भाषा जो भी हो माँग के अनुसार सीखनी ही पढ़ती है।
मेरे शहर पवनी में एक ही हिंदी परिवार था। अब 100से ज्यादा परिवार।
कई तमिल ग्रंथों के कवि जैन मुनि थे।
तिरुवल्लुवर का तिरुक्कुरल , त्रिकटुकम्, चिरु पंच मूलम्-आचारक्कोवै आदि तमिल साहित्य में जैनों की देन है।
महाकाव्य शिलप्पधिकारम मणि मेखलै जीवक चिंतामणी ये जैन बौद्ध ग्रंथ है। पंच तमिल काव्यों के नाम संस्कृत है।
शिल्प अधिकार शिलप्पधिकारम।
जीव की चिंता जीवक चिंतामणी।
कुंडल +केश कुंडल केशी।
विद्यापति। मणि मेखला मणिमेखलै।
अब भाषा तमिल हो या हिंदी हो या अंग्रेज़ी समय की माँग है।
अंग्रेज़ी आते तो हमारा पहनावा बदल गया। गर्मी देश में शू साक्स टै। बुद्धिजीवी ने संस्कृत को तजकर अंग्रेजी सीखी। कल्रर्क बनने।वकील बनने। अंग्रेज़ों की चालाकी उनके जाने के बाद भी अंग्रेज़ी हमारी जीविकोपार्जन और गौरव की भाषा बन गयी।
हमारे स्वतंत्रता संग्राम के नेता अंग्रेज़ी के पारंगत थे। सत्तर साल उन्हीं का शासन था। हिंदी के लिए अधिक खर्च। पर जीविकोपार्जन बग़ैर अंग्रेज़ी के असंभव।
तमिलनाडु में 52% तमिल भाषी नहीं।
तमिलनाडु के नेता तेलुगू भाषी हैं।
वै.गोपालसामी, विजयकांत करुणानिधि परिवार, प्राध्यापक अनबलकन आदि।
हाल ही में एक वीडियो आया कि स्वर्गीय अण्णातुरै की माँ तेलुगू भाषी हैं।
तमिलनाडु के जैन में कई तमिल के प्रकांड पंडित है।
यहां के तेलुगू कन्नड मराठी लोग तमिल ही पढ़ते हैं।
भाषा तमिल सीखना या हिंदी आज तक अपनी अपनी मर्जी।
अनिवार्य नहीं।
पर अंग्रेजी अनिवार्य है।
इस पर विचार करना है सोचना है।
आचार्य विनोबा भावे के भूदान यज्ञ में
वे हिंदी ही बोलते थे। उनके कारण आ सेतु हिमाचल हिंदी गूँजी थी।
उन्होंने ही बताया भारतीय सभी भाषाओं की लिपि देवनागरी करने पर भारतीय भाषा सीखना आसान है।
इसीलिए मैं ने नागरी लिपी में तमिल सिखा रहा हूँ। यह तो कोई अनिवार्य नहीं है। इच्छुक लोगों के लिए।
देवनागरी लिपि को रोचक बनाना मेरा उद्देश्य है। तमिल का प्रचार नहीं है।
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