Sunday, October 17, 2021

तिरुमुरै ---दिव्यस्तुति --திருமுறை

 नमस्ते। वणक्कम।

 सभी हिंदी साहित्य संगम संस्थान को समर्पित।

आपका हिन्दी प्रेमी,

से.अनंतकृष्णन।


 प्राचीन तमिऴ में दिव्य स्तुति के संग्रह को तिरु मुरै कहते हैं। विविध कवियों की प्रार्थना गीत १२५४ शीर्षक में

12,546स्तुतियाँ हैं।

 आज दसवाँ संग्रह  में से श्री गणेश स्तुति का हिंदी अनुवाद मैंने की है।

दसवाँ संग्रह के कवि हैं तिरुमूलर।

 भगवान की कृपा हो तो सब का अनुवाद 

भावानुवाद हिंदी में करूंगा।

 पाठक अनुवाद संबंधी अपने मंतव्य प्रकट करेंगे तो कृतार्थ  ।


तमिल वेद को तिरुमुऱै कहते हैं।

दसवाँ देवस्तुतिमें गणेश स्तुति का भावानुवाद।

स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन, चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक


पाँच हस्त के,

शशिकला समान 

सूंड वाले

शिव के पुत्र

ज्ञानेश्वर 

श्री गणेश की

स्तुति 

अंतर मन से करता हूँ।

दसवाँ वेद विघ्नेश्वर स्तुति का  हिंदी अनुवाद।

से.अनंतकृष्णन्

मूल :-
ஐந்து கரத்தனை  யானை முகத்தினை 


இந்தின் இளம்பிறைபோலும்
எயிற்றனை நந்தி மகன்தனை ஞானக்
கொழுந்தினைப் புந்தியில்
வைத்தடி போற்றுகின் றேனே.

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   शैव भक्त शिव भगवान के
  अनन्य भक्त हैं।

 शिव सिद्धांत के प्रचार-प्रसार में
अनेक  साधु-संत  और कवि  लगे थे।

  हर शिव मंदिर में जाकर 

 शिव भगवान का यशोगान करते थे।

उन सब कीर्तनों के संग्रह का नाम
तेवारम् अर्थात  देव हार ।

देव कीर्तन माला।।

 राजराज चोऴन  के अनुरोध से
नंबियांडवर नंबि  नामक
शैव भक्त ने बारह "तिरुमुऱै"

अर्थात श्री रीतियों का संग्रह किया।।
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 पहली श्री रीति  (तिरुमुऱै ) के शिव भक्त कवि है तिरु ज्ञान संबंधर।

  आपका जन्म सातवीं शताब्दी में हुआ।
आपके माता-पिता के नाम  

भगवतियार व  शिवपादविरुदयर।
तीन वर्ष की आयु में ईश्वर अनुग्रह प्राप्त कवि हैं  ज्ञान संबंधर ।

 शीर्काऴि क्षेत्र के मंदिरके तालाब के किनारे पर
अपने तीन साल के बच्चे  को छोड़कर
पिता स्नान करने गये।
तब बच्चे को भूख लगी।
बच्चे का क्रंदन सुनकर
खुद पार्वति देवी ने  सोने के कटोरे भर दूध पिलाया।
वह ज्ञान दूध था.
तब से उनका  नाम शिव ज्ञान संबंधर पड़ा।
तब से वे शिव भगवान के योगदान करने लगे।
भारतीय भक्तों की ज्ञान धारा ईश्वरीय धारा है। 

  तिरु ज्ञान संबंधर  के सृजन के  दिव्य हार  में
श्री रीतियों  (तिरुमुऱै)के कुल गीत है 4146..

पहली श्री रीति में 1469,
दूसरी श्री रीति में 1331,
तीसरी श्रीरीति में 1346
कुल 4146.

आज पहली कविता का भावार्थ पर ध्यान देंगे।

तमिल मूल फिर हिंदी।

 1.

 तोडुडैय सेवियन विडैएरियोर तूवेण मति चूडिक,

काडुडैय चुडलै पोडिपूसियन उळ्ळंग कवर कळवन,

एडुडैयमलरान मुनै नाटपणिन्तेत्तवरुळ सेय्त,

पीडुडैय पिरमापुरमेवियपेम्मानिवनन्रै।


भावार्थ :


   शिव भगवान अर्द्ध नारीश्वर है।

   तीन साल के बच्चे के ओंठ के नीचे 

    दूध देखकर पिता नाराज होकर पूछते हैं,

   किसका दूध  पिया है।
    वे नहीं जानते शिवकामी ने दूध पिलाया है।

   बच्चे कोज्ञान का दूध भी पिलाया है।    
  पिताजी हाथ में छड़ी लेकर डराते हैं  कि
    कहीं किसी अछूत का दूध पिया है तो!

