திருவாசகம் -20 --25
तिरुवाचकम् --१६ से २० तक
thiruvachakam --16 se 20 tak
शिवनवनेन सिंतनैयुल निनर अतनाल ---शिव भगवान मेरे दिल में हैं इसीलिये
अवनरूलाले एवं ताळ वणंगी च ----उनकी कृपा कटाक्ष से उनके श्री पाद पर कामना करके
चिनतै मकिऴ च शिवपुराणन्तने -मानसिक आनन्द होने शिवपुराण को
मुन्तै विनै मुलुतुम ओय --पूर्व जन्म कर्म फल हरने
कण्णुलतान रन करुणैक कनकाट्ट वंतेयति --ललाट में आँखोंवाले (त्रिनेत्र ) शिवभगवान के कृपा कटाक्ष दिखाने से उनके सामने आकर
एन्नुतरकेट्टा एलिलार कललिरैंची ---चिंतनातीत सुन्दर रूप के शिव के श्री पाद पर वंदना करके
अति सुन्दर ईश्वर की खुद की कृपा दृष्टी पड़ने से ही
मनुष्य उनकी याद में ब्रह्मानंद की अनुभूति कर सकता है.
ईश्वर के यशोगान करने से पूर्व जन्म और इस जन्म के
कर्मफल से बचकर जी सकते हैं.
ईश्वर की याद मन में आने के लिए भी ईश्वर की कृपा आवश्यक है.
माणिक्कवाचकर के मन में आकर शिव वास करने लग गये.
ऐसी कृपा ही ब्रह्मानंद हैं.
इसी कारण से ही आदि अनादि शिव की सराहना करने कवि सन्नद्ध हैं.
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