साहित्य का अर्थ-साहित्यकारों का उद्देश्य --भारतीय साहित्यों की एकता ---तमिल नीति ग्रंथ -तमिऴ नीति ग्रंथों में धर्म मार्ग -उपसंहार।
संदर्भ ग्रंथ ---काव्य के रूप--काव्य प्रदीप --तमिऴ ग्रंथ तिरुक्कुरल,त्रिकटुकम्,चिरु पंच मूलम्-आचारक्कोवै
साहित्य का अर्थ ---स +हित .समाज के कल्याण के लिए, राष्ट्र के कल्याण के लिए, विश्व के कल्याण के लिए, मनुष्य मनुष्यत्व लाने केलिए , मानव संस्कारों के विकास के लिए, मानव की एकता के लिए, दानशीलता, परोपकार, सहानुभूति ,करुणा आदि जगाने के लिए, ईश्वरत्व लाने के लिए साहित्यकारों की सृष्टि भगवान ने की है।वर कवियों ने नीति ग्रंथों की रचना की है। वाल्मीकि , तुलसी, सूर,मीरा, रैदास , कबीर आदि ग्रंथकार ईश्वर के अनन्य भक्त थे।
कबीर ईश्वर से गुरु को श्रेष्ठ मानते थे। तुलसी राम नाम को ही चारों ओर उजाला देनेवाला प्रकाश पुंज मानते थे। सूरदास तो भगवान कृष्ण को असंभव को संभव करनेवाले शक्ति स्वरूप मानते हैं।अलावा इनके पैगंबर मुहम्मद,ईसा मसीह के कुरान, बाइबिल भी नीति ग्रंथ हैं।
भारतीय साहित्य की एकता :-भारतीय साहित्यों में आध्यात्मिक एकता अत्यंत टिकाऊ है। शिव,विष्णु, स्कंद, गणेश आदि का यशोगान भारत भर में करते हैं। वेद -मंत्र ,यज्ञ -होम आ-सेतु हिमाचल एक ही प्रकार का है।
तमिल नीति ग्रंथ :---ई० पूर्व तीसरी शताब्दी से छठवीं शताब्दी तक नीति ग्रंथों की रचनाएँ हुई ।इन ग्रंथों को चरणों के आधार पर दो श्रेणियों में वर्गीकृत करते हैं। अधिक चरणों के ग्रंथों को पतिनेन मेल कणक्कु ग्रंथ और कम चरणों के ग्रंथों को कील कणक्कु ग्रंथ कहते हैं । हम पहले कील कणक्कु ग्रंथों पर विचार करेंगे ।
“நாலடி நான்மணி நால்நாற்பது ஐந்திணைமுப்
பால், கடுகம், கோவை, பழமொழி, மாமூலம்,
இன்னிலைய காஞ்சியோடு, ஏலாதி என்பவே
கைந்நிலைய வாம்கீழ்க் கணக்கு.”
नालडी ,नान मणि ,नाल नारपतु ऐंतिनै ,मुप पाल ,
कटुकम ,कोवै ,पलमोलि ,मामूलम ,
इन्निलैय कांचियोडु ,एलाती एनबवे
कैनिलयवाम कीलक्कनक्कु ।
इन ग्रंथों में आचार विचार को औषदियों के समान सिखाया गया है ।इन में से चंद रत्नों को चुनकर भावार्थ दिया गया है ।
आशा है कि पाठकों को तमिल नीति ग्रंथों की श्रेष्ठता का थोड़ा सा परिचय मिलेगा और
अधिक जानकारी की जिज्ञासा जागृत होगी ।
तिरुक्कुरल में तीन खंड हैं। 133 अध्याय है ।एक अध्याय में दस तिरुक्कुरल है ।कुल 1330 कुरल हैं ।
तीन खंड है–1.धर्म 2.अर्थ 3.काम ।
इन सब का सार रूप देने का प्रयास है हिंदी में ।
आशा है अतमिल लोगों को समझने आसान होगा ।
पाठकों से निवेदन है कि
इस अनुवाद के गुणों-दोषों को
अभिव्यक्ति कीजिए जिससे मेरा प्रोत्साहन बढ़ेगा और मेरी अपनी ग़लतियाँ समझ में आएगी।
और भी सुचारु रूप से लिखने में समर्थ बनूँगा ।
मेरे तिरुक्कुरल ग्रंथ का अनुवाद notion press में प्रकाशित ग्यारह भागों में प्रकाशित हुआ है ,जो अमेजान और notion प्रेस में मिलेगा ।
मेरा सम्पर्क –8610128658
धर्म
प्रार्थना
1.अनंत शक्तिमान ईश्वर की प्रार्थना करना है। वही इस भवसागर पार करने का मार्ग है। भगवान तटस्थ है।समरस सन्मार्ग दर्शक हैं।धर्म रक्षक है।
वर्षा
2. वर्षा के अनुग्रह और कृषि नहीं तो जीना दुश्वार है ,जितना भी औद्योगिक और तकनीकी प्रगति हो ,अंतरिक्ष पर मानव पहुँच जाए ,पर कृषि ही प्रधान माना जाएगा । भूखा भजन न गोपाल ।इधर उधर घूमकर अगजग को किसान के सामने नत्मस्तक करना ही पड़ेगा।
पूर्वजों का सम्मान
3. ईश्वर के अनन्य भक्त ,अनासक्त ,धर्म प्रिय ,तटस्थ ,संयमि महात्माओं की स्तुति कर ।
अधर्मियों को मृत्यु होने पर प्रशंसा सही नहीं है ।
धर्म
4. धर्म सबल है। धर्म धन ,यश ,श्रेष्ठता सब देगा ।काम ,क्रोध ,मद लोभ आदि अधर्म है ।
गृहस्थ :-
