Friday, November 9, 2012

तमिलनाडु के हिंदी प्रचारक


तमिलनाडु   के   हिंदी प्रचारक

महात्मा  गांधीजी ,राष्ट्र पिता  ने   देश-भर  भ्रमण  करने के बाद  ,  देश की  एकता   के लिए एक आम भाषा   के रूप  में   हिंदी को चुना।  वे बड़े  दूरदर्शी  थे।भविष्य के ज्ञाता थे।

उन्होंने   चेन्नै  को केंद्र बनाकर  दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की स्थापना की।  1918 में स्थापित यह संस्था निस्वार्थ देश भक्त  प्रचारकों के अथक परिश्रम से फूली-फली।
1965 -67में हिन्दी का विरोध चला।बसें जलाई गयीं।रेल जले। कई हिंदी प्रचारक  क्रातिकारियों के कारण  अपमानित हुए।हिंदी के नाम्  लेनेवालों की जान का  खतरा था।
उस समय मैं हिंदी के प्रचार क्षेत्र में आया।मेरी मां  गोमतिजी और मामा सुब्रह्मणि यम जी सब हिंदी प्रचार  में लगे थे। तिरुच्चिहिंदी प्रचार सभा के सचिव टी।पि।वीराराघवन जी, संगठक  श्री  ई।तन्गाप्पंजी,श्री आर।के।नारासिम्हनजी ,श्री वि।एस।राधाकृष्णन जी, श्री सुमतींद्र,श्रीमती मीनाक्षीजीसब  सभा  की सेवा में लगे रहे।
श्री मति प्रेमाजी कालेज के  प्राध्यापिका के साथ हिंदी प्रचार में लगी रही।मदुरै में जी।पि।माधावाचारीजीऔर उनके दोस्त प्रचार कार्यमे लगे रहे।सेलम में बालाकंदसामी 
जैसे प्रचारक थे। तमिलनाडु  के  पलानी केंद्र में मैं और मेरी माँ  बिलकुल हिंदी प्रचार मुफ्त  में कर रहे थे।माँ  आज भी कर रहीं हैं।19667 से 1977 तक हिंदी सेवा के बाद 
मुझे सरकारी aided  स्कूल में नौकरी मिल गयी। चेन्नैमें  हिंदी के प्रचार में लगा। लेकिन यहाँ प्रचार दुसरे ढंग का था। जो भी हो सभाके संकट  काल में  मैंने साथ दिया;मेरे संकट कालमें सभा ही साथ दिया।अतः मैं सभा के प्रति आभारी हूँ .

लेकिन आज सभा आमजनता में प्रचार करनेवाले  प्रचारकों के प्रति ध्यान न देकर स्कूल -कालेज की प्रगतिमें लगी है।स्थाई हिंदी प्रचारकों की नियुक्ति में ध्यान नहीं दे रहीं है। सभा केचुनाव  में नए लोग आ नहीं सकते।चुनाव के बाद या पहले  अदालत में मुकद्दमा चल रहे हैं या चल रहे थे।ऊटी में बी।एड।प्रशिक्षण कालेज बंद।
राज्य सरकार का समर्थन भी नहीं;केंद्र सरकारका भी।प्रचार कार्य हो रहा हैं।लाखों की संख्या में विद्यार्थी पढ़ रहे है।
तमिल कवी सम्राट कणणदासन की एक कविता है:
हिंदी मोर नाचो;धीरे-धीरे ;
एक दिन मातृभूमि अपनाएगी।
लेकिन अब हिंदी क्षेत्र में भी  हिंदी प्रचार की ज़रुरत है।
भारतीय भाषाएं अंग्रेजों के जमानेमें  विकास की दिशा में बढ़ रहीं थी।
आजादिके  67 वर्षके  बाद अंग्रेजी जीविकोपार्ज की भाषा बन गयी।
तब भारतीय भाषाएँ --अब जनता को इस दिशा में भी सावधान रहना है और ध्यान देना है।

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