  तुरंत बच्चे ने गाना गाया :-

   ऋषभ वाहन पर,

   बायी ओर शिवकामी,

  एक कान में नारी का कर्णाभूषण,

 दूसरे कान में नर का कुंडल ,

 कर्णाभूषण वाला,

 सिर पर शरणार्थी चंद्रकला,

  शरीर पर श्मशान का भस्म
  लगाये

मेरे चितचोर  ,

 कमल पर विराजमान 

ब्रह्म के पेशे को बंद किए
शिव भगवान  शीर्काऴी के 

ब्रह्म पुरवासी, मेरे नाथ।


 इतना कह

 फिर आकाश की ओर  संकेत किया।

ऋषभदेव ऊपर अपने वाहन पर ।

 माता पिता दंग रह गये।

 ईश्वर की लीला अपूर्व  अद्भुत।

 तीन साल के बच्चे के भक्ति गीत।

अपने भगवान का परिचय।

ॐ नमः शिवाय।

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२.अपने हृदय देव

  विश्वनाथ है

 चितचोर ।

बूढे कछुए का खोल,

युव नाग सर्प ,

सुअरों के नवांकुरित -सा सुंदर दाँतआदि से जुड़े हार।

 ब्रह्मकपाल को भिक्षापात्र बनाकर 

 खाद्य पदार्थ माँगकर आये

 मेरे मन मोहक चित चोर,

महापंडितों के वंदनीय भगवान,

शरणागत वत्सल शिव,

वरदाता,

ब्रह्मपुरी विराजमान ,

 मेरे ह्रदयेश्वर!
मेरे विश्वनाथ।
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तमिल मूल :-

 मुट्रामैयिळ नागमोडेन मुळैक्कोंबवै पूंडु,

वट्रलोडुकल नाप्पलितेर्नदेनतुल्लंकवर कळ्वन।

अप्रैल केट्टलुडै यार पेरियार कऴल कैजाद तोऴुतेत्तप्

पेट्रमूर्न्दब्रम्मापरमेविय पेम्मानिवनन्ऱे।  (तमिऴ मूल)


3.श्रीरीति== तिरुमुऱै

 

तमिल :-

நீர்பரந்தநிமிர் புன்சடைமேலோர் நிலாவெண்மதிசூடி

ஏர்பரந்தவின வெள்வளைசோரவென் னுள்ளங்கவர்கள்வன்

ஊர்பரந்தவுல கின்முதலாகிய வோரூரிதுவென்னப்

பேர்பரந்தபிர மாபுரமேவிய பெம்மானிவனன்றே.
.

नीर परंत निमिर पुन सड़े  मेलोर निला वेण  मति चूडि  

एर परंत विन वेळ व लै चोर वेन नुल्लंग कवरकलवन 

ऊर परंत वुला वुल किन मुतलाकिय ऊर इतु वेन्नप
पेर  परंत प्रमापुर मेविय  पेम्मानिवनन रे। 

+तमिऴ मूल ।



शिव  के  सर पर जटाओं केमुकुट पर
गंगा और द्वितीय  शशि कला अति शोभायमान थे ।
. उनकी सुन्दरता में विरहिणी  हो तो चूड़ियाँ  गिर जाती.

 ऐसे चितचोर शिवभगवान विराजित देश मेरा.
अतुलनीय शोभामय ब्रह्मपुर मेरा।

  विश्वनाथ मेरा चितचोर।।

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4.விண்மகிழ்ந்தமதிலெய்ததுமின்றி விளக்குதலையோட்டில் 

உண்மகிழ்ந்துப தேரியவந்தெனதுள்ளங்கவர் கள்வன்

மண்மகிழ்தவர வம்மலர்க்கொன்றை மந்தவரைமார்பில்

பெண்மகிழ்ந்த பின் மாபரமேவிய பெம்மானிவனன்றே.

 अंतरिक्ष में आनंदोत्सव में अहंकार से चलते फिरते,

 तीन मूर्ति असुरों को एक ही अस्त्र से  मिटाते

 मेरे चितचोर शिव,

 ब्रह्मकपाल से  हर्षोल्लास से आते,

 मेरे चित चोर शिव।

  बाई ओर उमामहेश्वरी,

 छाती पर अमलतास,

बिल के नाग सहित ब्रह्मपुर में

 पधारे विश्वनाथ  मेरे चित चोर।


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