5. गृहस्थ धर्म तभी श्रेष्ठ है जब गृहस्थ अपने पिता,माता ,पत्नी ,नाते रिश्ते ,साधु -संतों और पूर्वजों की आत्मा सबकी धर्म पूर्ण सेवा करता है।
अर्द्धागनी
6. ज़िंदगी की सहायिका जीवन संगिनी अर्द्धांगि्निग्नी पति की आर्थिक स्तिथि के अनुकूल अपने ससुराल की सेवा न करेगी ,पतिव्रता और सहनशील न रहेगी तो गृहस्थ का जीवन में आत्मानंद और संतोष दूभर होगा।पत्नी ही पति के सुखी जीवन का आधार स्तम्भ है।
संतान भाग्य
7. मानव जीवन की बहुत बड़ी असली सम्पत्ति सुपुत्र ही हैं । कुल की मर्यादा रक्षक है। सुपुत्रों का आलिंगन,चुंबन,
तुतली बोली, शिशुओं के लघु करों से मिश्रित भोजन आदि ब्रह्मानंद सम स्वर्ग तुल्य है। वही अन्य चल अचल संपत्तियों से बढ़ी है।
प्यार
8.प्यार की संपत्ति के लिए कोई कुंडी नहीं है।प्यार में त्याग ही है।प्यार ही धर्म है। निस्वार्थ प्रेम में लेन -देन की बात नहीं है। प्रेमहीन लोगों को धर्म देवता वैसा जलाएगा,जैसा धूप हड्डी हीन जीवों को जलाता है।
अतिथि सत्कार
9. .अतिथि सत्कार गहस्थ जीवन का बड़ा लक्ष्य होता है। अतिथि सत्कार करने वालों पर सदा अष्टलक्ष्मियों की कृपा की वर्षा होगी।
मीठी बोली
10.मधुर बोली का महत्व सर्वोपरी है। मीठी बोली सुखप्रद है। कल्याणकारी है।मधुर फलप्रद हैं।
शत्रु को मित्र ,मित्र को शत्रु बनाने की शक्ति मधुर बोली में है ।
कृतज्ञता
11. कृतज्ञता मानव जीवन का श्रेष्ठ गुण होता है।कृतघ्नता की मुक्ति नहीं है।वक्त पर की लघु मदद ब्रह्माण्ड से बडी है।
तटस्थता
12. तटस्थता अति उत्तम धर्म है , श्रेष्ठ है ;अनासक्त जीवनप्रद है ।स्वार्थ से परे हैं।तराज़ू समान तटस्थ रहना ही ज्ञानी का लक्षण है ।
नम्रता /आत्म नियंत्रण
13. नम्र रहना ही ज्ञानी का लक्षण है।कछुआ समान पंचेंद्रियों को क़ाबू में रखकर विनम्र रहनेपर साथों जन्मों में श्रेष्ठ रहेंगे ।जीभ को क़ाबू में रखना अति अनिवार्य है।आग से लगी चोट भर जाएगी ,पर शब्दों की चोट कभी नहीं भरेगी ।
संयम ही सज्जनता है।
अनुशासन
14. अनुशासन का पालन करना मान -मर्यादा का आधार है । कुल गौरव रखना अनुशासन पर ही निर्भर है।चालचलन और चरित्र ही सदा मानव मर्यादा का संरक्षक है ।
परायी पत्नी की इच्छा पाप
15. परायों की पत्नी से इच्छा करना , सम्भोग करना बेवक़ूफ़ी है । इससे होनेवाला अपयश , पाप ,दुश्मनी स्थायी कलंक होगा । बदनाम कभी नहीं मिटेगा ।
16 – सब्रता
मानवता का श्रेष्ठ गुण सब्रता याने सहनशीलता है।हमें निंदा करनेवाले ,अहित करनेवाले ,हम पर क्रोध
दिखानेवाले ,दुःख देनेवाले आदि सबको क्षमा करना और सहन शीलता दिखाना स्थायी यशों के मूल या आधार स्तंभ है। सहनशील मानव का यश अमर हैं। इस संदर्भ में रहीम का दोहा स्मरणीय है।
“
छिमा बड़न को चाहिए, छोटेन को उतपात। का रहिमन हरि को घट्यो, जो भृगु मारी लात।।
17 – ईर्ष्यालू न होना
ईर्ष्या आजीवन मानव के लिए दुखप्रद है ।ईर्ष्यालु आमरण शांतिरहित और असंतोषी रहता है।उसके घर में वास करने लक्ष्मी देवी कभी नहीं चाहती ।अपनी बड़ी बहन ज्येष्ठा देवी को छोड़कर जाती है। ईर्ष्यालु कंजूसी होने से बदनाम और अपयश स्थायी बन जाता है ।दानी व्यक्ति से ईर्ष्या करनेवाले का उद्धार कभी न होगा ।
18 – लालच में न पड़ना
धर्म पथ पर जाकर सुखी जीवन बिताना है तो लालच में पड़ना नहीं चाहिए ।लोभ वश दूसरों की चीजों को चोरी करने पर लोभी ज्येष्ठा देवी का प्यार बनजाएगा ।ज्ञानी लोभ से दूर रहेंगे ।लोभी मूर्ख ही बनेगा ।
काम ,क्रोध ,मद ,लोभ ,जब मन में लगै खान ।
तब पंडित -मूर्ख एक समान ,क़हत तुलसी विवेक ।
19 – चुग़ली करना / पीठ पीछे निंदा करना
चुग़ली करना अधर्म है। किसी एक के सामने निंदा करना सही है पर पीठ के पीछे अपयश की बातें करना बूरों का काम है। अपने निकट दोस्त को उसकी अनुपस्तिथि में निंदा करता है तो अन्यों के बारे में क्या करेगा। अपने दोषों को पहचानकर सुधरना उत्तम गुण है।
