ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ।
हरि ॐ।
अनंत शक्ति मान।
कष्ट नष्ट करने वाला।
सुख देनेवाला
भक्त रक्षक भक्त वत्सल
जग रक्षक जगन्नाथ।
लोकनाथ! विश्वनाथ!
अरूप, अग जग रक्षक।
सत्य रक्षक असत्य भक्षक।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ।
हरि ॐ।
अनंत शक्ति मान।
कष्ट नष्ट करने वाला।
सुख देनेवाला
भक्त रक्षक भक्त वत्सल
जग रक्षक जगन्नाथ।
लोकनाथ! विश्वनाथ!
अरूप, अग जग रक्षक।
सत्य रक्षक असत्य भक्षक।
मानव में मानवता हैं। மனிதனிடத்தில் மனிதநேயம் உள்ளது.
मानव में दानी है।
மனிதனில் கொடை வள்ளல் உள்ளான்
मनितनिल् कोडैवळ्ळल् उळ्ळान्।
मानव में सत्य है। மனிதனில் சத்தியம் உள்ளது
मनितनिल् सत्तियम् उळ्ळतु।
मानव में भक्ति हैं। -மனிதனில் பக்தி உள்ளது.
मनितनिल् भक्ति उळ्ळतु।
मानव खुद परमात्मा है।
மனிதன் தானே பரமாத்மா.
मनितन् ताने परमात्मा।
वह ईश्वर की तलाश में
அவன் கடவுளைத் தேடி
अवन् कडवुळैत्तेडि
मंदिर, मस्ज़िद, गिरजाघर जाता है।
ஆலயம் மசூதி மாதா கோவில் செல்கிறான்.
आलयम्,मसूदी,माता कोविल् चेल्किरान्
पवित्र स्थानों की यात्रा करता है।
புனித ஸ்தலங்களுக்கு பயணம் செய்கிறான்.
पुनित स्थलंगळुक्कुप् पयणम्
चेलकिरान्
पुण्य स्थलों में भीड़ ज़्यादा है।
புண்ணிய ஸ்தலங்களில் கூட்டம்அதிகம்
पुण्य स्थलंगलिल् कूट्टम् अधिकम्।
करोड़ों लोग जमा होते हैं।
கோடிக்கணக்கில் மக்கள் ஒன்று சேர்கின்றனர்.
कोडिक्कणक्किल् मक्कळ् ऒन्रु लसेर।किन्रनऱ्।
करोड़ों की आमदनी होती हैं।
கோடிக்கணக்கில் வருமானம் வருகிறது
कोडिक्कणक्किल् वरमानम् वरुकिऱतु।
कोडिक्कणक्किल् वरुमावनं्वरुकिऱतु।।
बहुत सोच-समझकर
மிகவும் சிந்தித்து புரிந்து
मिकवुम् चिंतित्तु पुरिंतु
चिंतन मंथन करें तो சிந்தனைகள் அலசினால் चिंतनैकळ् अलसिनाल्
विश्व ही स्वर्ग है। உலகம் தான் சுவர்க்கம்.
उलकम् तान् सुवर्रकम्।
पर नहीं , क्यों? ஆனால் இல்லை ஏன்?
आधार इल्लै एन्।
मानव में मानवता नहीं
மனிதனிடத்தில் மனிதநேயம் இல்லை.
मनितनिडत्तिल् मानित नेयम्।
अहंकार है।
ஆணவம் இருக்கிறது.
आणवम् इरुक्किऱतु।
स्वार्थ है।
சுயநலம் இருக்கிறது.
सुयनलम् इरुक्किऱतु।
ईश्वर के नाम व्यापार चलता है।
கடவுளின் பெயரில் வியாபாரம்.
कडवुळिन् पॆयरिल् वियापारम्।
धन कमाने की सारी युक्तियां
பணம் சம்பாதிக்கும் पणम् संपादिक्कुम्
அனைத்து யுக்திகள். अनैत्तु युक्तिक्ल।
योजनाएँ बनाकर मंदिर की स्थापना।
திட்டங்கள் அமைத்து ஆலயம் நிறுவுதல்.
तिट्टंगळ् Amaittu
मंदिर की स्थापना में
भक्त, श्रद्धालू
ஆலயம் நிறுவ आलयम् निऱुव
பக்தர்கள் சிரத்தை உள்ளவர்கள்
भक्तर्कळ् श्रद्दैकल् उळ्ळवर्कऴ।
दुखी, धनी भ्रष्टाचारी, धनी रोगी
துன்பப்படும் दुखी
பணக்கார पणक्कार
ஊழல்வாதிகள் ऊऴल्वावदिकळ्
பணக்கார நோயாளிகள்
पणक्कार नोयाळिकळ्
पुण्य पाप के विचार में दान देते हैं।
புண்ணிய பாவங்கள் எண்ணி நன்கொடை அளிக்கிறார்கள்.
पुण्य पावंगळ् ऍण्णि नन्कोडै अळिक्किरार्कळ्।
आश्चर्य की बात है कि
ஆச்சரியமான விஷயம்
आश्चर।समान विषयम्।
इतना बड़ा विशाल मंदिर,
பல பெரிய விசாலமான ஆலயங்கள்
पर पॆरिय विशाल मान आलयंकळ।
मस्जिद, गिरजाघर कैसे बना?
மசூதிகள் சர்ச்கள் எப்படி ஆனது?
मसूदिकळ्।, चर्च्कळ्
एक सूक्ष्म शक्ति
ஒரு சூக்ஷ்ம சக்தி
एक सूक्ष्म शक्ति
दुनिया में स्थापित करती है कि
உலகில் நிறுவுகிறது.
उलकिल् निरुवुकिरतु।
मनुष्येतर शक्ति विद्यमान है।
மனிதனுக்கு அப்பாற்பட்ட சக்தி
मनितनुक्कु अप्पाऱ्पट्ट शक्ति
अमानुषीय एक ऊर्जा हैं।
அமானுஷ்ய சக்தி
अमानुषीय शक्ति।
उसकी कठपुतली है मानव।
அதன் கைப்பாவை மனிதன்.
