ईश्वर भक्त,ईश्वर मंदिर जाते हैं,
इष्टवर पाने, मनोवांछित अभिलाषा पूरी होने।
अगजग के अनंत सुख-वैभव मिलने,
पुजारी के इशारे पर है नाचते।।
प्रायश्चित करते हैं,चित्त में है विषय वसना।
भ्रष्टाचार करते हैं,भ्रम में पड़ते हैं।
कृष्ण के भक्त हैं,पर कृपण बनते हैं।
कृत कर्म फल बोझ बनते हैं।।
कृतज्ञ के पालन न करते हैं,
कृतघ्न बनते हैं।अधर्म कर्म में सद्यःफल।।
संत कवि वळ्ळुवर का तिरुक्कुरल यही कहता,
सभी प्रकार की कृतघ्नता की मुक्ति है,पर
न मुक्ति न पाप विमोचन कृतघ्नता का।।
क्लेस ही बचता,बचाता नहीं कृष्ण।।
पापों के बोझ में, प्रीति भोज भूल जाते।।
श्री कृष्ण की कृपा कटाक्ष के लिए,
कृष्ण प्रेमी बनना,भक्ति प्रीति भोज में।।
ईश्वर भक्ति का मूल, ध्यान कर्म में।।
उतना ही फल पाओगे,जितना सत्कर्म करोगे।।
प्रार्थना के अनुपात में पुण्य फल मिलेगा ही।
परिश्रम के अनुपात में लक्ष्मी का अनुग्रह।।
धर्म कर्म के अनुपात में ईश्वर का अनुग्रह।।
भगवान दास अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
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