कबीर –
"बुरा जो देखन मैं गया ,बुरा न मिलिया कोय ।
जो दिल खोजा आपना मुझसे बुरा न कोय।।
अतः वल्लवर के अनुसार चुग़ल करना मूर्खता है।
20 बेकारी बातें न करना
बोलना है तो कल्याणकारी बातें ही करनी चाहिए।
घृणा प्रद बातें करनेवाले बड़े होने पर भी नफ़रत के पात्र बनेंगे ।अनुपयोगी बुरी बातें करनेवाले ,हानी प्रद बातें करनेवाले अनादर की बातें हैं ।
21 – बुराई करने से डरना चाहिए।
बुराई करने से होनेवाली हानीयों का भय हमेशा ही सज्जनों के दिल में रहेगा । दुर्जन ही बुराई करेंगे ।जो अपना कल्याण चाहते हैं ,उनको दूसरों की बुराई करनी नहीं चाहिए । बुराई करने पर उसका दुष्परिणाम छाया की तरह साथ आएगा ।
22 – समाज की सेवा /निष्काम कर्तव्य करना
मानव जो कुछ कमाता है ,वह दीन दुखियों की सेवा केलिए है ।ग़रीबों की सेवा करके समरस आनंद का अनुभव ही मानव को महान बनाता है।परायों की मदद करने का गुण आदर्श लोगों में ही रहेगा।
वे अपने लाभ -हानी पर विचार न करके परोपकार में ही लगेंगे।
23 –दानशीलता –
दूसरों की मदद करने कुछ देना दान शीलता है। निष्काम दान देना श्रेष्ठ सज्जन का लक्षण है। ग़रीबों की भूख मिटाना भी दान शीलता है। देना ही बड़ा धर्म है।
24 – यश
दान देकर यश कमाना ही शाश्वत यश है ।मानव जीवन में यश ही प्रधान है ।यश रहित पैदा होने से जन्म न लेना ही अच्छा है। मानव जन्म की सार्थकता यश कमाने में है।
25 – सहानुभूति /करुणा
मानव की श्रेष्ठ सम्पत्ति ही करुणा है ।सहानुभूति जिसमें है ,वही श्रेष्ठ है ।करुणा जिसमें है , उसको किसी प्रकार का दुःख नहीं है।
धन नहीं तो सांसारिक सुख नहीं है ,करुणा /दया नहीं तो ईश्वर के यहाँ स्थान नहीं है।
विवेक चिंतामणि —तमिल नीति ग्रंथ
விவேகசிந்தாமணி—
தமிழ் நீதி நூல்.
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तमिल के नीति ग्रंथों में विवेकचिंतामणि ज्ञानप्रदग्रंथ है।
इसकी रचनाकारों के नामों का पता नहीं हैं ।।
यही निर्णय लिया गया है कि कई कवियों द्वारा
लिखित पद्यों का संग्रह है।
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प्रार्थना
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१ तमिल मूल :--अल्लल पोम वल्विनै पोम अननै वयिट्रिल पिरंत
तोल्लै पोम पोकात तुयरम पोम –नल्ल
गुणमधिकामाम अरुनैक गोपुरत्तुल मेवुंग
गणपतियैक कै तोलुतक्काल ।।
अल्लल –दुःख; पोम =दूर होगा ;।वलविनय -संचित कर्म ; अननै = माँ वयित्ट्रिल =पेट में ;पिरंत तोल्लै –जन्म लेने के कारण मिले प्राप्त कर्म ;पोकात तुयरम –न मिटनेवाले दुःख
अच्छे गुणवाले अरुनैक कोपुरात्तुल –तिरुवन्नामलै गोपुर में ; गणपतियैक =गणपति को
कैतोलुतक्काल =हाथ जोड़कर प्रार्थना करने पर।
भावार्थ :-
अगजग में सुख-दुःख भगवान की देन है । भारतीय काव्य सभी भाषाओं में ईश्वर्वंदना ,गुरुवंदना से ही श्री गणेश करने की रूढ़ी चल रही हैं । वैसे ही तमिल ग्रंथ विवेक चिंतामणि का श्रीगणेश श्री गणेश की वंदना से शुरू होता है।
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भावार्थ :--
तिरु अन्नामलै में विराजित श्री गणपति जी की प्रार्थना करने से
दुःख दूर होगा ।
संचित कर्म फल का पाप दूर होगा ।
माँ के पेट में जन्म लेने के कारण प्राप्त कर्म फल दूर होगा ।
जो पाप मिटना असम्भव है वह भी दूर होगा ।
अच्छे भक्तवत्सल तिरुअन्नामलै में विराजमान श्री गणेश जी को दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना करने से हम पुण्य संचित करेंगे ।
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२।अनुपयोगी
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आपत्तुक्कु उतवा पिल्लै
अरुंपसिक्कु उतवा अन्नम
दरिद्रम अरियाप पेंडिर ,
तापत्तै तीरा तन्नीर ,
कोपत्तै अड़क्का वेन्दन ।
गुरु मोऴि कोळ्ळाच्चीडन
