Thursday, April 3, 2025

भारतीय भाषाएँ

 हिंदी की समस्या में सरकार करोड़ों रूपए खर्च कर रही है।

 दस छात्र पढ़नेवाले कालेज के प्रोफेसर के लिए एक लाख।

 हिंदी अफ़सर के लिए एक लाख। पर सैकड़ों छात्रों में जनता में हिंदी प्रचार करने स्थाई प्रचारक नहीं, उनके लिए उचित वेतन नहीं तमिलनाडु में। हम अपनी हिंदी की दूकान चला रहे हैं।   हमको न पेंशन न प्रोत्साहन। न मेडिकल सुविधाएं।

 अतः तमिलनाडु में हिंदी प्रचार अंशकालीन है।  अन्यान्य काम करते हुए हिंदी का प्रचार कर रहे हैं। द्विभाषा नीति 58साल से लागू है। जिस भाषा को पढ़ने से नौकरी नहीं, भाषा सीखने से लाभ नहीं है। 

  ईश्वर भाई कमिटि में साफ सिफारिश है कि आठवीं कक्षा तक  भाषा काफ़ी है।

 गाँधीजी की बेसिक शिक्षा भी

 कोई न कोई पेशा सीखने पर ज़ोर देती है।

 नौकरी के प्रभाव से ही अंग्रेज़ी 

 को प्रधानता है।

   हिंदी सम्मेलन आजकल धनियों का सम्मेलन है।

 मलेशिया में सम्मेलन ।

 यात्रा खर्च तमिलनाडु का मामूली प्रचारक भाग नहीं ले सकते। धनी कालेज के लोग ही एक या दो भाग लेते हैं।

 उनका सम्मान करते हैं।

 मुझे कन्याकुमारी आना है तो पंद्रह हज़ार खर्च करना पड़ेगा।

 कोई आर्थिक लाभ नहीं है।

एक सांसद विधायक सौ करोड खर्च करके हज़ारों करोड़ कमाते हैं।

 हिंदी सम्मेलन कठोर मेहनत के पैसे खर्च करके नालायक सम्मान।

 यह तो न्याय पूर्ण कार्य नहीं है।

 अमीर अपने मनमौजी के लिए हिंदी सम्मान सम्मेलन।

 78 की आज़ादी  पर मातृभाषा के प्रति सम्मान नहीं।  अंग्रेज़ी माध्यम पाठशाला धन कमाने के लिए।

न संस्कृति न भाईचारा न अनुशासन,।

मैं तमिलनाडु में केवल हिंदी प्रचार में लगता तो

 भूखा प्यासा मर जाता।

 पैसे   न होने पर सम्मान भी नहीं सम्मेलन भी नहीं।

 हिंदी का विकास तो  देश की स्वतंत्रता संग्राम नहीं।

 वे नेता हिंदी के नहीं,

 अंग्रेज़ी के पारंगत, अंग्रेज़ी द्वारा 

 कमानेवाले न भारतीय भाषाओं के पक्ष में नहीं है।

आजकल कृषी के विकास के औजार ट्राक्टर खाद, 

पीने का पानी, पेय सब विदेशी कंपनी की देन है।

 इस मोबाइल भी टंकण भी अंग्रेज़ी ज्ञान के बिना अधूरी है।

 अंग्रेज़ी हटाकर जड़मूल  परिवर्तन संभव नहीं है।

हिंदी अनूदित किताबें  तमिल अनूदित किताबें गोदाम में।

  हिंदी और भारतीय भाषाओं का विकास होना है तो

अंग्रेज़ी माध्यम पाठशालाओं को बंद करना चाहिए।

 यह तो बिल्कुल दुर्लभ काम है।

 हिंदी के खर्च तो हिंदी भाषियों के लिए लाभप्रद है, न हिंदी तर प्रांत के लिए ‌।  बीस प्राध्यापक अंग्रेज़ी माध्यम के हैं।

