आज से.कुछ .लिखूँगा।
लिखना मानसिक प्रेरणा होती है। ईश्वरीय देन है।
भगवान पर विचार करने पर ,
संसार के कार्यकलापों की सूक्ष्मता
हमें अचरज में डाल देगी।
खटमल, मच्छर, मक्खियाँ दीमक लाल चींटियाँआदि
सृष्टियाँ जीने देना मानव के लिए खतरनाक होती हैँ।
माँसाहार को रोकने पर शाकाहारी चैन से जी नहीं सकता।।
गली के कुत्तों को मारना चाहिए कि नहीँ।
मारना हिंसा है ।न मारना मानव के लिए बेचैनी है।
बंदरों की भीड़ रहने देने पर मानव चल फिर नहीँ सकता।
हिंसक जानवरोँ को.मारना.धर्म है.या अधर्म ।
ईश्वरीय व्यवस्था अद्भुत.होती है।
नदियों के किनारा सभ्यता का पालना.है।
जंगल की व्यवस्था खूँख्वार जानवरोँ के लिए।
जंगल छोडकर जानवर बाहर नहीँ आता।
मानव अति बुद्धिमान । सबको. नियंत्रण में.रखना.चाहता है।
स्वार्थी है । अपने से दुर्बलों को .बेगार बनाकर जीना चाहता है।
ईश्वरीय व्यवस्था में बुद्धि बल,धन बल, शारीरिक बल.अलग अलग व्यक्तियों में है।
एक दूसरे पर आश्रित रहना ही ईश्वरीय व्यवस्था है।
चाणक्य का बुद्धिबल मौर्य साम्राज्य की स्थापना नहीं कर सका। उनका अर्थ शास्त्र का महत्व शारीरिक बलवान नहीँ. जान सकता।
अतः भगवान की लीला अपूर्व अति सूक्ष्म होती.है।
मानव में मानवता या दानवता ईश्वरीय. देन.है।
मानव को दैविक शक्ति के सामने. झुकना ही पडेगा।
सबहिं नचावत राम गोसाईं यह वाक्य तलसीदास ही दे सकते हैं।
जाको.राखै साइयाँ मारी न.सक्कै.कोय।
बाल.न.बांका करि सकै.जाने जग वैरी होय।
यह वाणी के डिक्टेटर कबीर ही दे सकते हैं।
ऊँ ओम
एस.अनंत कृष्णन ,स्वरचित स्वचिंतक ।
अनुवादक।
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