पापत्तैत् तीरा तीर्थ्थम ,
पयनिल्लै एलुंताने ।
भावार्थ :--- पुत्र जो आपातकाल में मदद नहीं करता ।
अन्न जो अधिक भूख के समय काम नहीं आता।
औरत जो दारिद्रिय न जानती ।
पानी जो प्यास न बुझाता ।
राजा जो क्रोध न दबाता ।
शिष्य जो गुरु की बात नहीं मानता
तीर्थ जो पाप नहीं मिटाता ।
ये सातों के रहने पर भी
कोई प्रयोजन नहीं हैं ।
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३। प्यार और इज्जत ही श्रेष्ठ
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ओप्पूड़न मुकमलर्न्तु उपसरित्तु उन्मै पेसी
उप्पिल्ला कूलिट्टालुम
उण्पते अमृतमाकुम।
मुप्पलमोडु पालन्नम्
मुकम कडुत्तु इडुवाराईन ,नप्पिय
पासियिनोडु कडुम पसि याकुम ताने ।।
भावार्थ :-- प्रिय मन से मुख खिलकर सत्कार
करके बिना नमक के दलिया
खिलाने पर भी वह अमृत ही होगा ।
चेहरे में कटुकता दिखाकर
दुग्धान्ना खिलाने पर भी
वह भूख कम नहीं करेगा ,
वह विष बराबर ही होगा ।
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४। कुल न बदलेगा गुण न बदलेगा
—------ कुक्कनैप पिडित्तु नालिक कूँडिनिल अडैत्तु वैत्तु
मिक्कतोर मंचल पूसी मिकु मणम तालूंतान ,
अक्कुलम वेराताम्मो अतनिडम पुणुकुंडामो
कुक्कने कूक्कनल्लार कुलन्तनिल पेरिय तामो ।
भावार्थ :--
कुत्ते को पकड़कर गंधबिलाव के पिंजड़े में
बंद कर हल्दी चूर्ण लगाकर सुगंधित करने पर
भी कुत्ता कुत्ता ही है ,न उसका कुल बदलेगा ; न उसका गुण ।।
न उसका कुल बड़ा ,
न सुगंधित द्रव दे सकता।।।
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4. आलिलै पूउँकायुम इनितरूम पलमुम
उँडेल ,सालवे पक्षी येल्लाम तन कुड़ी
एनरे वालुम ,वालीपर वंतु तेडि ,
वंतिरुप्पर कोड़ाकोडी आलिलै
याति पोनाल अंगुवंतु इरुप्पारुण्डो ।
भावार्थ :--
जब वटवृक्ष फूल -फल से
भरे होते , तब सभी पक्षी तलाश करके , वहाँ आकर बस जाएँगे ।
पतझड़ में कोई हरियालीहीनसूखे पेड़ पर नहीं रहेगा।
वैसे ही धन है ,धनी है तो नाते रिश्ते घेर लेंगे ।,
हमारे यहाँ आएँगे धन नहीं तो कोई झांककर भी न देखेंगे ।
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5. तंडामरैयिनुडन पिरंते तंड़ेनुकरा मंडूकम ।
वंडे कानत्तिरैयिरंतु वन्ते
कमल मधु उणनुम ।
पण्डे पलकियिरुंतालुम
अरियार पुल्लोर नल्लोरैक
कंडे कलित्तु अंगु उरवाडि
तम्मिर कलप्पर कटरारे ।
भावार्थ :--
मेंढक कमल फूल के तालाब में ही रहता है
पर कमल के शहद मेंढक नहीं चूसता ।
कहीं जंगल से भ्रमर आकर शहद का स्वाद लेंगे ।
शिक्षितों का महत्व पास रहनेवाले मूर्ख नहीं जानते ।
कहीं से एक ज्ञानी उन्हें पहचानकर आदर करेंगे
उनसे दोस्ती निभाएँगे ।शिक्षित और गुणी ही गुणी का आदर करेंगे ।
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६। बुद्धिहीनों को उपदेश देना हानिकारक है ।
वानरम मलैयिनिल ननैय तूक्कणम
तानोरू नेरी सोल्लत तांडिप्पि प्पियत्तिडुम
ज्ञानमुम कलवियुम नविन्र नूलकलुम
ईनरुक्कु उरैत्तिडिल इडरताकूमे ।।
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वर्षा में भीग रहे बंदर से बया ने कहा ,
”तू क्यों मेरे जैसे घर बनाकर सुरक्षित रह नहीं सकते “।
झट बंदर पेड़ पर चढ़ा और बया के घोंसले को छिन्न -भिन्न कर डाला ।
मूर्खों को उपदेश देना ख़तरे से ख़ाली नहीं ।
अपने ग्रंथों के ज्ञान उपदेश को अयोग्यों को देना दुखप्रद ही है।
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७। सत्संग में रहो
करपकत तरूवैच चार्र्नत काकमुम अमृतमुण्णुनम ।
विर्पन विवेकमुल्ल वेंदरैच चेर्नन्तार वालवार ।
इप्पुवि तन्निलोन्रु इलवु कात्त किलि पोल ,
अरपरैच चेर्नत वाऴवु वीनाकुम ।
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भावार्थ :-
कल्पतरु में रहनेवाले कौवे भी अमृत खाएगा ।