 एक प्राध्यापक हिंदी के।

   अतः ये सम्मेलन अमीर हिंदी के पक्षधर के लिए, न साधारण हिंदी प्रचारक के लिए।

एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

Wednesday, April 2, 2025

मधुशाला மதுக்கடை

 வணக்கம் वणक्कम् 

.நமஸ்தே. नमस्ते।


 மன நிம்மதி। --मन निम्मति= मानसिक संतोष 

அமைதி - अमैति =शांति 

ஆனந்தம் =आनंदम् =आनंद


 என்பது  என்பது जो है 

 நிச்சயமாக --निश्चयमाक =निश्चित रूप में 

 டாஸ்மாக் ==टास्माक

 சென்று  ==चेन्रु =जाकर 

குடிப்பதால்  =कुडिप्पताल्=पीने से

நிரந்தரமாக -निरंदरमाक =स्थाई रूप में 

 கிடைக்காது  किडैक्कातु --नहीं मिलेगा।


அறிந்தும் தெரிந்தும்=अऱिन्तुम्  तेरिन्तुम् = जान पहचान कर 

 புரிந்தும்  पुरिन्तुम् = समझकर  தெளியாதவர்களில்  स्पष्ट न होनेवाले 

 

 படித்தவர்கள் पडित्तवर्कळ् --- शिक्षित 

 நடுத்தர   =नडुत्तर =मध्यम 

ஏழைத்   =एऴैत्=गरीब 

தொழிலாளர்கள்  =तोऴिळार्कळ=मज़दूर।


அரசு திரைப்படம் மூலம்  சின்னத்திரை மூலம் குடிகாரர்களை 

ஊரைத் தெரிஞ்சுக்கிட்டேன் உலகம் புரிஞ்சுக்கிட்டேன் என்று  குடிகார கதாநாயகனை  காட்டுவதால் குடிகாரர்கள் எண்ணிக்கை அதிகமாகிறது.


 அதற்கு अतर्कु  =उसके 

பதிலாக   बदिलाक --बदले

 ஆன்மீக  आन्मीक =आध्यात्मिक 

சிந்தனைகள்  चिंतनैकषषळ्=चिंताएँ

 யோகா  =योगा 

பிராணாயாமம்  प्राणायाम 

 பக்தி பஜனை भक्ति भजन

தியானம் ध्यान

 போன்ற  पोन्ऱ 

நிரந்தர  निरंतर 

எண்ணங்களை ऍण्णंकळै =विचारों को 

 மக்களின் मक्कळिन =लोगों के

ஆழ்மனதில் --आऴयंतिल् =गहरे मन में 

புரிய வைக்கவேண்டும். 

पुरिय वैक्कवेंडुम् ==समझाना चाहिए।

 இந்த इस 

அரிய  अपूर्व

பணியைச்  पणियिनै --सेवा को

செய்வது தான்  चेय्वतु तान =करना ही

தர்மம் அதாவது அறம்.

धर्मम् अर्थात अऱम्

धर्म तमिऴ में  आरम्भ 

அறம் செய விரும்பு अऱम् करना चाह।

 धर्म करना चाह।

 அதில் தான் ஆன்மீகம் நிலைத்து இருக்கிறது.

 ஆசைகள் மறந்து 

ஆன்மீக நாட்டம் தான் 

நிரந்தர நிம்மதி தருவது.

ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் 

 என்று இரண்டு நிமிடம் மூச்சுப் பயிற்சி.

 பல நல்ல விளைவுகளை ஏற்படுத்தும்.

 நிலையில்லாத உலகம்.

அழியும் உடல்

 நிலையற்ற இளமை

   செல்வம் பதவி

 நமது மரணத்தைதடுக்காது என்பது இறைவனின் சட்டம். அதற்கு துணை விதிமுறைகள் கிடையாது.

 குடிப்பதை நிறுத்தி

 திருஆவினன் குடி ஆறுமுகம்  பழனியாண்டியை

குலதெய்வத்தை வழிபட்டால் 

 அஹம் பிரஹ்மாஸ்மி

 நான் கடவுள் என்ற 

 அத்வைதம் கோட்பாடு புரியும்.

மன சஞ்சலங்கள் முடிந்து ஆத்மபோதம் அதாவது சுய அறிவு உண்டாகும்.

 மதுவை விட்டு மஹாதேவனை வணங்கினால் தான் 

நிரந்தர நிம்மதி.

சிவதாசன் 

சே.அனந்த

கிருஷ்ணன்.

