देश ,व्यक्ति ,समाज
जग की भलाई ,
बमों की संस्कृति से नहीं ;
भगवान के ध्यान पर निर्भर;
बागवान ही भगवान
वह कृपा की वर्षा न करेगा तो
जीवन रूपी पेड़ सूख जाएगा
मनुष्य का सुख होगा नदारद।
जन्म हुआ कैसे ?
नहीं, जननी -जनक की इच्छानुकूल।
अतः एक मनुष्येतर शक्ति ही रचना करता हैं।
अति सूक्ष्म बिंदु बनता है जुड़कर बच्चा।
चाहिए हमें सुपुत्र -सुपुत्री तो
गहरे मन से करनी चाहिए
उस सर्वेश्वर का स्मरण!
जन्म के ,पूर्व जन्म के. बद कर्म के
दुष्फल का तीव्र प्रभाव तो घटेगा ही.
दिल्लगी नहीं यह
यह तो बात दिल की।
स्वानुभूति की ;
ईश्वरीय शक्ति परोक्ष काम करती है.
प्रत्यक्ष तो भगवान देते नहीं ,
पुरस्कार या दंड।
पर भोगते हैं सुख या दुःख
सभी मानव जग के.
वही ईश्वरीय प्रभाव।
यह तो क़ानून नहीं सिखाता ;
शासक नहीं सिखाता ;
धर्म ग्रन्थ तो सब नहीं पढ़ते।
आस -पास पड़ोस अमीर-गरीब का दुःख -सुख
देखो ; अमीर का बेटा होता है दुर्बल.
करोड़ पति का इकलौता बेटा
कार आक्सिडेंट में काल के शिकार बन जाता।
देखो मनुष्येच्छा कभी न होती पूरी।
संतोष से जीना हो तो रोज़ करो ईश्वर की प्रार्थना।
शान्ति के जीवन चाहते हो तो करो ईश्वर का ध्यान।
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