ज्ञानी राजा के सम्पर्क में जीनेवाले गरीब भी सुखी रहेंगे ।
अल्पज्ञ के संग में रहें तो सेमर के फल की
इंतज़ार में रहे तोते के समान जीवन बेकार होगा ।
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८। अपनी स्थिति न बदलो ।
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चंगु वेण तामरैक्कुत तंतैयाय इरवि तन्नीर ,
अंगतैक कोयतूविट्टाल
अलुकच्चेय तन्नीर कोल्लूम ,तूँगवान
करैयिर पोट्टाल सूरियन कायत्तक कोलवान
तंकलिं निलैमैक केट्टाल इप्पडित तयंगूवारे ।।
भावार्थ :-
श्वेत शंख रंग के कमल के माता -पिता
नीर और सूर्य हैं ।
उस फूल को तोड़ , पानी में डालें तो
वही पानी कमल को सड़ाएगा ।
ज़मीन पर डालें तो वही रवि सुखाएगा ।
वैसे ही कोई अपनी स्थिति से फिसलेगा तो हानी उठाएगा ।
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9. आज ही भला करो।
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अरुंबु कोणिडिल अतु मणम् कुन्रुमो।
करुंबु कोणिडिर् कट्टियुम पाहुमाम।
इरुंबु कोणिडिल यानैयै वेल्ललाम।
नरंबु कोणिडिल नामतर्कु एन चेय्वोम।
भावार्थ :---
फूल की कली टेढ़े होने पर भी उसका सुगंध कम नहीं होगा।
ईख टेढ़े होने पर भी उससे मीठे रस ही निकलेगा और गुड़ भी बनेगा।
लोहा टेढ़े होने पर अंकुश बनाकर हाथी को काबू में ला सकते हैं।
पर नशें खींचकर टेढ़ी होंगी तो कौन क्या कर सकता है?
अतः शरीर और नशों को स्वस्थ रखना आवश्यक है।
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10. बदलेगा पर विधि नहीं बदलेगा।
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मुडवनै मूर्खन् कोन्राल् मूर्खनै मुनितान कोल्लुम्
मडवनै वलियान कोन्राल मरलितान अवनैक् कोल्लुम।
तडवरै मुलैमातेयित तरणियिल उळ्ळोर्क्केल्लाम
मडवनै यडित्त कोलुम् वलियनैयडिक्कुम कंडाय।
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भावार्थ :--
लंगड़े को बदमाश मारेगा तो मुनीश्वर उसको मारेगा।
निर्बल को बलवान मारेगा तो यम भगवान उसको मारेगा।
इस भूमि पर सबको एक ही न्याय है।
निर्बल को पीटनेवाली छड़ी बलवान को भी पीटेगा।
विधि की विडंबना को कोई भी बदल नहीं सकता।
+++++++++++++++++++
प्रार्थना गीत
चाँद भगणवान विष्णु के मुख समान है.
चमकते सूर्य उनके चक्र सामान है.
तालाब में खिले कमल चक्षु सामान हैं.
अंजन फूल उस के शरीर समान.
2..
विष्णु अपने पेट में संसार रखा है तो
तीन कदमों से जग मापा।
वर्षा से लोकरक्षक ने गोवर्र्दन गिरी को छाता बनाया।
बाणाग्रहअग्नि दीवार से अनिरुद्ध को बचाया।
பாடல்-101
गायों के दल से भले ही बछड़ा छूट जाएँ,
वह बछड़ा अपनी माँ के पास पहुँचने में अति चतुर.
वैसे ही पूर्व-जन्म की विधि की विडम्बना ,
कर्ता तक पहुँचने में है ही चतुर.
பல்லாவுள் உய்த்து விடினும் குழக்கன்று
வல்லதாம் தாய்நாடிக் கோடலைத் - தொல்லைப்
பழவினையும் அன்ன தகைத்தேதற் செய்த
கிழவனை நாடிக் கொளற்கு
பல பசுக்களின் கூட்டத்தில் கொண்டு போய் விட்டாலும் இளைய பசுங்கன்று தன் தாயைத் தேடி அடைதலில் வல்லதாகும். அது போல முற்பிறப்பிற் செய்த பழவினையும், அவ்வினை செய்தவனைத் தேடி அடைதலில் வல்லமை யுடையதாகும்.
பாடல் 102
खूबसूरती ,जवानी,श्रेष्ठ संपत्ति,भय दिखानेवाले पद आदि हैं अस्थिर.
यह देख -समझकर भी एक भी सद्कर्म न करें तो
जन्म लेकर भी उसका जन्म
अर्थहीन बेकार ही अंत होनेवाला है.
உருவும் இளமையும் ஒண்பொருளும் உட்கும்
ஒருவழி நில்லாமை கண்டும் - ஒருவழி
ஒன்றேயும் இல்லாதான் வாழ்க்கை உடம்பிட்டு
நின்றுவீழ்ந் தக்க துடைத்து
அழகும், வாலிபமும், மேன்மையான பொருளும், பலர் அஞ்சத்தக்க மதிப்பும் ஓரிடத்தில் நிலைத்திராமையைப் பார்த்தும், யாதேனும் ஒரு வகையில் ஒரு நற்செயலும் செய்யாதவனுடைய வாழ்க்கை, உடலெடுத்துச் சில காலம் நின்று பயனில்லாது பின் அழிந்து போகும் தன்மையுடையது.
