माँ सब को प्रणाम।
साहित्य संगम संस्थान तेलंगाना इकाई १४-४-२०२१
माता की भेंट।
सब को मालूम है माता की भेंट
कुच दूध। प्यार। ममता।
मातृ भाषा ,मातृ भूमि।
मेरी माँ ने भी सब कुछ दिया ,
पर जब वह गर्भवती थी ,उसके गर्भ के अँधेरे में था ,
तभी उन्होंने हिंदी सीखी। अभिमन्यु सा मुझे हिंदी ज्ञान मिला।
पर जन्म लेने के बाद भी हिंदी सिखाई।
अभिमन्यु की माता सुनी ,अभिमन्यु ने सीखा।
अतः वह आधा जान सका ,अल्पायु में चल बसा.
मेरी माँ खुद सीखी सिखाई।
मेरी माँ की अमूल्य भेंट हिंदी ज्ञान।
अंदर जाने बाहर आने अगजग में आज
मित्रता पाने मेरी माँ की बे कीमती भेंट हिंदी।
आज मैं साहिया संगम संस्थान आ सेतु हिमाचल में
अपनी शैली अपनी भावाभिव्यक्ति में
लिखता हूँ तो वह हिंदी ज्ञान मान की भेंट।
हीरे पन्ने प्लाटिनम को तो है मूल्य।
पर माँ की भेंट हिंदी बहु मूल्य।
आज जग की तीसरी बड़ी भाषा
ढाई लाख की खड़ी बोली बाज़ारू हिंदी।
संस्कृत की बेटी उर्दू की सहोदरी।
मेरी अपनी माँ ,अहिन्दी भाषी ,
तमिलनाडु के विरोध आंदोलन
बसें जलती ,रेलगाड़ियाँ जलती ,
हिंदी मुर्दाबाद का नारा गली गली में
तब मेरी माँ की प्रेरणा हिंदी प्रचार।
छात्र आते वर्ग चलता बिलकुल मुफ़्त।
मेरी मान की भेंट माँ की भेंट हिंदी। .
स्वरचित स्वचिंतक से। अनंतकृष्णन ,चेन्नई
तमिलनाडु के हिंदी प्रेमी प्रचारक
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