण करना
६.सत्संग में रहना ७.जग व्यवहार के साथ चलना ,परोपकार करना ८.ज्ञान संपत्ति बढाना आदि आठ अच्छे आचरण बढाने के मूल कारण स्वरूप होते हैं ।
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२. अपने आचरण अनुशासन को जो अक्षरसः पालन करते हैं,उनको निम्नलिखित आठ सुख साधन मिल जाते हैं ----
१.उच्च भद्र कुल में जन्म लेना २.दीर्घ आयु पाना ३.धनी बनना ४.सुंदर रूप प्राप्त करना ५.भू संपत्तियाँ पाना ६.वाणी की कृपा
७.आदर्श उच्च शिक्षा ८. नीरोग काया --आदि.
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३. कवि पेरुवायन किल्लियार का कहना है कि बडों को दक्षिणा देना,यज्ञ करना,तप करना,शिक्षा प्राप्त करना आदि सुचारू रूप से
नियमानुसार करना चाहिए।नहीं करेंगे तो धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष नहीं मिलेगा।
४.ज्ञानियों ने सुजीवन जीने के लिए निम्न आचार -व्यवहार का अनुसरण करने के नियम बताये हैं--
१.ब्रह्म मुहूर्त में उठना, २.दूसरे दिन के दान-धर्म कार्यों को सोचना, ३.आय बढाने के कर्म कार्यों पर सोच -विचार करना ,४.माता-पिता का नमस्कार करना आदि ।
५.धर्म निष्ठावान गाय, ब्राह्मण,आग,देव,उच्च सिर आदि को स्पर्श न करेंगे ।
६. माँस,चंद्,सूर्य ,कुत्ते आदि देखना वर्जित हैं ।
अव्वैयार–नलवलि—सुमार्ग–संघ-काल ईस्वी पूर्व दूसरी शताब्दी भाषा दिवस के सन्दर्भ मे, अव्वैयार ,तमिल कवयित्री के चालीस पद्यों का गद्यानुवाद का प्रयत्न किया गया है |
1. पुण्य-कर्म से मिलेगा सुख ,संपत्ति ; पाप कर्म से होगा सर्वनाश भूमि में जन्म लेनेवालों का खजाना तो उनके पूर्व जन्म के पाप-पुण्य कर्म फल ही | सोचकर अन्वेषण अनुशीलन करें तो ये ही सत्य है | बुराई तज,भला कीजिये यही है जीवन के सुख की कुंजी |
2. संसार में जातियां तो दो ही है | एक जो परोपकार ,दान -धर्म और न्याय मार्ग पर चलते हैं
वे ही उच्च जाति के मनुष्य है | जो परोपकार नहीं करते ,वे हैं निम्न जाति के लोग, नीति ग्रंथों में यही बात हैं |
3. यह शरीर मिथ्या है | यह तो वह थैली है | जिसमें स्वादिष्ट सामग्रियाँ। अन्दर सड़कर बदबू के रूप में बाहर निकलती है | यह शरीर तो अशाश्वत है | इसे स्थायी मत मानो समझो, अतः जो कुछ मिलते हैं उन्हें दान और परोपकार में फौरन लगा दो; धर्म्-वानों को जल्दी मिलेगी मुक्ति।
4.कार्य जो भी हो ,कामयाबी के लिए भाग्य साथ देता हैं | जितना भी सोचो ; करो, कामयाबी वक्त और पुण्य कर्म पर निर्भर है | इसे न समझकर प्रयत्न करना , उस अंधे के कार्य के समान हैं जो आम तोड़ने अपनी लकड़ी फेंकता है |
5. जितना भी प्रयत्न करो, माँगो , बुलाओ, चीखो ,चिल्लाओ, तेरी चाहों की वस्तुएं न मिलने का सिरोरेखा नहीं है तो कभी नहीं मिलेंगी | जो चीज़ें नहीं चाहिए वे मिलना सहज है। यह वास्तविकता न जान -समझकर दुखी होना ही |अति दीर्घ काल से मानव कर्म हो गया है |
6 . एक व्यक्ति को उनके भाग्य रेखा के अनुसार जितना मिलना है, उतना मिल ही जाएगा | यही संसार में चालू है , संसार में लहरोंवाले समुद्र पारकर द्रव्य आदि कमाकर आनेपर ,वापस समुद्र तट पर पहुँचने पर उतना ही आनंद या सुख मिलेगा ,जितना मिलना है | उससे अधिक न मिलेगा | तमिल में एक कहानी हैं — दो व्यक्ति जैतून का तेल लगाकर रेतीले प्रदेश में लुढ़ककर उठे | एक के शरीर पर ज्यादा रेत चिपके हुए थे, दुसरे के शरीर पर कम