Monday, March 31, 2025

இட்லி. इडली।

 तमिष हिंदी सेवा 

தமிழ் ஹிந்தி பணி 

विश्व इडली  दिवस = உலக இட்லி நாள் 


பழனிஅனந்த கிருஷ்ணன் சென்னை.

 இட்லி. इडली

 அரிசியாக चावल के रूप में 

உழுந்தாக  उडद के रूप में 

 அரைபட்டு।  पिसाकर 

 மாவாக்கி आटा बनकर 

ரவை சேர்த்து  रवा मिलाकर 

 பல சுவை சேர்த்து  अनेक स्वाद मिलाकर 

ஆவியில் வெந்து  भाप में उबालकर 

 பல பெயரில்  अनेक नामों में 

வயிற்றுப்பசி भूख 

மட்டுமல்ல  ही नहीं 

நோயாளிக்கு  रोगी के लिए 

மருத்துவரின்  डाक्टर की 

 பரிந்துரையாக. सिफारिश।

எத்தனை வகைப் பெயர்கள் 

कितने  किस्म के नाम 

 சாம்பார் இட்லி  सांबार इडली 

ரவா இட்லி   सूजी इडली 

 காஞ்சிபுரம் இட்லி. कांचीपुरम इडली

குஷ்பு இட்லி. खुशबू इडली

மினி இட்லி. लघु इडली

ஆனால்  लेकिन 

சுவைகூட स्वाद बढने

மிளகாய்ப்பொடி  लाल मिर्च चूर्ण

தேங்காய் சட்னி. नारियल चटनी 

தக்காளி சட்னி टमाटर चटनी 

சாம்பார் மூழ்கிய இட்லி.

सांबार में डूबीं इट्ली

நல்லெண்ணெய் மிளகாய்ப் பொடி

लाल मिर्च चूर्ण तिल का तेल मिश्रित 

 தடவிய கட்டுச்சாத கூடை இட்லி.

लगायें वैवाहिक टोकरी इडली

 ஆரோக்கியம் தரும்  आरोग्यप्रद 

 அறுசுவை சேரும்  षडस्वाद  मिश्रण

மென்மையான  कोमल इडली

 சிறு குழந்தைகள் முதல் பல்லில்லா முதியோர் வரை

शिशु से लेकर दांत रहित वृद्ध तक के लिए 

 ஏற்ற உணவே இட்லி.

 योग्य खाना इड्लियाँ।

विश्व इडली दिवस।


உலக இட்லி நாள்

प्रार्थना

  



தமிழ் ஹிந்தி பணி.तमिल्टऴ् हिंदी सेवा 

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एस . अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 

சே. அனந்தகிருஷ்ணன் சென்னை 

தமிழ்நாடு ஹிந்தி காதலர் மூலம் தன் படைப்பு கருத்து வெளிப்பாடு.

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இறைவணக்கம். इरैवणक्कम्  प्रार्थना 

இதயம் வலுப்பட. इदयम वलुप्पड- हृदय बल

होने 

இன்பம் நிலைப்பெற  इन्बम् निलैपेऱ

सुख  स्थिर होने

இன்னல் அகல. इन्ना अंकल संताप हटने

அறம் பெருக -अऱम् पॆरुक-धर्म बढ़ने 

 அறிவு செம்மை பெற  अऱिवु चेम्मै पॆऱ  

ज्ञान शास्त्रीय बनने 


அறியாமை அகற்றிட  अऱियामै अकट्रिड अज्ञानता हटने 


  அறுசுவை  கலந்திட अऱुचुवै कलंदिड षडरस मिलने

   ஆற்றல் பெருகிட  आट्रल् पॆरुकिड--शक्ति बढने

 ஆறுதல் தர  आट्रल् तर =शक्ति देने 

ஆற்றுப்படுத்திட --आट्रुप्पडित्तिड  -- पार कराने 

आंडवन उडनिरुक्क =भगवान साथ रहने

 प्रार्थनाएँ ==इऱैवणक्कम्‌




 

Sunday, March 30, 2025

भगवान की देन

 तमिऴ् हिंदी सेवा।

தமிழ் ஹிந்தி பணி


नमस्ते वणक्कम्। நமஸ்தே வணக்கம் 

खुशामद करो, --தற்புகழ்ச்சி செய்  तर्पुकऴ्च्ची चेय।

 ईश्वर का ! ஆண்டவனை.  आंडवनै।

जगत कल्याण के लिए। उलक  नन्मैक्काक--உலக நன்மைக்காக.