பாடல்-103
कोई भी ऐसा नहीं,जो समृद्ध जीवन न चाहता हो;
जैसे फलों का रूप -रंग -स्वाद प्राकृतिक देन है,
वैसे ही सुख-दुःख अपने-आप मिलनेवाला है,इसीलिए
जो चाहते हैं सुख-संपत्ति ,उनको चाहिए सद्कर्म करना.
வளம்பட வேண்டாதார் யார்யாரு மில்லை;
அளந்தன போகம் அவரவர் ஆற்றான்
விளங்காய் திரட்டினார் இல்லை களங் கனியைக்
காரெனச் செய்தாரும் இல்
செல்வம் முதலியவற்றால் வளமுடன் வாழ்தலை விரும்பாதவர் யாரும் உலகில் இல்லை. ஆனால் அவரவர் செய்த புண்ணியங்களுக்கு ஏற்ப அவரவர்களுடைய இன்ப நுகர்வுகள் (சுகபோகங்கள்) வரையறை செய்யப்பட்டுள்ளன. விளாங்காயை உருண்டை வடிவமாகச் செய்தவரும் இல்லை களாப்பழத்தைக் கருமையுடையதாகச் செய்தவரும் இல்லை! (விளாங்காய் ஒருவரால் திரட்டப்படாமல் இயற்கையாகத் திரண்டிருப்பது போலவும், களாப்பழம் ஒருவரால் கறுப்பாக்கப்படாமல் தானே கறுப்பாய் இருப்பது போலவும், அவரவர் இன்பமும் அவரவர் புண்ணிய இயற்கையால் அமைந்துள்ளது. ஆகவே இன்பம் விரும்புவோர் நல்வினையே செய்தல் வேண்டும்).
பாடல்-104
जो बुराई आती हैं ,उनको ऋषि-मुनि भी रोक नहीं सकते .वैसे ही
आनेवाली भलाइयों को कोई भी रोक नहीं सकते.
वर्षा न हुयी ,तो कोई भी बरसा नहीं सकते;
जोर की वर्षा हो तो कोई भी रोक नहीं सकते.
உறற்பால நீக்கல் உறுவர்க்கும் ஆகா,
பெறற்பால அனையவும் அன்னவாம் மாரி
வறப்பின் தருவாரும் இல்லை அதனைச்
சிறப்பின் தணிப்பாரும் இல்.
வந்து சேரும் தீமைகளை முனிவர்களாலும் தடுக்க முடியாது! அவ்வாறே பெறக் கூடிய நன்மைகளையும் யாராலும் தடுக்க முடியாது! மழை பெய்யாது ஒழிந்தால் அதனைப் பெய்விப்பாரும் இல்லை! அதிகமாகப் பெய்தால் அதனைத் தடுத்து நிறுத்துவாரும் இல்லை!
பாடல்-105
ताड के पेड़ समान,जो सम्मान के शिखर पर है ,
वे भी तिनके समान सम्मान खो बैठेंगे.
इसके कारण पूर्व जन्म के बद्कर्म के फल ही है.
और कोई कारण है नहीं.
தினைத்துணைய ராகித்தந் தேசுள் அடக்கிப்
பனைத்துணையார் வைகலும் பாடழிந்து வாழ்வர்;
நினைப்பக் கிடந்தது எவனுண்டாம் மேலை
வினைப்பயன் அல்லால் பிற.
பனை அளவாக உயர்ந்த பெருமை மிக்கவரும் தினையளவாகச் சிறுத்துச் சிறுமையுற்று வருந்தி வாழ்வர்! இதற்குக் காரணம் முற்பிறப்பில் செய்த தீவினையின் பயனேயன்றி வேறில்லை. (உயர்ந்தோர் தாழ்ந்தோர் ஆவதற்குக் காரணம் முன் செய்வினையே).
பாடல்-106
आप जानते हैं ,कई चतुर होशियार अल्प आयु में मर जाते हैं,
अशिक्षित लोग दीर्घ जीवन बिताते हैं,
इसका कारण सार हीन होना ही है,
रस हीनों को यम जीने देते हैं.
பல்லான்ற கேள்விப் பயனுணர்வார் வீயவும்
கல்லாதார் வாழ்வதும் அறிதிரேல் - கல்லாதார்
சேதனம் என்னுமச் சாறகத் தின்மையால்
கோதென்று கொள்ளாதாம் கூற்று.
பல மேன்மைப்பட்ட நூற்கேள்விகளின் பயனை அறிந்தவர்கள் இறப்பதையும், அறிவீனர்கள் நீடு வாழ்வதையும் அறிந்திருக்கிறீர்கள்! இதற்குக் காரணம், அறிவு என்னும் 'சாறு' கல்லாதார் உள்ளத்தில் இல்லாமையால் அவர்களை வெறும் 'சக்கை' என்று நினைத்து எமன் கொள்வதில்லை.
பாடல்-107
अदम्ब नामक लताओं को हंस तोड़ते हैं,
लहरों वाले सागर के किनारे पर रहनेवाले नृप!जान लो.
बड़े महल में रहनेवाले , और उसके सामने खड़े होकर भीख माँगनेवाले ,
ये सब पूर्व जन्म के पाप -पुण्य के फल ही है.
