Monday, August 2, 2021

यादें

 नमस्ते वणक्कम।

 हिंद देश परिवार जम्मु कश्मीर इकाई।

 24-1-2021

विषय --यादें

 विधा --मौलिक रचना मौलिक विधा। निज शैली निज रचना।।

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जीवन में मीठी और कडुवीं यादें रहित   

कोई मनुष्य रह नहीं सकता। 

 वे यादें मीठी भी हो सकती है,

कडुवी भी हो सकती है।।

   मैं ग्यारहवीं कक्षा की सरकारी परीक्षा दे रहा था। सन्1950ई.की बात है।

तब छात्रों में अधिकांश लोग नकल कर रहे थे।

अध्यापक काँप रहे थे।  बदमाशी छात्रों के हाथ में छुरी भी थी।

 हिंदी विरोध आंदोलन भी चल रहा था।

हिंदी परीक्षा के दिन सरकार के नियमानुसार 

परीक्षा में उपस्थित होना  जरूरी है।

 अंक लेने की जरूरत है। 

 मैं तो आधे घंटे में जितना लिखा सकता हूँ,

 उतना  लिख रहा था।

   हिंदी विरोधी छात्र पीठ पर मार रहे थे।

 जो भी हो , मैं बाहर आ गया। 

  मेरी माँ हिंदी प्रचारक हैं।  

एक सरकारी  स्कूल में काम कर रही थी। 

अचानक बीमार पड़ गयी। स्कूल न जा सकी।

इतने में मैं राष्ट्र परीक्षा उत्तीर्ण कर चुका।

 माँ की जगह मेरी नियुक्ति अप्रशिक्षित शिक्षक के रूप में हुई।

 17साल की उम्र में हिंदी पंडित। इतने में तमिलनाडु सरकार की द्विभाषा नीति के कारण नौकरी चली गई।

पर द्रमुक सरकार की नीति अच्छी थी।

सभी हिंदी अध्यापकों को कोई न कोई नौकरी देना।

कुछ क्लर्क बने, कुछ चपरासी, मेरे जैसे प्रशिक्षण रहित 

अध्यापक को निकाल दिया। पर  एंप्लायमेंट आफीस द्वारा नौकरी  मिलती रही।  बदमाशी सहपाठी मुझसे जलते रहे।

 मेरे जीवन की चिरस्मरणीय  एक याद हैं।

स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै।

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