 यह बात मन में रख लो,  

இதை மனதில் வை. इतै मनतिल  वै!

 संसार मिथ्या है, ब्रह्म सत्यं है।

 उलकम् पोय्यानतु , इऱैवन उण्मैयानतु। 

உலகம் பொய்யானது, இறைவன் உன்மையானவன்.

हम जो है, जिला देश हो या चपरासी,

नाम मावट्ट आट्सियाळरो कडैनिलै ऊऴियरो

நாம் மாவட்ட ஆட்சியாளரோ அல்லது கடைநிலை ஊழியரோ

 भंगी हो या माली 

तोट्टियो तोट्टक्कारनो

 தோட்டியோ தோட்டக்க்காரனோ 

धनी हो या रंक। 

पणकक्कारनो एऴैयो

பணக்காரனோ ஏழையோ

 बुद्धु हो या बुद्धिमान,

मुट्टाळो अऱिवाळियो

 முட்டாளோ அறிவாளியோ

 ईश्वरीय सिरो लेखा लिखकर  आये हैं।

कडवुलिन तलै ए़ऴुत्तै

கடவுளின் தழை எழுத்தை

 எழுதி வந்திருக்கிறோம். ऍऴुतितान वंदिरुक्किरोम्।

हर एक  चतुर हो या चालाक,

ओव्वोरुवरुम तिरमैसाळियो तंतिरसालियो।

ஒவ்வொருவரும் திறமைசாலியோ அல்லது தந்திரசாலியோ.

 न्यायी हो या अन्यायी, 

नियायम उळ्ळवनो अनियायक्कारनो

 நியாயம் உள்ளனவோ அநியாயக்காரனோ

  काम्य संचित पूर्व जन्म कर्मफल।

विरुंबिय चेर्त्त मुऱ्पिरवि कर्मफलन्।

 விரும்பிய சேர்த்த  முன் பிறவி பலன்.

 सुखी जीवन के लिए  

सुखमानवाऴ्कै

சுகமான வாழ்க்கைக்க

 आत्मबोध, =தன்அறிவு  तन अऱिवु

 आत्मविश्वास  தன் நம்பிக்கை  तननंबिक्कै

 आत्मज्ञान  --தன் ஞானம்  तन ज्ञानम्

आत्मचिंतन  -தன் சிந்தனை  तन् चिंतनै 

ईश्वरीय केंद्र बनकर ही। 

कडवुळै मैय्यप्पडुत्तितान्।

கடவுளை மைய்யப் படுத்திதான்.

जितना भी ऊँचा उड़ो, 

उयर उयर पऱंतालुम्

உயர உயரப் பறந்நாலும்

 गौरैया गरुड नहीं बन सकता।

चिट।टुक।कुरुवि गरुडनाक मुडियातु।

சிட்டுக்குருவி கருடனாக முடியாது.

உயர உயரபறந்தாலும் ஊர்க் குருவி 

கருடனாக முடியாது.


सबहीं नचावत राम गोसाईं। 

अनैलरैयुम् आप।टिप्पडैप्पवन आंडवने।

அனைவரையும் ஆட்டிப் படைப்பின் ஆண்டவனே.


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एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना।

Saturday, March 29, 2025

 "हिंदी के विकास में हिंदीतर"

विजय प्रभाकर नगरकर द्वारा संचालित हिंदी तर लेखक परिचय। मुख पुस्तिका में।


  एस.अनंतकृष्णन , तमिलनाडु के हिंदी प्रचारक।  तमिल भाषी हैं पर तन मन से हिन्दी सेवा को समर्पित


   1967 से तमिलनाडु में हिंदी का प्रचार कर रहे हैं और हिंदी में स्नातकोत्तर डिग्री के साथ सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक हैं।


  वे "तमिल-हिंदी सीखिये" और "एसबीएम स्कूल एलिमेंट्री" जैसे फेसबुक पेज संचालित करते हैं और हिंदी और तमिल सीखने के लिए उनके ब्लॉग के 150,000 से अधिक दर्शक हैं।

