Monday, January 20, 2025

धर्म और मज़हब

 



नमस्ते वणक्कम्।

तमिल हिंदी सीखिए।



आजकल आध्यात्मिक संयम के कम महत्व।

 चित्रपट के कामान्ध के गीतों का महत्व ।

 अतः लौकिक चिंतन मनुष्य के  दुःखों  के परम कारण होते हैं।


 जैन कवि तिरुवळ्ळुवर के नैतिक ग्रंथ में 

 अऴुक्कारु =ईर्ष्या

अवा=इच्छा

वेकुळि =क्रोध

इन्नाचोल =कठोर शब्द 

नानगुम =चारों 

इऴुक्का =स्थान 

इयन्रतु --ं देना ही

 अऱम् =धर्म है।

  ईर्ष्या , मन मानी इच्छा, क्रोध,कठोर शब्द आदि चारों को मन में स्थान न देना ही धर्म है।

 धर्म और मजहब में बड़ा अंतर है।

 धर्म में मानवता के विशाल गुण हैं।

 मज़हब अर्थात मत  में संकुचित विचार हैं।

 धर्म एकता का प्रतीक है तो

 मज़हब में अनुयायियों के मन में संकुचित 

 भेद भाव और द्वैष भाव की संभावना होती है।

धर्म व्यापक है।

 अतः भारतीय  लोग "सनातन धर्म" को अपनाते हैं जिसमें आकार निराकार दोनों का महत्व हैं।

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई, तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।



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