இடும்பைகூர் நெஞ்சத்தார் எல்லாரும் காண
நெடுங்கடை நின்றுழல்வ தெல்லாம் - அடம்பப்பூ
அன்னங் கிழிக்கும் அலைகடல் தண்சேர்ப்ப
முன்னை வினையாய் விடும்.
அடம்பங் கொடியின் மலர்களை அன்னங்கள் கோதிக் கிழிக்கும் அலைகடலினது குளிர்ச்சியாகிய கரையையுடைய மன்னனே! சிலர் துன்பம் மிகுந்த மனமுடையவராகி யாவரும் காண, பெரிய வீடுகளின் தலைவாயிலில் நின்று பிச்சை கேட்டு வருந்தும் செயல் எல்லாம் முற்பிறப்பிற் செய்த தீவினையின் பயனே ஆகும். (வறுமைக்குக் காரணம் தீவினையே).
பாடல்-108
शहद और लम्बे समुद्रके किनारे पर शासन करनेवाले नृप!
जान-समझ लो,
बुद्धिमान चतुर होशियार भी अपयश के कर्म करते हैं,
इसके कारण भी पूर्व-जन्म के कर्म-फल ही हैं.
அறியாரும் அல்லர் அறிவ தறிந்தும்
பழியோடும் பட்டவை செய்தல் - வளியோடி
நெய்தல் நறவுயிர்க்கும் நீள்கடல் தண்சேர்ப்ப!
செய்த வினையான் வரும்.
காற்று வீசி நெய்தல் நிலங்களிலே தேனைச் சிந்தும் நீண்ட கடலினது குளிர்ச்சி பொருந்திய கரையையுடைய வேந்தனே! அறிவீனராக இன்றி அறிவுடையவராகத் திகழ்ந்தாலும் சிலர், பழியுடன் கூடிய செயல்களைச் செய்தல், முற்பிறப்பிற் செய்த தீவினையின் விளைவாகும். (நல்லறிவு கெடுதற்கும் காரணம் தீவினையே).
பாடல்-109
समुद्र से घेरे अग जग में जीनेवाले सब,
ज़रा भी हानि न चाहेंगे;
भला ही चाहेंगे; फिर भी
पूर्व-जन्म के कर्म-फल के अनुसार
जो आना है,आजायेगा.
ஈண்டுநீர் வையத்துள் எல்லாரும எத்துணையும்
வேண்டார்மன் தீய; விழைபயன் நல்லவை;
வேண்டினும் வேண்டா விடினும் உறற்பால
தீண்டா விடுதல் அரிது.
மிகுதியான நீரையுடைய கடலால் சூழப்பட்ட இவ்வுலகில் வாழும் எல்லாரும் சிறிய தீமையையும் விரும்பமாட்டார்கள். நல்லதையே விரும்புவார்கள். ஆனால் அவர்கள் விரும்பினாலும் விரும்பாவிட்டாலும் முன்வினைப் பயனால் வரத்தக்கவை வராமற் போவதில்லை.
பாடல்-110
गर्भ में उत्पन्न विधि शिरोरेखा कर्म फल न होगा कभी कम.
न बढेगा;न घटेगा; नियम न बदलेगा;
जो भोगना है ,वे उचित समय पर आ ही जाएगा;
फिर भी मनुष्य क्यों होता हैं दुखी अपने अंतिम समय पर;
சிறுகா பெருகா முறைபிறழ்ந்து வாரா
உறுகாலத் தூற்றாகா ஆமிடத்தே யாகும்
சிறுகாலைப் பட்ட பொறியும் அதனால்
இறுகாலத் தென்னை பரிவு.
கரு அமைந்த காலத்திலேயே உண்டான ஊழ் வினைகள் குறையமாட்டா வளரமாட்டா முறைமாறி வரமாட்டா துன்பம் வந்த காலத்தே ஊன்றுகோலாக மாட்டா எவையும் வரவேண்டிய காலத்தே வந்து சேரும். அப்படியிருக்க மரண காலத்தில் ஒருவன் வருந்துவது ஏன்?
तमिल हीरे पद्य
शिक्षा ---
१. तमिल मूल --आर्कली उलकत्तु मक्कटकेल्लाम ओतलिन चिरन्तनरू ओळुक्क मुड मै।
कवि --मदुरै कुडलूर किलार ; पति नेन कील कनक्कु ग्रन्थ का नाम :--मुतु मोलिककाञ्ची।
हिंदी अनुवाद --
समुद्र से घिरे इस संसार में ,शिक्षा से बढ़कर कोई है तो अनुशासन। .बड़े बड़े ग्रन्थ पढ़कर
बिना अनुशासन के कोई लाभ नहीं है। बदनाम ही शेष रहेगा।
२.धर्म कर्म -- कवियित्री --अव्वैयार ग्रन्थ --न ळवलि।
आरु इडुम मेडुम मडुवाउमाम शेल्वम
मारिडुम एरिडुम मानिलात्तीर --सोरिडुम
तांणीरूम वारुं तरुम मे सारबाका
उल निरमै विरुम उयरन्तु।
हिंदी अनुवाद ---
नदी के बहते बहते रेत के टीले और गड्ढे बनते हैं।
वैसे ही धन घटकर बढ़कर चला जाएगा। मनुष्य का धर्म कर्म
जैसे अन्नदान ,नीर दान आदि स्थायी सुख देगा। धन अस्थायी है.
