नमस्ते वणक्कम
१४-४-2021
तन्हाई
बार बार यही शीर्षक ,
क्या करूँ एकांत में सोचा ,
बेगम के गम से दूर रहने सोचा।
तन ,मन दोनों अलग कर सोचा
अँधेरे कुएं में बैठे तपस्वीं तुलसी दास की याद आयी।
गुफाओं में बैठे तीर्थंकरों की याद आयी.
बुद्ध की याद आयी।
मुहम्मद नबी की भी याद आयी।
मेरी जन्म कुंडली में न लिखा था दिव्य ज्ञान।
तन के वज़न तो बढ़ा ,पर न नया ज्ञान।
अकेले बैठा तोंद तो बड़ा ज्ञान नहीं मिला।
बीबी आयी ,काफी पिलाई ,बेटा आया पोते भी।
तन्हाई बंधन से पारिवारिक बंधन अच्छा लगा ,
मैं तो मामूली हिंदी प्रचारक ,अंग्रेज़ी अध्यापक जैसे लुटेरा नहीं।
अब अकेलापन छोड़ मुख पुस्तिका में
तन्हाई तो दिव्य पुरषों का ज्ञान। केवल एक कान में सुनकर दुसरे कान में छोड़ देता।
स्वरचित
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