उनका जीवन सैद्धांतिक और प्रायोगिक आधार पर है. भारत में सिद्धांत का जितना महत्त्व है,उतना प्रायोगिक का नहीं; सरकारी पाठशालाओं में विज्ञान सिखाते हैं,जहाँ प्रायोगिक वर्ग नहीं है;वहां प्रयोग शाला भी नहीं है.
कोरे सिद्धांत काम का नहीं है. आधुनिक युग में ज्ञान का विस्फोट हो गया.इतना सोचता हैं,कि देवकी और vasudev को अलग-अलग कोठी में रखें तो कृष्णा का जन्म ही नहीं होता. या गर्भ-पात का दवा देता रहता.एक बच्चे का जन्मा लेना ,उसे मारना यह तो प्रायोगिक नहीं है; राम का जन्म भी आजकल का स्पर्म बैंक का पूर्व रूप. अतः शादी सभ्यता का बंधन है; संयम की जरूरत हैं. वह तो प्राकृतिक उत्तेजना है. ब्रह्मचारी का पाठ रुष्य श्रुंग को सिखाया गया;केवल सैद्धांतिक ;प्रयोग में असफल ही रहा. साmaaजिक बंधन ,क़ानून तोड़ना आजकल एक डाकू और एक खूनी,एक भ्रष्टाचार मंत्री के लिए आसान है तो ईश्वर की दी हुयी प्राकृतिक इच्छा को अपने संयम से या कोई धार्मिक या जाति बंधन से दबाना असंभव है;इसीलिये जब शादी की उम्र बढ़ाई गयी तब से बलात्कार,तलाक,शादी के बाद दुसरे पुरुष से सम्बन्ध,दूsरी स्त्री के सम्बन्ध से अपनी पत्नी की हत्या,दूsरे पति या पुरुष से सम्बन्ध रखकर अपने पति की ह्त्या ये सब हो रही है. यह तो आजकल की बात नहीं है; बिना पिता के बच्चे का जन्मा होना ईसाई धर्म में है;संत कबीर की जीवनी में है.शीरड़ी के जीवन में है.महाभारत में तो पुत्रोत्पत्ति कैसे हुई,इसकी चर्चा करना देव्निन्दा है. आधुनिक बुद्धिबल बहुत सोचता है. अतः हमारे पूर्वजों ने सोच समझकर समाज कल्याण के लिए सयानी होने के पहले ही शादी की व्यवस्था बना रखीं है.उसमें केवल पुरुषों के लिए दूसरी शादी करने की अनुमति है. इसे नारी को भी लागू करने पर शादी की उम्र १५ साल ही उचित है,जिससे बलात्कार कम होगा.इतना ही नहीं ,तीस साल की उम्र अंग शिथिल हो जाता है. मानसिक नियंत्रण या हस्त मैथुन पुरुषों में हीनता प्रवृत्ति लाती है; परिवार में अशांति,पति-पत्नी में झगडा,गैर पुरुष सम्बन्ध ,तलाक आदि. देवदासी प्रथा,बहु पत्नी ,बहु-पति ये सब हामारी पौराणिक कथाओं में,पुरानों में,इतिहास में है. कम उम्र की शादी से मोहनदास करमचन्द की जीवनी तरक्की हुई.विवाहिक जीवन में वे सानंद रहे; जब परिवार में पति-पत्नी दोनों में संदेह का ज्वार-भाटा होता रहता है,वह मनुष्य जीवन के सर्वांगीण विकास में बाधक रहेगा ही. आजकल यही हो रहा है तनाव मय पारिवारिक जीवन.
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