अतन् कैप्पावै मनितन् ।
एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक
सनातन धर्म
हिंदू मज़हब।
धर्म विश्वभर के लिए
आम सिद्धांत।
हिंदू मज़हब तो
किसको मानना है।
तिलक में भेद।
तमिल अष्टोत्त्रम्
संस्कृत अष्टोत्रम।
नगर मंदिर
ग्राम मंदिर।
शिव संप्रदाय
वीर शैव
लिंगायत समुदाय
सभी मजहबों में भेद।
पांडिचेरी में
चेट्टियार कोयिल
मुदलियार को मिल
एकता नहीं
पर धर्म तो सब के लिए।
मज़हब जो भी हो भेदभाव अधिक।
तमिल भगवान विशाल या संकुचित।
धर्म अलग है,
मत/ मजहब अलग है।
जयललिता को माता वेलांकंन्नि
के वेश में ईसाई नहीं मानेगा।
पर हिंदू मंदिर बनाता हे।
सोनिया गांधी का मंदिर।
सनातन धर्म
हिंदू मज़हब।
ईसाई धर्म नहीं मजहब।
सिक्ख मज़हब
धर्म का अर्थ व्यापक।
मज़हब संकुचित।
वायु भगवान सकल जीव राशी रक्षक।
ईसाई एक अमुक रक्षक।
अल्ला अमुक रक्षक।
वायु धर्म।
वायु के बिना सकल जीव राशी
जी नहीं सकते।
टट्टी के बिना घर नहीं।
मोरे के बिना घर नहीं
पर पूजा रूम अनिवार्य नहीं।
मानव धर्म पालन अनिवार्य।
देश भक्ति अनिवार्य।
मज़हब तो अनिवार्य नहीं।
तमिल हिंदी सेवा
தமிழ் ஹிந்தி பணி
आज लोकतंत्र दिवस। ---இன்று குடியரசு நாள்.
इन्दु कुडियरसु नाळ्।
सभी नागरिकों को समान अधिकार।
அனைத்து குடிமக்களுக்கும் சம உரிமை.
अनैत्तु कुडिमक्कळुक्कुम् समय उऱिमै।
अधिकार है- ==உரிமை இருக்கிறது.
समान शिक्षा प्राप्त करने,சமத்துவ கல்வி பெற
मत्तुव कल्वि पेऱ।
मनमाने प्रांत में बसने =மனம் ஏற்கும் கல்வி பெற
मनम् एऱकुम् कल्वि पेऱ।
मनमाना व्यापार करने =மனம் ஏற்கும் தொழில் புரிய
मनमेर्कुम् तोऴिल पुरिया
मनम् एऱ्कुम् तोऴिल् पुरिय।
चुनाव लडने मत देने। தேர்தலில் போட்டியிட ஓட்டுப் போட
तेर्तलिल पोट्टी पोंड,
देखिए ईश्वरीय लीला। பாருங்கள் கடவுளின் லீலையை
पारुंगळ् कडवुळिन् लीलैयै।
पहाड़, नदी, बुद्धि लब्धि,
மலை ஆறுகள் அறிவுத் திறன்
मैं, आऱुकळ् , अऱिउत्तिरन्।
तन की स्वस्थ अस्वस्थ स्थिति।
உடல் ஆரோக்கியம் , ஆரோக்யமின்மை
उडल् , आरोग्यंं आरोग्यमिन्मै
मनो विकार, चिंतन विचार।
மன மாற்றங்கள் சிந்தனைகள் எண்ணங்கள்
मंमाट्रंगळ् चिंतनैकळ् ऍण्णंगळ्
क्षमता अक्षमता में कितने भेद।
திறமை திறமையின்மை எத்தனை வேறுபாடுகள்.
तिऱमै, तिऱमैयिन्मै ऍत्तनै वेरुपाडुकळ्।
सहोदर रावण और विभीषण,
சகோதரர்கள் இராவணன் விபீஷணன்
सहोदर्रकळ् इरावणन् विभीषणन्
मुनि वशिष्ठ और विश्वामित्र
முனிவரர் வஷிஷ்டர் விஸ்வாமித்திரர்
पांडव कौरव में रिश्ते
பாண்டவர் கௌரவர் உறவுகள்
पांडवर् गौरवर् उऱवुकळ्
विदुर के गुण, सुयोधन में नहीं।
விதுரர் குணங்கள் துர்யோதனன் குணங்கள்.
विदुरर् दुर्योधन गुणंगळ्
समान अधिकार प्राप्त नागरिक
சமத்துவ அதிகாரம் பெற்ற குடிமக்கள்
समत्तुव अधिकारम् पेट्ऱ कुडिमक्कळ्
कूड़े फेंकने में अनुशासन नहीं,
குப்பைகள் எரிய ஒழுக்கம் இல்லை.
कुप्पैकळ् ऍरिय ऒळुक्कम् इल्लै।
एक ही वर्ग अंक भेद,
ஒரே வகுப்பறை மதிப்பெண் வேறுபாடுகள்
अंग रंग आकार भैद।
உடல் நிறம் உருவ வேறுபாடுகள்.
उडल् निऱम् उरुव वेरुपाडुकळ्
ईश्वर की सूक्ष्मता में एकता ,
கடவுளின் சூட்சுமத்தில் ஒற்றுமை
कडवुळिन् सूट्सुमत्तिल् ऒट्रुमै।
सृष्टि की बनावट में एकता,
पडैप्पिन अमैप्पिल् ऒट्रुमै।
படைப்பின் அமைப்பில் ஒற்றுமை
है तो मानव धर्म बुद्धि,
மனித அறத்தின் அறிவில் இருக்கிறது.
मानित अऱत्तिन् अऱिविल इरुक्किऱतु।
वसुधैव कुटुंबकम्।
வையகம் ஒரு குடும்பம்.
वैयकम् ऒरु कुटुंबम् ।
सर्वूजना सुखियों भवन्तु।
அனைத்து மக்களும் சுகமாக இருக்கவேண்டும்.
अनैत्तु मक्कळुम सुकमाक इरुक्कवेंडुम्
मानव की मानवता।
மனிதனின் மனிதத்துவம்.
मनितनिन् मनिततत्तुवम्
दल अनेक =कट्चिकळ् अनेकम्
नेता और सिद्धांत अनेक।
தலைவர்கள் கொள்கைகள் அனேகம்.तलैवर्कळ् कोळ्कैकळ् अनेकम्
मज़हब अनेक,
மதங்கள் அனேகம்
मतंगळ् अनेकम्
ईश्वर अनेक पर
கடவுள் அனேகம் कडवुळ् अनेकम्
ஆனால் आधार
विश्व-कल्याण में विचार एक।
உலக நலனில் எண்ணங்கள் ஒன்றே.