  वे हिंदी में सनातन वेद और संत जगदीश्वर के तमिल वेद के बारे में लिख रहे हैं और उन्हें हिंदी साहित्य संस्थान, लखनऊ से सौहार्द सम्मान मिला है।


पृष्ठभूमि

आपने  1967 में तमिलनाडु में हिंदी को बढ़ावा देने की अपनी यात्रा शुरू की, एक ऐसा क्षेत्र जहाँ तमिल प्राथमिक भाषा है। हिंदी में स्नातकोत्तर डिग्री के साथ, उन्होंने एक शिक्षक और बाद में एक प्रधानाध्यापक के रूप में कार्य किया, अपना करियर शिक्षा और भाषा प्रचार के लिए समर्पित किया।


वर्तमान गतिविधियाँ:


सेवानिवृत्ति के बाद, आनंद डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से अपना काम जारी रखा है। वे दो फेसबुक पेज, "तमिल-हिंदी सीखिये" और "एसबीएम स्कूल एलिमेंट्री" संचालित करते हैं, जो लोगों को हिंदी और तमिल दोनों सीखने और समझने में मदद करते हैं। वे कई हिंदी ब्लॉग भी चलाते हैं, जिनमें शामिल हैं:

 आनन्दगोमु.ब्लॉगस्पॉट. कॉम पर "तमिल-हिंदी संपर्क"

  नवभारत टाइम्स से जुड़ा एक ब्लॉग जिसका नाम "मटिनंत" है

  सेतुकारी.ब्लॉगस्पॉट.कॉम पर "रामकृ"

इन ब्लॉगों ने 150,000 से अधिक दर्शकों को आकर्षित किया है, जो क्षेत्रीय भाषाई संदर्भ को देखते हुए उनके महत्वपूर्ण ऑनलाइन प्रभाव को दर्शाता है।


 साहित्यिक योगदान और मान्यता


आनंद वर्तमान में हिंदी में "सनातन वेद" और "संत जगदीश्वर के तमिल वेद" के बारे में लिख रहे हैं, जो प्राचीन ग्रंथों को आधुनिक दर्शकों के साथ जोड़ रहे हैं। वे विभिन्न विषयों पर कविताएँ भी लिखते हैं, जिसके लिए उन्हें प्रशंसा पत्र मिले हैं। उल्लेखनीय रूप से, उन्हें हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए हिंदी साहित्य संस्थान, लखनऊ द्वारा "सौहार्द सम्मान" से सम्मानित किया गया था।


#हिंदीतर

#हिंदी

#तमिल_हिंदी

Friday, March 28, 2025

नीति नेऱि विलक्कम् नैतिक मार्ग व्याख्या -कवि कुमरगुरुपरर्

 कुमरगुरुपरर् 17वीं शताब्दी के प्रसिद्ध कवि थे। उनका दिव्य स्मारक काशी में है।
शिक्षा के महत्व पर निम्न उनका  दूसरा पद  है



தொடங்குங்கால் துன்பமாய் இன்பம் பயக்கும் ==तोडंगुंकाल्  तुन्बमाय इन्बम  पयक्कुम 

மடம்கொன்று அறிவு அகற்றும் கல்வி நெடுங்காலம் =मडम् कोन्ऱु अऱिवु अकट्रुम्  कल्वि नेडुंकालम् 

முன் பயக்கும் சில நீர இன்பத்தின் முற்றிழாய் = मुन पयक्कुम्  सिल नीर इन्बत्तिन मुट्रिलाय्

பின் பயக்கும் பீழை பெரிது.  पिन पयक्कुम्  पीष़ै पेरितु.

कुमरगुरुपरर्   नारी को संबोधित करके कहते हैं कि

 शिक्षा अध्य्यन के श्रीगणेश करते समय दुख होगा।

अध्ययन के बाद शाश्वत सुख होगा। मूर्खता को शिक्षा मार डालेगी। काम और लौकिक इच्छा के सुख शुरुआत में अति आनंद- सा लगेगा।बाद में निरंतर दुख देगा ही। दुख से छूट कभी नहीं होगा।

 लौकिक काम सुख अस्थाई है, सुख सा लगकर दुख देगा।

शिक्षा विद्या से प्राप्त सुख स्थाई होती है। शिक्षा आरंभ में दुख सा लगेगा, बाद में निरंतर सुख देता रहेगा।











