७. जसोदा----पावै.
सन्दर्भ:--- सूरदास इस पद में श्री कृष्ण की बाललीला का स्वाभाविक रूप में वर्णन किया है। वात्सल्य रस झलकता है।
व्याख्या :--सूरदास माँ यशोदा की लोरी यों गाते हैं कि हे निद्रा!तुम को श्री कृष्ण बुला रहा है;जल्दी आकर उसको सुला दो। यशोदा बालक को पालने में लिटाकर दुलारती है;पुचकारती है;पालना जुलती है।
बालक सोने का अभिनय करता है। आँखें बंद करता है;ओंठ फटकता है; यह देखकर यशोदा लोरी बंद करती है।सो जाने का इशारा करती है। बालक जग उठता है तो फिर गाने लगती है।बड़े-बड़े तपस्वीं मुनियों को भी जो सुख दुर्लभ है,वह यसोदा को सहज प्राप्त हो रहा है।
विशेष:--बाल -लीला और् वात्सल्य का सूक्ष्म अध्ययन कवी सूर ने किया है।
८. कर पग---पग ठेलत।।
सन्दर्भ:--सूरदास ने इस पद में श्री कृष्ण की बाललीला का सूक्ष्म आध्यायन के द्वारा वर्णन किया है।
व्याख्या:--श्री कृष्ण अपने पैर के अंगूठे को लेकर मुख में रखकर पालने में लेट रहे है। आनंद का नजारा दीख रहा है। उस दृश्य को देखकर शिवजी सोचते हैं कि वाट-वृक्ष बढ़ गया है और समुद्र के प्रलय जल को सहते है। बादल के बिखेरने से प्रलय की सूचना है। श्रीकृष्ण के उस रूप को दिक्पाल विस्मय से देख रहे है। मुनियों के मन में आतंक छा जाता है। धरती कांपने लगी।शेषनाग अपने सहस्र -फन को संकुचित कर लेते हैं।इतना होने पर भी व्रजवासियों को पता नहीं लगता;वे निर्भय रूप में घूम रहे हैं;वहाँ ऐसा लगता है कि श्री कृष्ण ने अपने अंगूठे को मुख में रखकर व्रज के संकटों को दूर कर लेते हैं।
विशेष:- सूर ने अंगूठे को मुख में देखकर विभिन्न विचारों को प्रकट किया है।
९. सोभित कर -----कल्प जिए।।
सन्दर्भ :--इस पद में सूरदास बाल रूप और बाल लीला का ह्रदय-स्पर्शी वर्णन करते हैं।
व्याख्या :--बालक कृष्ण हाथ में मक्खन लेकर चलते हैं। वह दृश्य अत्यंत शोभायमान है।घुटने के बल चलने से उसका शरीर धूल -धूसरित है। उसके मुंह में मक्खन का लेपन है। उसके कपोल अति सुन्दर है तो नेत्र चंचल हैं। उसके माथे पर गोरोचन का तिलक भव्य है;उसके लत भ्रमरों के समूह-सा हैं। गले में बहुमूल्य सोने का बघनखे जुड़े माल है;वह कठुले की चमक और बघनख अधिक कामकीला और मनमोहक है। सूरदास कहते हैं कि उस सुन्दर रूप को एक पल निहारने से मनुष्य धन्य हो जाते हैं;उस भव्य रूप को बिना दर्शन किये कल्पों तक जीने से भी कोई लाभ नहीं है।
विशेष;-कवी की कल्पना और सूक्ष्म वर्णन युग-युगों तक स्मरणीय है।
१० . मैया ----जोटी ।।
सन्दर्भ :--एक दिन यशोदा ने बालक कृष्ण से कहा--काली -गाय के दूध पीने से तुम्हारी चोटी बड़े भाई बलराम की चोटी से लम्बी होगी; पर चोटी न बढी तो बालक अपनी माँ से शिकायत करता है। इसमें बाल मनोविज्ञान का सहज चित्रण मिलता है साथ ही माँ की चतुराई भरी सांत्वना का पता लगता है।
व्याख्या:--श्री कृष्ण ने माम से पूछा ---हे माँ ! मेरी चोटी कब बढेगी? तुम तो मुझे दूध पिलाती रहती हो।मैं तो पीता रहता हूँ ; पर मेरी चिती बड़ी नहीं हुईं।लेकिन बलराम की चोटी बड़ी और मोटी होती जाती है।तुमने कहा किमेरी चोटी नागिन के सामान बड़ी होकर धुल में लोटेगी। तुम तो मुझे केवल कच्चा दूध पिलाती है। मक्खन-रोटी नहीं खिलाती।श्री कृष्ण की चतुराई भरी बातें सुनकर कवी सूरदास कहते हैं कि श्री कृष्ण और बलराम की जोड़ी भाकों के मन में चिरंजीवी रहें।
विशेष:--बाल लीला का सहज वर्णन मिलता है।