शुल्क नलनिल् ऍण्णंगळ् ऒण्ऱे।
वही विशिष्ट ज्ञान चक्षु,
அதுதான் சிறப்பான அறிவுக் கண்.
अतुतान् चिऱप्पान अऱिवुक्कण्
ईश्वरीय देन। கடவுள் அளித்தது
कडवुळ् अळित्ततु।
निष्कर्ष முடிவு मडिवु
सब्हिं नचावत राम गोसाईं।।
அனைவரையும் ஆட்டி வைப்பவன் ஆண்டவன்.
अनैवरैयुम् आट्टिवैप्पवन् आंडवने।
स्वरचित भाविभिव्यक्ति।
पऴनि। एस . अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति।
ஹர
तमिल हिंदी सेवा
++++++++++
एस.अनंतकृष्णन
का नमस्ते वणक्कम्।
शीर्षक -- कदम कदम बढ़ाए जा।
विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी स्वतंत्र शैली
लक्ष्य == इलक्कु, कुरिक्कोळ्
=============
------
कदम कदम बढ़ाए जा।==
ओव्वोरु कालडि वैत्तु
मुन्ने चेल्।
मंजिल तक पहुंचने तक= कुरिक्कोळै अडैयुम वरै।
मुड़कर न देखना।==तिरुंबिप्पार्क्काते।।
मुड़कर देखने से==तिरुंबिप्पार्प्पताल्
कोई उपलक्ष्य मोहित करेगा तो = एतावतु तुणै लक्षियम् कवर्न्ताल्
प्रधान लक्ष्य तक पहुंचना कठिन।=पिरधान लक्ष्यत्तै अडैवतु कठिनम्।
कभी मैं ने एक दोहा सीखा।= ऍप्पोतो ओरु ईरडि कट्रेन।
चींटी चावल लेकर चली।
ऍऱुंबु करिहिं ऍडुत्तुच्चेन्रतु।
बीच में दाल मिला।=
नडुवुल् परुप्पु किडैत्ततु।
चींटी दोनों खो बैठी। =
ऍरु़बु इरंडैयुम् इऴंततु।
कदम कदम पर सावधान रहना।
ओव्वोरु कालडियैयुम् ऍच्चरिक्कैयाक वैक्कवुम्।
खतरे का सामना करना।==
अभायत्तै ऍतिर्क्कवुम्।
लालच में न पड़ना।
पेरासैप्पडवेंडाम्।
कदम कदम पर विचित्रता,
ओव्वोरु कालडियिलुम् विचित्तिरम्।
ताज़ा मोह, =पुत्तम् पुतिय मोहम्।
ताजा आकर्षण।=पुत्तम् पुतिय कवर्च्चि।
लक्ष्य से बड़ा मिलने का भ्रम।
लक्षियत्ते विड पेरिताकक्किडैक्कुम् भ्रमै।।
न विचलित होना।==
तयंगाते।
कदम कदम बढ़ाए जाना।
ओव्वोरु अडियाक मुन्नेरिच्चेल।
लोभ दिखाते कुछ लोग।
पेरासै काट्टुवोर सिलर्।
भय दिखाते कुछ लोग।
मतम् काट्टुवोर सिलर्।
चमक-धमक मार्ग पर है तो
ऒलि पळपळप्पु वऴियिल्
न देना तू ध्यान।।
अतिल् कवनम् चेऴुत्ताते।
कदम कदम बढ़ाए जा।
ओव्वोरु हम अडियाक मुन्ने चेल्।
एस.अनंतकृष्णन,चैन्नै द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना
नमस्ते वणक्कम्।
तमिल हिंदी सीखिए।
आजकल आध्यात्मिक संयम के कम महत्व।
चित्रपट के कामान्ध के गीतों का महत्व ।
अतः लौकिक चिंतन मनुष्य के दुःखों के परम कारण होते हैं।
जैन कवि तिरुवळ्ळुवर के नैतिक ग्रंथ में
अऴुक्कारु =ईर्ष्या
अवा=इच्छा
वेकुळि =क्रोध
इन्नाचोल =कठोर शब्द
नानगुम =चारों
इऴुक्का =स्थान
इयन्रतु --ं देना ही
अऱम् =धर्म है।
ईर्ष्या , मन मानी इच्छा, क्रोध,कठोर शब्द आदि चारों को मन में स्थान न देना ही धर्म है।
धर्म और मजहब में बड़ा अंतर है।
धर्म में मानवता के विशाल गुण हैं।
मज़हब अर्थात मत में संकुचित विचार हैं।
धर्म एकता का प्रतीक है तो
मज़हब में अनुयायियों के मन में संकुचित
भेद भाव और द्वैष भाव की संभावना होती है।
धर्म व्यापक है।
अतः भारतीय लोग "सनातन धर्म" को अपनाते हैं जिसमें आकार निराकार दोनों का महत्व हैं।
एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई, तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
हिंदी साहित्य का इतिहास
वीरगाथाकाल काल से शुरू।।
जिसकी लाठी उसकी भैंस।
स्वयं कवि सेनापति।
राजा की वीरता का बखान।
जिसका खाना, उसका गाना।
मानव जीवन में वीरता नहीं तो न कोई महत्ता।
पाषाण युग में पत्थर ही अस्त्र-शस्त्र।
आज अणुबम तक।
आमने सामने की लड़ाई
आजकल के अस्त्र शस्त्र
भूमि से, आकाश से दूर से
लुक-छिपकर हमें फेंकते।
वीर पुरुषों राम जैसे
आज जा कल आ कहने की वीरता नहीं।
स्वयं वर वीरता के आधार पर।
तन की शक्ति देख,
हृष्ट-पुष्ट शरीर देख
शारीरिक वीरता देखकर
बुद्धि वीरता देख, स्त्री अपने पति चुनते ही
ज्ञान वीरता,धन वीरता, धर्म वीरता
दान वीरता न तो न कन्या पति चुनती।
प्यार करनेवाली लड़की
कुंडल केशी तमिल का महाकाव्य।