Thursday, March 27, 2025

नीतिनेरि विलक्कम्

 தமிழ் ஹிந்தி பணி.तमिऴ् हिंदी सेवा।


நீதிநெறி விளக்கம். नैतिक मार्ग व्याख्या।


குமரகுருபரர் =कुमरगुरुपरर्  --कवि 


அறம் =धर्म 


பொருள்=अर्थ  


 இன்பமும் =सुख


வீடும் ==मोक्ष


பயக்கும்புறங்கடை நல்லிசையும் நாட்டும் - உறும்கவலொன்றுஉற்றுழியும் கைகொடுக்கும் கல்வியின் ஊங்கில்லைசிற்றுயிர்க்கு உற்ற துணை. ---तमिऴ् मूल।


 கல்விதான் =कल्वितान् ==शिक्षा ही

 மனிதனுக்கு  मनितनुक्कु=मनुष्य को 

 உற்ற துணையாகும்=युक्त सहायक है।


 

கல்வி நமக்கு  =कल्वि नमक्कु  =शिक्षा हमको

அறவழிகளான  =अऱवऴिकळान  இறையன்பு, ==ईश्वर प्रेम

இறைப்பற்று  इरैप्पट्रु  =ईश्वर भक्ति 

நல்லொழுக்கம்,  नल्ओऴुक्कम् --अनुशासन्

பணிவு , =पणिवु =विनम्रता

மன அமைதி मन अमैति =मानसिक शांति 

 ஆத்ம ஞானம், ==आत्मज्ञानम् =आत्मज्ञान 

 தேசப் பற்று,  =देशप्पट्रु --देशभक्ति

மனிதநேயம், _मनितनेयम् =मनुष्यता 

 சுயநலமின்மை, =सुयनलमिन्मै --निस्वार्थता

தியாகம்,=त्यागयम् ==त्याग 


 தானம் =दानम् =दान


 பரோபகாரம் =परोपकारम् =परोपकार 


ஆகிய  -आकिय =आदि

 உயர் பண்புகளைத்  =ऊँचे गुण


தரும்.  तरुण =देंगी।


 அதன் விளைவாக=अतन् विळैवाक==

  उसके परिणाम स्वरूप 

நாட்டிலும் --नाट्टिलुम् --देश में 

 அயல் நாட்டிலும்   =अयलनाट्टिलुम्‌ =विदेश में भी 

செல்லும் இடங்களில் எல்லாம்


चेल्लुम्  इडंगलिल् एल्लाम् =जहाँ जाते हैं सब जगह 

 சிறப்பைத் தரும். ==चिरप्पेत् तरुम् =विशेषता देगी।

கவலைகளைப் போக்கும்.

कवलैकलैप्पोक्कुम्। --चिंताएँ दूर करेंगी।

உற்ற துணையாக  उप्र तुणैयाक 

योग्य साथी के रूप में 


இறுதிவரை இருக்கும்.  इरुतिवरै इरुक्कुम्।

अंत तक रहेगा।


 கை கொடுக்கும் தெய்வமாக இருக்கும்.

 कै कोडुक्कुम् देय्वमाक 

हाथ देनेवाले ईश्वर के रूप में  रहेगा।

 मानव का सच्चा साथी शिक्षा ही है।

 एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा अनूदित  भावार्थ। व्याख्या।

Thursday, March 20, 2025

हिंदी अंग्रेजी

 

ब्लॉग देखकर योग्य हो तो सम्मान करनेवालों की संस्थान हो तो  अच्छा होगा।

 पचास हजार, एक लाख खर्च करके प्रकाशन वह जमाना आज नहीं, 

 पर सम्मान पैसे लेकर देने के साहित्य अकादमी ज़्यादा है। करोड़ों रूपयों के चुनाव के लिए खर्च करनेवाले   सांसद विधायक को भारतीय भाषा की प्रगति में ध्यान नहीं। वे अंग्रेज़ी माध्यम की प्रधानता दे रहे हैं  सीबीएससी मेट्रिकुलेशन चलाकर L.K.G to U.G P.G. तक।