सन्दर्भ:--- सूरदास इस पद में श्री कृष्ण की बाललीला का स्वाभाविक रूप में वर्णन किया है। वात्सल्य रस झलकता है।
व्याख्या :--सूरदास माँ यशोदा की लोरी यों गाते हैं कि हे निद्रा!तुम को श्री कृष्ण बुला रहा है;जल्दी आकर उसको सुला दो। यशोदा बालक को पालने में लिटाकर दुलारती है;पुचकारती है;पालना जुलती है।
बालक सोने का अभिनय करता है। आँखें बंद करता है;ओंठ फटकता है; यह देखकर यशोदा लोरी बंद करती है।सो जाने का इशारा करती है। बालक जग उठता है तो फिर गाने लगती है।बड़े-बड़े तपस्वीं मुनियों को भी जो सुख दुर्लभ है,वह यसोदा को सहज प्राप्त हो रहा है।
विशेष:--बाल -लीला और् वात्सल्य का सूक्ष्म अध्ययन कवी सूर ने किया है।
८. कर पग---पग ठेलत।।
सन्दर्भ:--सूरदास ने इस पद में श्री कृष्ण की बाललीला का सूक्ष्म आध्यायन के द्वारा वर्णन किया है।
व्याख्या:--श्री कृष्ण अपने पैर के अंगूठे को लेकर मुख में रखकर पालने में लेट रहे है। आनंद का नजारा दीख रहा है। उस दृश्य को देखकर शिवजी सोचते हैं कि वाट-वृक्ष बढ़ गया है और समुद्र के प्रलय जल को सहते है। बादल के बिखेरने से प्रलय की सूचना है। श्रीकृष्ण के उस रूप को दिक्पाल विस्मय से देख रहे है। मुनियों के मन में आतंक छा जाता है। धरती कांपने लगी।शेषनाग अपने सहस्र -फन को संकुचित कर लेते हैं।इतना होने पर भी व्रजवासियों को पता नहीं लगता;वे निर्भय रूप में घूम रहे हैं;वहाँ ऐसा लगता है कि श्री कृष्ण ने अपने अंगूठे को मुख में रखकर व्रज के संकटों को दूर कर लेते हैं।
विशेष:- सूर ने अंगूठे को मुख में देखकर विभिन्न विचारों को प्रकट किया है।
९. सोभित कर -----कल्प जिए।।
सन्दर्भ :--इस पद में सूरदास बाल रूप और बाल लीला का ह्रदय-स्पर्शी वर्णन करते हैं।
व्याख्या :--बालक कृष्ण हाथ में मक्खन लेकर चलते हैं। वह दृश्य अत्यंत शोभायमान है।घुटने के बल चलने से उसका शरीर धूल -धूसरित है। उसके मुंह में मक्खन का लेपन है। उसके कपोल अति सुन्दर है तो नेत्र चंचल हैं। उसके माथे पर गोरोचन का तिलक भव्य है;उसके लत भ्रमरों के समूह-सा हैं। गले में बहुमूल्य सोने का बघनखे जुड़े माल है;वह कठुले की चमक और बघनख अधिक कामकीला और मनमोहक है। सूरदास कहते हैं कि उस सुन्दर रूप को एक पल निहारने से मनुष्य धन्य हो जाते हैं;उस भव्य रूप को बिना दर्शन किये कल्पों तक जीने से भी कोई लाभ नहीं है।
विशेष;-कवी की कल्पना और सूक्ष्म वर्णन युग-युगों तक स्मरणीय है।
१० . मैया ----जोटी ।।
सन्दर्भ :--एक दिन यशोदा ने बालक कृष्ण से कहा--काली -गाय के दूध पीने से तुम्हारी चोटी बड़े भाई बलराम की चोटी से लम्बी होगी; पर चोटी न बढी तो बालक अपनी माँ से शिकायत करता है। इसमें बाल मनोविज्ञान का सहज चित्रण मिलता है साथ ही माँ की चतुराई भरी सांत्वना का पता लगता है।
व्याख्या:--श्री कृष्ण ने माम से पूछा ---हे माँ ! मेरी चोटी कब बढेगी? तुम तो मुझे दूध पिलाती रहती हो।मैं तो पीता रहता हूँ ; पर मेरी चिती बड़ी नहीं हुईं।लेकिन बलराम की चोटी बड़ी और मोटी होती जाती है।तुमने कहा किमेरी चोटी नागिन के सामान बड़ी होकर धुल में लोटेगी। तुम तो मुझे केवल कच्चा दूध पिलाती है। मक्खन-रोटी नहीं खिलाती।श्री कृष्ण की चतुराई भरी बातें सुनकर कवी सूरदास कहते हैं कि श्री कृष्ण और बलराम की जोड़ी भाकों के मन में चिरंजीवी रहें।
विशेष:--बाल लीला का सहज वर्णन मिलता है।
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