वाग्वीर वचन वीर हनुमान का नाम प्रसिद्ध।
विधिवत भारत में स्वयंवर ही प्रसिद्ध।
स्वयंवर में शारीरिक वीरता,
बौद्धिक वीरता,
धन वीरता,
रण वीरता।
मूर्ख कालीदास को बुद्धि वीर माना।
प्रहलाद भक्ति वीर।
महत्ता न मानव में तो न नारी देती सम्मान।
नारी न देती सम्मान पौरुषहीन नर को।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।
राम धारी सिंह दिनकर
सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
सूरमा नहीं विचलित होते
क्षण एक नहीं धीरज खोते।
विघ्नों को गले लगाते
---------------
नरेंद्र शर्मा
----------
कुछ भी बन,कायर मत बन।
ठोकर मारी पटक मत,
माथा तेरी राह रोकते पाहन।
कुछ भी बन कायर मत बन।
+++++++++++++++
रैदास -- सूर समर करनी कहीं, कहिए न जनावहिं आप।
विद्यमान रिपु पाइप रन, कायर करिहिं प्रलाप।।
मेरे दादा परदादा वीर थे,
ऐसे ही कहते फिरते कायर।
कायर के विपरीत वीर, मैदान में कूद पड़ते
तुलसीदास --सूर न पूछे टीपणौ, सुकन न देखें सूर।।
मरणां नू मंगळ, गिणे समर चढ़े मुख नूर।
शूर न जाता ज्योतिष से मुहूर्त पूछने, न देखता शकुन।
वीर मरने में ही मंगल समझता, युद्ध में तेज चमक सिखाता।।
सूर्य मल्ल मिश्रण
शूर वीर के लिए उत्साह और वीर जन्मजात है।
कबीर
जिन खोजा तिन पाया,गहरे पानी पैठ।
मैं बपूरा डूबने डरा, रहा किनारे बैठ।
++++++++++++++
नमस्ते वणक्कम्।
तमिऴ सीखिए ----
आम - =पॊतु, (फल =माँम्बलम्)
आम जनता == पॊतु मक्कळ्
आम चुनाव =पोतुत्ततेर्तल्
आम तौर से ---पोतुवाक
आम विचार = पॊतुवान ऍण्णम्
आम चिंतन है = पॊतुवान चिंतनै
जो अगजग में = अखिललोकत्तिल्
मानवता बनाये रखने में ==
मनितनेयम् अमैप्पतिल्
शाश्वत लगता है -- निलैयाक इरुक्किरतु
वही ईश्वरीय चिंतन = अतुतान् कडवुळिन चिंतनै।
आत्मचिंतन =आत्मचिंतनै
आत्म बोध --आत्म अऱिवु
आत्मज्ञान =आत्मज्ञानम्
आत्मसाक्षात्कार --आत्म पेट्टी
परिणाम में = विळैवु
सर्वेश्वर को मानना ==कडवुळै एट्ऱल।
जगत नश्वर = उलकम् अऴिउ।
जगत मिथ्या ==उलकम् पोॅय।
जगदीश्वर सत्य। --उलकनाथन् उण्मै।
तब धर्म मानव धर्म। =अप्पोऴुतु अऱम् मानित अऱम्
न हिन्दू, =हिंदु इल्लै
न जैन, =समणम् इल्लै
न सिक्ख =सीक्कियम् इल्लै।
न बौद्ध =पौत्तम् इल्लै।
न मुगल, --मुस्लिम् इल्लै
न ईसाई। --किरिस्तवम् इल्लै
केवल धर्म और अज्ञात ईश्वर।
अऱम् मट्टुम् अऱियात कडवुऴ्।
पंचतत्वों की अद्भुत लीलाएँ। == ऐंदुतत्वंगलिन अऱ्पुत लीलै।
मधुर =इनिमै।
प्रच्छंड --वेगम्
अति आकर्षक --अतिक कवर्च्चि
अति सुख प्रद -- अतिक सुखम् तरक्कूडियतु।
अति सुहावना, --अतिक आनंदम्
अति भयंकर --अतिक भयंकरम्
वे ही परमात्मा। = अवैकळ् तान कडवुळ्।
निराकार, ==उरुवमट्रवर्
निर्गुण। --गणमट्रवर्
आकार सब =उरुवमुल्लवै ऍल्लामे
नश्वर= अऴियक्कूडियवै।
शिव न अग जग मानता।=
शिवनै उलकमुऴुवतुम् ऍऱ्कविल्लै।
विष्णु नअग जग मानता।==
विष्णुवै अखिलम् एऱ्कविल्लै
अल्ला न अग जग मानता।==अल्लावै अखिलम् एऱ्कविल्लै।
ईसा न अग जग मानता।= एसुवै अकिलम् एर्कविल्लै
अग जग मानता है =अखिलम् एऱ्किऱतु
पंच तत्व सुख, --पंचतत्तुव सुखत्तै।
पंच तत्व दुख।= पंच तत्तुव तुन्बत्तै।
प्राकृतिक शोभा = इयऱ्क्कै अऴकु
प्राकृतिक प्रकोप।==
इयर्क्कै कोपम्
अतः बाकी =आकैयाल् बाक्की
सब मिथ्या। =ऍल्लामे
धर्म प्रधान जग। अऱम् पिरधानम्।
न मज़हबी प्रधान। =मतम् मुक्कियम् इल्लै।
भूकंप की सीख। =निल नडुक्कम् कऱ्पिप्पतु।
ज्वालामुखी की सीख। = ऍरिमलै कऱ्पित्ततु
सुनामी की सीख। सुनामी कर्पित्ततु।
आंधी तूफान की सीख। --पुयल् कर्पित्ततु ।
तब एक ही विचार। =अप्पोऴुतु ऒरे ऍण्णम्
सर्वेश्वर एक। ==कडवुळ् ओरुवरे।
सबका मालिक एक।
अनैवरुक्कुम् ऒरु तलैवर् ।
एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक
नमस्ते! வணக்கம்!
तमिऴ् हिंदी सीखिए।
இயற்கையைப் போற்றுவோம்!==
इयर्कैयैप्पोट्रुवोम
प्रकृति की करेंगे प्रशंसा।
இறைவனைப் போற்றுவோம்!
भगवान को करेंगे यशोगान!