 हिंदी तमिल  CBSE में ३०% अंक काफी है।

 फिर उच्च शिक्षा केवल अंग्रेज़ी।

 भारतीय भाषाओं के खर्च केवल दिखावे के लिए।

 लाखों जवानों की नौकरी का आधार अंग्रेज़ी, न भारतीय भाषाएँ।


Tuesday, March 18, 2025

स्वर्ग नरक सुख

 नमस्ते वणक्कम्।


 जवानी भूलें, =வாலிபத் தவறுகள் 


 जवानी की स्वार्थता ==வாலிப சுயநலம் 


बुढ़ापे में स्वर्ग नरक की वेदनाएं। =முதுமையில் ஸ்வர்க நரக வேதனைகள்


शुभ परिणाम  சுப விளைவுகள் 


अशुभ परिणाम  =அரசுப் விளைவுகள் 


 रोग नीरोग काया =நோய் நோயற்ற உடல்


 हमारे ऋषियों मुनियों =நமது ரிஷிகள் முனிவர்கள் 



भक्त आध्यात्मिक चिंतनके लोग  ==பக்தர்கள் ஆன்மீக சிந்தனைகள் உள்ளவர்கள் 

संसार को  ==உலகத்திற்கு 


सुखांत जीवन =சுகமான முடிவுற்ற வாழ்க்கை 


जीने मार्ग दिखाते हैं। வாழ வழிகாட்டுகின்றனர்.



पर उनका जीवन =ஆனால் அவர்கள் வாழ்க்கை


 आर्थिक समृद्धि की ओर नहीं था।

செல்வச் செழிப்புள்ளதாக இல்லை.


 जग कल्याण के लिए =°உலக நலனுக்காக 

 दिगंबर जीवन, --நிர்வாண வாழ்க்கை 


कौपीन पहनकर जीवन, =கோவணம் அணிந்த வாழ்க்கை 


 जड़ मूल फल खाकर  =வேர் கிழங்கு பழங்கள் சாப்பிட்டு

 भूखा प्यासा जीवन

பசி தாகமான வாழ்க்கை.

 अनशन,मौन जीवन =உண்ணாவிரதம் மௌனமான வாழ்க்கை.


 ऐसे महानों के नाम = இப்படிப்பட்ட மஹான்களின் பெயர்களை


 आज भी लेते हैं। இன்றும் சொல்கிறோம்.


 महावीर, बुद्ध का नाम लेते हैं  =மாவீரர் புத்தர் பெயரைக் கூறுகிறோம்.

 यह याद रखना  இதை நினைவில் வைத்துக் கொள்ளுங்கள்.

 राजवंश जो अपने अहंकार वश =அரச குலங்கள் தன் ஆணவத்தால்


 अपनी शक्ति दिखाने  =தன் வலிமையைக் காட்ட

 अपने प्रेम निभाने = தன் காதலைக் கடைபிடிக்க 


 हज़ारों वीरों को ஆயிரக்கணக்கான  வீரர்களை 

 वीर पत्नियों  को =

 வீர மனைவிகளை


उनकी संतानों को  =அவர்களின் குழந்தைகளை

अनाथ बनाये ==அனாதை ஆக்கினார்கள்.


उन राजाओं के   वंश =அந்த அரச குலங்கள்


 आज पता नहीं। இன்று தெரிவதில்லை.


 केवल इतिहास के छात्र  =வரலாற்று மாணவர்கள் 

विवश होकर पढ़ते हैं। =வேறு வழியின்றி படிக்கின்றனர்.



 पर भक्त कवि संत ऋषियों के नाम =ஆனால் பக்தி கவிஞர்கள், சாதுக்கள் ரிஷிகளின் நாமங்கள் 


 आध्यात्मिक मार्ग का पालन =ஆன்மீகம் வழியை கடைப்பிடிக்க 

 आज भी लोग लेते हैं। =இன்றும் மக்கள் கூறுகிறார்கள்.

 यही सूक्ष्म  भगवान की लीला है, இதுதான் நுண்ணிய இறைவனின் லீலை.


 जिनके कारण संसार स्थिर है, அதன் காரணமாக உலகம் நிலைத் திருக்கிறது.

 न्याय है ! நியாயம் இருக்கிறது.


ईमानदारी है, =நாணயம் இருக்கிறது.


 वही धर्म है, அதுதான் அறம்.