संतोष देगा , अतः पुण्य कर्म फल स्थायी है। धन न बचाकर दान देने से
धन घटेगा नहीं ,बढ़ेगा ही।
सुख चालीसा :-
1.
त्रिनेत्र शिव की प्रार्थना सुख प्रद;तुलसी माला पहने विष्णु की प्रार्थना सुख प्रद ब्रह्मा की स्तुति करना सुख प्रद भिक्षा लेकर भी विद्या-अध्ययन करना सुखप्रद।
2.
भीख माँगकर भी शिक्षा शिक्षा पाना सुखप्रद। सीखे ग्रन्थ समय पर काम आना सुखप्रद। मोती सम सुन्दर दाँतवाली के शब्द सुखप्रद। शिक्षित महानों के संग रहना सुखप्रद।
3
धनियों का दान -धर्म सुख-प्रद। अपने सामान मनवाली पत्नी मिलना सुखप्रद। गृहस्थ जीवन दुखमय हो तो सन्यासी धर्म अपनाना सुखप्रद।
4.
आज्ञाकारी संतान पाना सुखप्रद। अपराध मार्ग पर न चलकर हर दिन, सुशिक्षा पाने में लगना सुखप्रद।
निजी हल और बैल के किसान की खेती सुखप्रद। जिस दिशा में जाते हैं ,वहाँ मित्रता पाना सुखप्रद।
5
गज सेना के राजा का रण सुखप्रद। माँसाहार न खाना सुखप्रद। नदी के किनारे खेत वाले शहर-गाँव सुखप्रद। श्रेष्ठ सज्जन लोगों का आदर पाना सुखप्रद।
6
एक जीव की हत्या न करना सुखप्रद है | योग्य को कुरीती से पुरस्कार न देना सुखप्रद है | न्यायप्रिय तटस्थ नृप बनना सुखप्रद है | किसी से अच्छाई को छोड़कर बुराई न कहना सुखप्रद है |
7 .
जितना हो सके उतना धर्म कर्म करना सुखप्रद है| सद्विचारों के लाभप्रद वचन सुखप्रद हैं |अशिक्षित -नीच अहंकारी लोगों के संग में न रहना सुखप्रद है |
8
विप्रों को वेद पढ़ना सुखप्रद है | गृहस्थों को प्यार और आसक्त रहना सुखप्रद है | सैनिकों को वीरता सुखप्रद है | भले ही पिता हो उनके बुरे कर्मको न मानना ही सुखप्रद है |
9
वीरों को सबल बलिष्ट घोडा सुखप्रद है | राजाओं को काले गुस्सैल हाथी की लड़ाई देखना सुखप्रद है.
प्यारभरेलोगोंकीबातेंसुनना सुखप्रद है |
10.
अपने निकटतम दोस्तों की अमीरी सुखप्रद है | असीम आकाश के पूर्णचंद्र देखनासुखप्रद है | निरपराध निर्दोष प्रेम और कर्म करना सुखप्रद है |
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तमिल साहित्य के सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ है --नालडियार अर्थात चार चरण के पद्य.यह नीति ग्रंथों में श्रेष्ठ है. इस ग्रन्थ में
एक चमत्कार है. एक जमाने में पांडियराजा के दरबार में अकाल पीड़ित आठ हज़ार कवि थे. अकाल के बाद भी राजा ने उन कवियों को विदा नहीं किया. कवियों ने बिना राजा से बताये ग्रंथों को वेकै नदी में फ़ेंक दिया.और राजा से बिना बताये चले गए.नदी में फेंके ग्रंथों में नालाडियार ग्रन्थ मात्र उलटी दिशा में आया और किनारे पर लग गया.नालाडियार के चार सौ पद्यों को पदुमनार नामक कवि ने संग्रह किया.
उनमें शिक्षा सम्बन्धी पद्यों का हिंदी भावानुवाद देखिये.
शिक्षा ही सुन्दर है
r
लोग सोचते हैं ,सर के केश में सुन्दरता है,
इत्रवगैरह सुगन्धित वस्तू लगाने में और ,
रंगबिरंगे कपड़ों में सुन्दरता है.वास्तव में
इन सब की खूबसूरती सच्ची नहीं है.
सच्ची सुन्दरता शिक्षा प्राप्त करने में है.
शिक्षा ही हमें पक्की राय देती है --
अच्छी चालचलन सिखाती है.
शील सिखाती है.
தமிழ் மூலம்
குஞ்சி அழகும் கொடுந்தானைக் கோட்டழகும்
மஞ்சள் அழகும் அழகல்ல-நெஞ்சத்து
நல்லம் யாம் என்னும் நடுவுநிலைமையால்,
கல்வி அழகே அழகு.
௨-/2./२
शिक्षा से संसार का कल्याण हैं.
शिक्षा ही ऐसी बात है,
जो दूसरों को देने से कम नहीं होगी.
मनुष्य का बढ़प्पन शिक्षा देने में है.
शिक्षा के संग्रह से कोई बुराई नहीं होगी.
सप्तलोकों में शिक्षा-सम
बूटी भोलापन,
बेवकूफी नष्ट करने ,
और कोई नहीं है.
இம்மை பயக்குமால்,ஈயக்குறைவின்றால்,
தம்மை விளக்குமால் தாமுளராக் கேடின்றால்,
emmai உலகத்தும் யாம் காணோம் கல்வி போல்
மம்மர் அறுக்கும் மருந்து .