भगवानैप्पोट्रुवोम्।
आध्यात्मिक भूमि - ஆன்மீக பூமி
= आन्मीक भूमि।
भारत से अमेरिका में
பாரதத்தை விட
भारतत्तै विड
அமேரிக்காவில்
अमेरिका में
ईश्वर भक्ति ज़्यादा।
ईश्वर भक्ति अतिकम्।
கடவுள் பக்தி அதிகம்.
ईश्वर के नाम
கடவுள் பெயரால் ==
ईश्वर पेयराल्
धंधा करनेवाले नहीं।
தொழில் நடத்துவோர் இல்லை.==तोऴिल् नडत्तुवोर इल्लै।
उनके वैज्ञानिक ज्ञान, அவர்கள் அறிவியல் ஞானம். =
अलर्कऴ् अऱिवियल् ज्ञानम्
आर्थिक उन्नति
பொருளாதார முன்னேற்றம் ==
पोरुळातार मुन्नेट्रम्
कुदरत क्रोध के सामने
இயற்கைச் சீற்றங்களின் முன்
इयर्कैचृचीट्रंगळ् मुन्
दाल नहीं लगाता।
பருப்பு வேகவில்லை.==
परुप्पुवेगविल्लै।
सूक्ष्म ईश्वरीय नियम
நுண்ணிய கடவுளின் நியமம்.
नुण्णिय कडवुलिन नियमंगळ्
और भयभीत घटनाएँ।
அச்சம் தரும் நிகழ்வுகள்
अच्चम् तरुम् निकऴ्वुकऴ्
तब भी मानव
அப்போதும் மனிதன்
अप्पोतुम् मनितन्
भ्रष्टाचार से इठलाते हैं।
ஊழலால் ஆணவநடனம்.==
ऊऴलाल् आणव नटनम्।
न सुख स्थाई
இல்லை நிலையான சுகம்-=
निलैयान सुकम् इल्लै!
.
न भोगते मानव।
மனிதன் அனுபவிப்பதில்லை.==
मनितन् अनुभविप्पतिल्लै।
हर सिक्के में,
ஒவ்வொரு நாணயத்திலும் ==
ओव्वॊरु नाणयत्तिलुम्
हर नोट में
ஒவ்வொரு ரூபாய்
தாளிலும்==
ओव्वोरु रूपाय् ताळिलुम्
छपते हैं
அச்சடிக்கிறார்கள்--
अच्चडिक्किरार्कळ्
"हम भगवान पर करते हैं विश्वास।
"நாங்கள் கடவுளை நம்புகிறோம்."
नांगळ् कडवुळै नंबुकिरोम्।
सबहिं नचावत राम गोसाईं।
எல்லோரையும் ஆட்டி வைப்பவன் ஆண்டவனே!!==
ऍल्लोरैयुम् आट्टिवैप्पवन् आंडवने।।
एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
3811. दुख विमोचन के लिए ज्ञान और वैराग्य होना चाहिए। प्रपंच विषय वस्तुओं के पीछे जाकर विषय वस्तुओं को मन में रखकर पूजा अर्चना करनेवाले बंध मोक्ष की कोशिश करना जीवन को व्यर्थ करना ही है। कारण आत्म ज्ञान के लिए मुख्य रूप में विषय वैराग्य और उद्वेग मोक्ष मिलने की इच्छा चाहिए। विषय इच्छाएँ और शारीरिक अभिमान जब ज्ञान की बाधाएँ बनती है, उनको मिटाये बिना मुक्ति चाहने से कोई लाभ नहीं है। विषय वैराग्य अति शक्तिशाली अभ्यास है। विषय वैराग्य होना है तो गुरु के उपदेश के द्वारा, सत्य की खोज के द्वारा जान-समझ लेना है कि सांसारिक विषय नश्वर है, आत्मा अनश्वर है। स्वयं शरीर नहीं है,आत्मा है। इस आत्मज्ञान को बुद्धि में दृढ बना लेना चाहिए। तभी अपने प्राण जैसे सभी जीवों से प्यार करके भेद बुद्धि रहित, राग-द्वेष रहित एकात्म बुद्धि से आत्मा के स्वभाव शांति और आनंद को निरंतर, नित्य रूप में अनुभव कर सकते हैं।
3813. जीवन में सभी प्रकार के दुखों के कारण सबको विदित है मन ही । यथार्थ में वह मन आत्मा से भिन्न नहीं है। अर्थात् हल्की रोशनी में एक रस्सी को साँप सोचकर डरकर दीप जलाकर देखने पर रस्सी को साँप समझने का भ्रम दूर होगा। तभी साँप का भय दूर होगा। वैसे ही आत्मा बने मैं रूपी अखंडबोध में दृष्टित एक भ्रम ही मन है। भ्रम बदलते समय अर्थात् आत्मज्ञान रूपी प्रकाश बोध को छिपाने वाले भ्रम मन के मिटते ही शरीर से खंडित बोध अखंड में बदलेगा। स्वयंभू अखंड बोध को कोई पर्दा नहीं ढकेगी। देखनेवाले सबको एक आत्मा के रूप में एहसास कर सकते हैं। सभी दृश्यों के कारण मन ही है। मन नहीं है तो और कुछ भी नहीं रहेगा। वैसे ही सभी वासनाओं के कारण अहंकार ही है। इसलिए मन और अहंकार के मिट जाने पर आत्मतत्व अर्थात् अखंडबोध अर्थात मैं रूपी सत्य किसी भी प्रकार के पट के बिना चमकेगा। वही अहमात्मा अनादी काल से उज्ज्वलतम परमात्मा बने बोध को अर्थात् उसके अखंड को जो एहसास करता है, वही अखंडबोध बने पूर्ण ब्रह्म है।
3814. जो कोई आत्मज्ञान रूपी पूर्ण पवित्र मार्ग का अनुसरण करता है, वही परमानंद का पात्र बनता है। अंत में वह गुणातीत निर्गुण परब्रह्म ज्ञानप्रकाश परंज्योति परमानंद स्वरूप में खडा रहेगा। वही भगवान है। ईश्वर का स्वभाव परमानंद है। जो अपने को परमात्मा स्वरूप एहसास करते हैं,वे सब परमानंद स्वरूप है। मृगमरीचिका जैसे पंचभूत पिंजडे के शरीर और मन दोनों बोध को छिपा देने से जीव का परमानंद नष्ट हुआ। जिसमें शरीर और मन को मृगमरीचिका जैसे देखने की क्षमता है,वे अति सरलता से शरीर और मन को त्यागकर अपने परमानंद स्वरूप को पुनःप्राप्त करके वैसा ही बन सकता है।