अतः प्रयत्न तो ठीक है, पर फल उतना ही मिलेगा , जितना मिलना था |
7. नाना प्रकार से सोचो , कई प्रकार से अनुसंधान करो, सामाजिक शस्त्र पर खोजो ,
यह शारीर नाना प्रकार के कीड़े और अनेक प्रकार के रोगों का केंद्र हैं | एक दिन ज़रूर प्राण पखेरू उड़ जाएगा | इस बात को चतुर ,बुद्दिमान ज्ञानी जानते हैं |अतः वे कमल के पत्ते और पानी के समान। संसार से अलगअनासक्त जीवन जियेंगे | वे माया जग नहीं चाहेंगे. संसार से अनासक्त रहेंगे |
8 . अव्वैयार कहती है – भूलोक वासियों! सुनिए | बड़ी बड़ी कोशिशों में लगिए;
आपका समय ग्रहों के अनुसार अनुकूल न हो तो आपके प्रयत्न में न मिलेगी कामयाबी यदि अपने प्रयत्न में सफलता मिल ही जायेगी तो भी मन चाही चीज न मिलेगी | ऐसा मिलने पर भी स्थायी न रहकर , वह अस्थायी होगी | हमें शाश्वत सम्मान देनेवाला इज्जत है | मर्यादा की तलाश करके पाना ही शाश्वत संपत्ति है |
9 नदी के बाढ़ सूखने पर ,रेतीली नदी में पैर रखने पर धूप के कारण पैर जलेगा .पर वहीं स्त्रोत से पानी निकलकर सुख पहुँचायेंगे। वैसे ही बड़े सज्जन गरीब होने पर भी , जो उनसे मांगते हैं, उनको नकारात्मक उत्तर न देंगे |
10 . जो मर गया उसका जीवित आना असंभव, रोओ,साल भर रोओ |
रोना दुखी होना बेकार गाँठ बांधकर रखो –भूलोक वासियों , एक दिन आप की भारी आयेगी | अतः जितना हो सके , उतना दान -धर्म देकर आप भी पेट भर खाइए |
11. अव्वैयार कहती हैं :– हे पेट! एक दिन का खाना छोड़ दो तो न छोड़ोगे | दो दिन का खाना एक साथ लो तो न मानोगे, दुःख प्रद मेरे पेट | तू मेरा दुख न जानोगे | मेरे पेट, तेरे साथ जीना दुर्लभ |
12 . नदी तट पर के पेड़ गिर पड़ेगा राज- भोग का जीवन भी मिट जायेगा लेकिन कृषी ही ऐसा धंधा जिसका कभी न होगा पतन |
13. सुन्दर भू -गर्भ पर, जीने के लिए जो भाग्यवान पैदा हुए हैं | उसको कोई मिटा नही सकता | मरनेवाले को कोई रोक नहीं सकता | भीख माग्नेवाले को कोई रोक नहीं सकता |
14.भी ख माँगकर,अपमानित जीवन जीने से मर्यादा की रक्षा करते हुए मरना बेहतर है |
15. नमः शिवाय मन्त्र जपते हुए जो जीते है न उनको होगा कभी दुःख या डर शिव भगवान का नाम जपना ही बुद्धिमानी है | बाकी सब उपाय दुःख दूर करना बुद्धिमानी नहीं है | सुमार्ग –नलवली –अव्वैयार -तमिल संघ साहित्य -दूसरी शताब्दी ई.पू. |
16. भूमि बढ़िया होने पर पानी स्वच्छ और बढ़िया होगा | भलों के चरित्र उनके दान से होगा श्रेष्ठ , दया भरी दृष्टि से आँखों की सुन्दरता और विशेषता बढ़ेगी | पतिव्रता नारी का चरित्र है पूजनीय | सागरों से घेरे जगत में ये सब अद्भुत है –जान लो |
17 . पूर्व जन्म के बद -कर्म-फल के होते , ईश्वर की निंदा से क्या होता | जग में अघ रहित जीवन जीने पूर्व जन्म में बिन दान दिए रहे |इस जन्म में खाली घड़ा ही बचेगा | खाने को भी न मिलेगा गरीबी ही बचेगी |
18. दुनिया है बड़ी, आप के होंगे माता-पिता , भाई -बहन , नाते -रिश्ते पक्के यार | इनमें न होगा सच्चा प्यार दुसरे तो सताने पर देंगे या करेंगे मदद | ये नाते -रिश्ते भाई -बंधु चरणों पर गिरने पर भी न देंगे न करेंगे मदद |
तमिल साहित्य के नीति ग्रंथों के अध्ययन से आधुनिक जीवन को ज्ञान और अनुशासन बनाये रखने का मार्ग दर्शन मिलता है।