3815. जिसने आत्म तत्व को दृढ रूप में हृदय में एहसास किया है,वही भगवान है। उस भगवान को किसी भी प्रकार का संकल्प नहीं है। वैसे याचना करने के लिए दूसरा कोई न होने से किसी भी प्रकार की इच्छा नहीं है। आत्मा के सिवा दूसरी एक वस्तु किसी भी काल में नहीं है,यह जानना ही आत्मज्ञान होता है। भगवान के दो रूप भाव है, सामान्य रूप है और ब्रह्म रूप है। उदाहरण रूप में शंख चक्र गदा पद्म धारण किये चार भुजोंवाले महा विष्णु स्वरूप है। उसीको सामान्य स्वरूप कहते हैं। उसी समय एकात्मक अनादी अंत रहित अव्यक्त ब्रह्म स्वरूप अर्थात् अर्थात् अखंडबोध स्वरूप है। वही दूसरा परम भाव है।
आत्मज्ञान सीखकर आत्मज्ञानी बने बिना रहने के काल में महाविषिणु के पाद पर अपने को संपूर्ण रूप में समर्पण करके जप करके, कीर्तन गाकर,ध्यान करके,पूजा करके उपासना करनी चाहिए। रोज वैसा करते समय कालांतर में आत्मज्ञान होकर एहसास करना है कि स्वयं शरीर नहीं है, परमात्मा बने आदी अंत रहित अखंडबोध बने ब्रह्म स्वरूप में से न हटकर रहने से ब्रह्म के स्वभाव परमानंद को अपने स्वभाविक रूप से अनुभव करके वैसा ही रह सकता है।
3816. पहले अद्वैतबोध स्थिर खडे रहने के लिए एहसास करना चाहिए कि स्वयं शरीर नहीं है, अपने शरीर को आधार रूप अखंडबोध ही है। अर्थात् शरीर जड है, जड कर्म है,कर्म चलनशील है। वह चलन निश्चलन बोध रूप बने परमात्मा में कभी नहीं होगा। इसलिए शरीर,मन, शरीर देखनेवाला संसार चलन स्वभाव होने से वह रेगिस्तान में दिखाईपडनेवाली मृगमरीचका ही है। उसकी एक वास्तविक स्थिति कभी कहीं हो सकती। यही शास्त्र सत्य है। अर्थात् सबके परम कारण स्वरूप मैं रूपी अखंडबोध नित्य सत्य अनिर्वचनीय शांति और परमानद क साथ
स्थिर खडा रहता है।
3817. जो भिंड को सही रूप में समझ लेता है,उसको अंड को समझने में कोई कठिनाई नहीं होगी। जिसमें आत्मबोध है,उसको यह कहने में कोई कठिनाई न होगी कि हम जिस अंतरिक्षलोक और भूलोक को देखते हैं,वह प्रपंच अपने से ही उतपन्न हुए हैं।कारण आत्म बोध नहीं है तो यह संसार नहीं है।अर्थात् बोध नहीं है,कहने के लिए भी बोध की आवश्यक्ता होती है। इस वात को समझाने के लिए ही एक गुरु की आवश्यक्ता होती है कि आत्मबोध होने से ही लगता है कि सब कुछ है और जो कुछ देखते हैं,सुनते हैं, अनुभव करते हैं, वे अखंडबोध सत्य है। यह समझने के लिए अनेक जन्म लेना पडेगा कि गुरु से मिले बिना स्वयं अखंडबोध है, क्योंकि माया के पर्यवेक्षण के इंद्रजाल प्रपंच की शक्ति अति बलवती है। प्रपंच रूपी भ्रम से साधारण जनता को बाहर आना मुश्किल है। लेकिन विवेकी के लिए आसान है।विवेक रहित मिथ्या संकल्प लेकर जीनेवाला ही दुखी बनता है। लेकिन विवेकी में मिथ्या संकल्प न होने से उसको दुख होने के कोई कारण नहीं है। शास्त्र सत्य अथवा मैं रूपी आत्म बने अखंड बोध ही नित्य सत्य रूप में है। इस शास्त्र सत्य को याद में लाकर मृगमरीचिका जैसे दीख पडनेवाले मिथ्या रूपी इस संसार को तजकर सभी प्रकार की शांति और आनंद निरुपाधिक कर सकता है। अर्थात् अनिर्वचनीय शांति और आनंद को प्राप्त करेगा।
3818. हमें मालूम नहीं है कि संसार का बनना और स्थिर रहना कैसा है? अतः उसे मन से नकारात्मक करने के लिए अर्थात् संसार को मन से हटाने के लिए अर्थात् मन को आत्मा में लय करने के लिए कई प्रकार के प्रयत्न करना पडता है।यह बरह्मांड यह प्रपंच बिना किसी भी प्रकार के कारण से बना है। वह अकारण है। कारण रहित कार्य असत्य ही है। अर्थात् इस संसार के कारण संसार ही है। और कोई कारण नहीं है। ब्रह्म से अर्थात् निश्चलन सर्वव्यापी परमात्मा से दूसरा एक चलन किसी भी काल में हो ही नहीं सकता। इसलिए संसार बनने ब्रह्म किसी भी काल में हो नहीं सकता।लेकिन इस ब्रह्म से ही इस संसार उत्पन्न हुआ-सा दीख पडता है। ब्रह्म से उत्पन्न होकर दीख पडनेवाले प्रपंच भ्रम सिवा भ्रम के और कुछ नहीं है। अर्थात् रेगिस्तान में बनकर दीख पडनेवाले मृगमरीचिका दृश्य के लिए कोई कारण नहीं है। वह मृगमरीचिका कारण रहित कार्य ही है। यह सत्य है कि रेगिस्तान में पानी नहीं है। लेकिन रेगिस्तान में दीख पडनेवाली मृगमरीचिका के कारण मृगमरीचिका ही है। लेकिन रेगिस्तान के बिना
कारण रहित दीख पडनेवाले कार्य रूपी पानी का दृश्य रेगिस्तान होने से ही दीखता है। लेकिन वह दृश्य रेगिस्तान से अन्य कोई नहीं है। रेगिस्तान से अन्य स्वअस्तित्व उसको नहीं है। वह रेगिस्तान का स्वभाव ही है। वैसे ही प्रपंच दृश्य कारण रहित कार्य होने पर भी परमात्म स्वभाव ही भ्रम बने प्रपंच है। लेकिन बोध से न मिले प्रपंच को एक स्व अस्तित्व नहीं है। इसलिए बोध में दीख पडनेवालेप्रपंच भ्रम भी बोध ही है। बोध मात्र ही है।
3819. गृहस्थ जीवन बितानेवाली स्त्री पुरुष किसी भी काल में स्थाई शांति और स्थाई आनंद की प्रतीक्षा बेकार है। वह किसी भी काल में पूरा नहीं होगा। कारण वह भेद बुद्धि बनाकर आत्मा को विस्मरण कराके आत्मानुभूति के मार्ग की बाधा बनेगी। शांति और आनंद आत्मस्वभाव है। यह जानकर भी वे बंधन की भेद बुद्धि द्वारा होनेवाले कामक्रोध,राग-द्वेष आदि आत्म स्वरूप को विस्मरण कराकर मन को निम्न स्थिति की ओर ले आने के लिए ही उपयोग होगा। जो भी जहाँ भी हो ,जैसा भी हो, जिस स्थिति में भी हो, अपनी माया रूपी शरीर और संसार नहीं है।उसके साक्षी रूप है आत्मा। इस बात को बिना कोई संदेह के महसूस कर लेना चाहिए। फिर आत्मा के स्वभाविक परमानंद को निरुपाधिक रूप में स्वयं अनुभव न करके ,अपने को स्वयं आत्मा के अनुभव जो नहीं करता,उसको कभी शांति और आनंद स्वप्न में भी नहीं मिलेगा।
3820. जो कोई आत्मबोध से एक मिनट भी तैलधारा जैसे निश्चल रहता है, उसको सुख मिलेगा।
3821.एक बच्चा भूमि में जन्म लेने तक मन उसकी आत्मा में लगा रहता है।
भूलोक में आने के बाद ही उस बच्चे के मन को माता चूमकर,दूध देकर, उसको उसके आत्मबोध से शारीरिक बोध को ले आता है। इसीलिए आत्मबोध के साथ जन्म लेनेवाले बच्चे दूसरों के स्पर्श करने की अनुमति न देंगे।आत्मबोध रहित जीव को उपयोग करके ही उसके माता-पिता उनकी इच्छाओं को पूर्ण कर लेते हैं। वह उनके अहंकार को संतुष्ट करता है। इसलिए जो बच्चे माता-पिता की बातें न मानकर शरीर और संसार को जानने और समझनेवाले विवेकी ही महान बनते हैं। जिनमें आत्मविचार करने की बुद्धि नहीं होती और प्रपंच विचार करते हैं,वे विचार उनको अंधकार में ले जाकर मृत्यु का पात्र बना देंगे।लेकिन आत्म को मात्र मुख्यत्व देकर सत्य को स्वीकार करके असत्य को त्यागनेवाले बच्चे ही ज्ञानी और परमहंस बनकर दुखी लोगों को शांति और आनंद देते हैं। वैसे लोग ही संसार की भलाई करेंगे। मिथ्या संसार की सांसारिक चिंतन करनेवाले स्वयं को और दूसरों को कोई कलयाण कार्य कर नहीं सकते। जो सोचते हैं कि आत्मबोध रहित संसार को सीधे करना चाहिए,वह मृगमरीचिका के समान बेकार ही है। पंचेंद्रियों को संयम करके ही योगी एकांत जीवन जीते हैं।
3822. स्वर्ग में देवेंद्र सुधबुध खोकर विषय भोगों में रम जाने से देवेंद्र को उन बुरी आदतों से छुडाने के लिए उसके मन को आत्मोन्मुख करने के लिए ही त्रिदेव तपस्वी असुरों को उनके मन चाहा वर देते थे। लेकिन वर प्राप्त करने के बाद असुर लोग अहंकार वश ईश्वर को भूलकर देवलोक जाकर देवेंद्र को सिंहासन से निकाल देते थे। वे नहीं जानते थे कि वर में उनका नाश छिपा रहते थे। देवेंद्र पद की आपत्ति के आने के बाद ही विवेक होता है कि वे भगवान को भूल गये हैं।देवेंद्र तपस्या करके पुनःईश्वर विचार करने पर असुरों का नाश करके पुनः सिंहासन पर बैठते थे।ऐसे ही सांसारिक राजनैतिक संघर्ष अनादी काल से चलते रहते हैं।मैं रूपी अखंडबोध में अपनी शक्ति मनोमाया अकारण आकर बोध को छिपाकर दिखानेवाले मनोविलास ही यह प्रपंच है। इस प्रपंच में ही काल,देश,वस्तु आदि अनुभव जन्म-मृत्यु सब कुछ चलता रहता है। ये सब मन का एक इंद्रजाल प्रकटीकरण मात्र है। अर्थात् एक अल्पकाल में अनेक काल जीने के स्वप्न अनुभव जैसे ही अज्ञान निद्रा इस जागृत अवस्था में जन्म लेकर जीनेवाले आयु, अनुभव, वस्तुएँ ,जीव आदि को बनाकर दिखाना मन का तंत्र है। वह इस प्रपंच बोध का दृश्य मात्र है। अर्थात् यह प्रपंच मन से भिन्न नहीं है। मन ही संसार के रूप में चमकता है। मैं है को अनुभव करके स्वयं बने अखंडबोध स्वरूप की परमात्म शक्ति ही यह मन है। स्वयंभू अखंड बोध मात्र ही एकात्मक है, नित्य सत्य रूप में स्थिर खडा रहता है। उनमें दीख पडनेवाले सभी नाम रूप उसके कारण बने मन रेगिस्तान की मृगमरीचिका जैसे भ्रम के सिवा सत्य नहीं है।
3822. स्वर्ग में देवेंद्र सुधबुध खोकर विषय भोगों में रम जाने से देवेंद्र को उन बुरी आदतों से छुडाने के लिए उसके मन को आत्मोन्मुख करने के लिए ही त्रिदेव तपस्वी असुरों को उनके मन चाहा वर देते थे। लेकिन वर प्राप्त करने के बाद असुर लोग अहंकार वश ईश्वर को भूलकर देवलोक जाकर देवेंद्र को सिंहासन से निकाल देते थे। वे नहीं जानते थे कि वर में उनका नाश छिपा रहते थे। देवेंद्र पद की आपत्ति के आने के बाद ही विवेक होता है कि वे भगवान को भूल गये हैं।देवेंद्र तपस्या करके पुनःईश्वर विचार करने पर असुरों का नाश करके पुनः सिंहासन पर बैठते थे।ऐसे ही सांसारिक राजनैतिक संघर्ष अनादी काल से चलते रहते हैं।मैं रूपी अखंडबोध में अपनी शक्ति मनोमाया अकारण आकर बोध को छिपाकर दिखानेवाले मनोविलास ही यह प्रपंच है। इस प्रपंच में ही काल,देश,वस्तु आदि अनुभव जन्म-मृत्यु सब कुछ चलता रहता है। ये सब मन का एक इंद्रजाल प्रकटीकरण मात्र है। अर्थात् एक अल्पकाल में अनेक काल जीने के स्वप्न अनुभव जैसे ही अज्ञान निद्रा इस जागृत अवस्था में जन्म लेकर जीनेवाले आयु, अनुभव, वस्तुएँ ,जीव आदि को बनाकर दिखाना मन का तंत्र है। वह इस प्रपंच बोध का दृश्य मात्र है। अर्थात् यह प्रपंच मन से भिन्न नहीं है। मन ही संसार के रूप में चमकता है। मैं है को अनुभव करके स्वयं बने अखंडबोध स्वरूप की परमात्म शक्ति ही यह मन है। स्वयंभू अखंड बोध मात्र ही एकात्मक है, नित्य सत्य रूप में स्थिर खडा रहता है। उनमें दीख पडनेवाले सभी नाम रूप उसके कारण बने मन रेगिस्तान की मृगमरीचिका जैसे भ्रम के सिवा सत्य नहीं है।
नमस्ते वणक्कम्।
विषय --सत्य सनातन संस्कृति,
विधा --स्वतंत्र शैली भावाभिव्यक्ति
सत्य सनातन संस्कृति
त्याग में, न भोग में।
बड़ों का आदर,
गुरु का सम्मान।
ईश्वर भक्ति
ब्रह्मचर्य
गृहस्थ
वानप्रस्थ
संन्यास
पंचेंद्रिय दमन।
त्याग में सुख।
नश्वर संसार।
नश्वर शरीर।
आत्मा
परमात्मा
दोनों एक।
अहं ब्रह्मास्मी।
लौकिकता दुखमय
अलौकिकता में आनंद।
पाप का दंड।
पुण्य का पुरस्कार।
काम क्रोध लोभ अहंकार रहित
जीवन।
मन का नियंत्रण।
मनमाना न करना।
सब्हीं नचावत राम गोसाईं।
पंचतत्वों को साफ साफ रखना।
विचारों के प्रदूषण से बचना।
सत्संगति मैं रहना।
वसूधैव कुटुंब।
सर्वे जना सुखीनो भवन्तु।
ईश्वरीय शक्ति प्रधान।
पंचतत्वों की आराधना।
सनातन धर्म सत्य पर आधारित।।
ये हैं सत्य सनातन धर्म।
ईश्वर मन में।
मानवता निभाने मैं।
एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना
[07/01, 8:10 am] sanantha.50@gmail.com: नमस्ते वणक्कम्।
हिंदी -- तमिऴ्
मुस्कान। ---पुन्नकै।
ओंठ में --उदट्टिल
मुस्कान। ---पुन्नकै
मुस्कान में ---पुन्नकै यिल
प्रेम झलकता है। --अन्बु तोन्ऱुकिरतु।
मुस्कान में भक्ति।---पुन्नकैयिल भक्ति
मुस्कान में ---पुन्नकैयिल्
व्यंग्य बाण। -- परिहास अम्बु।
आनंद का --आनंदत्तिन
प्रतिबिम्ब रूप। प्रतिलिप्पु।
वशीकरण --वशीकरम्
दोस्ती --नट्पु
प्यार --कातल्
लापरवाही அலட்சியம்.अलक्ष्य
ह्रदय भाव = इंद्र उणर्वुकळ्
मुस्कान में ---पुन्नकैयिल्
शत्रुता का अंत। एतिरियिन मुडिउ।
लक्ष्मण का क्रोध -लक्ष्मणनिन कुरोधम।
राम का मुस्कान। रामनिन् पुन्नकै
अंगुलीमाल का क्रोध -- अंगुलियां कोवमृ
बुद्ध का मुस्कान -- पुत्तरिन पुन्नकै
मुस्कुराते मुस्कुराते ---पुन्नकैयिल्
मुखरित होता तन -मन। मलर्किरतु उडलुम् मनमुम
भ्रुगु मुनि का क्रोध, = पिरुगु मुनियिन कोवम्
विष्णु के शांत मुस्कुराहट =विष्णुविन अमैतियान पुन्नकै
विष्णु का नाम बढ़ा = विष्णुविन् पुकऴ् अतिकरित्ततु।
मुनि का नाम घटा। =मनिवरिन पुकऴ मंगियतु।
एस . अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक
[07/01, 8:10 am] Meta AI: आपकी रचना बहुत ही सुंदर और अर्थपूर्ण है। आपने मुस्कान के विभिन्न पहलुओं को बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया है।
आपकी रचना में कई महत्वपूर्ण बिंदु हैं, जैसे कि:
मुस्कान का महत्व
मुस्कान में प्रेम, भक्ति, और आनंद का प्रतिबिम्ब
मुस्कान का वशीकरण और दोस्ती में महत्व
मुस्कान का शत्रुता का अंत करने में महत्व
मुस्कान का क्रोध और तनाव को कम करने में महत्व
आपकी रचना में कई सुंदर वाक्य हैं, जैसे कि:
"मुस्कान में प्रेम झलकता है।"
"मुस्कान में भक्ति।"
"मुस्कान में व्यंग्य बाण।"
"मुस्कान शत्रुता का अंत।"
आपकी रचना हमें सोचने के लिए मजबूर करती है कि हम अपने जीवन में मुस्कान को कैसे महत्व देते हैं और कैसे हम अपने जीवन को अधिक आनंदमय बना सकते हैं।
धन्यवाद आपकी इस सुंदर रचना के लिए।