 मजहब मत मतांतर संप्रदाय नहीं है।=மதங்கள் சம்ரதாயங்கள் வேறுபாடுகள் கிடையாது.


 प्राकृतिक प्रकोप सिखाता है कि

  मजहब मत मतांतर संप्रदाय नश्वर है।

இயற்கைச் சீற்றங்கள் ம்தம் மத வேறுபாடுகள் சம்பிரதாயங்கள் அழியக்கூடியவை.

 धर्म ही शाश्वत है। =அறம் தான் நிலையானது‌

 धर्मो रक्षति रक्षित रक्षणः।=

அறத்தை அழிப்பவனை அறம் அழிக்கும். அறம் காப்பவனை அறம் காக்கும்.


 அனைவரையும் ஆட்டிப் படைப்பது 

ஆண்டவனே.

 सबहीं नचावत राम गोसाईं।

पऴनी एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक 

 शिवदास।

Monday, March 17, 2025

कबीर

 शूनै पड्या  न  छूटियो,सुनी रे जीव अबूझ!


कबीर मरि मैदान मैं ,करि इन्द्रियाँ सूं झूझ . 

    


      हे नर! तू तो अज्ञानी !शून्य प्रदेश में एकांत में  छिपकर माया मोह से बच नहीं  सकता.


इन्द्रियों से जीतने  सांसारिक मैदान में खड़े होकर लड़;इन्द्रिय्वासनाओं को जीतने की शक्ति 


वैराग्य से नहीं ,उनको भोगते नष्ट करने में है.आसक्ति में अनासक्त  रहकर चल बसने में ही काम्य  है.


    

 மனிதனே!   நீ ஞானமற்றவன் ! சூன்யமான இடத்தில் தனிமையில் ஒழிந்து


மாயை -மோஹத்தில்   இருந்து தப்பிக்க முடியாது. ஐம்புலனை வெல்ல உலகின் மைதானத்தில்  நின்று போரிடு . ஐம்புலனை வெல்லும் சக்தி வைராக்யத்தில்  கிடையாது.அதை அனுபவித்து அழிக்க  வேண்டும்.பற்றில் பற்றற்று மரணத்தில் பலன் உள்ளது.

Tuesday, February 18, 2025

तिरुमूलर। तिरु मंत्र

 


नमस्ते वणक्कम्।

  भारतीय भाषाओं में वैज्ञानिक दृष्टांत के साथ  ईश्वर के महात्म्य  और आध्यात्मिक  अमूल्यता   का महत्व है।

 संत तिरुमूलर  के तिरु मंत्र  ऐसे ही एक महान ग्रंथ हैं।


सूर्य कांत रूई  के  ढेर को  चंद मिनट में जैसे जलाते हैं और धूप के प्रभाव से राख हो जाता है,वैसे ही भगवान झट तीन मलों को जलाकर राख कर देते हैं।

संत तिरुमूल  ने वैज्ञानिक ढंग से  अद्भुत उदाहरण दिया है। आध्यात्मिक प्रयत्न अज्ञानता, 

माया,( प्रारब्ध कर्म ,संचित कर्म,  काम्या कर्म   तीनों को खत्म कहते हैं)कण्म ज्ञान आध्यात्मिक चिंतन से ईश्वरीय करुण को सूर्य के रूप में अन्य तीन मूल को रूई  की तुलना के रुपक देते हैं।

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Monday, February 17, 2025

जीवन के दिन चार

  नमस्ते वणक्कम्।

जीवन के दिन है चार।

 अवस्थाएँ हैं 

 अति सूक्ष्म बिंदुएँ,

  अंधकार में मिलकर,

 तम में पलकर

 गर्भावस्था में  दस महीने।

 गर्भ से बाहर आकर

 शैशवास्था में 

 रोकर हँसकर पलना।

 आश्रित जीवन से शुरू।

 शैशवास्था में से बचपन,

 बचपन से लडकपन,

 जवानी, प्रौढ़ावस्था बुढापा।

  छे अवस्थाएँ 120साल 

 अधिकतम मानव जीवन।

 एक एक अवस्था बीतते बीतते

 आश्रित मानव जीवन निराश्रित सा

 पचास साल, फिर बुढ़ापे में आश्रित।

 माँ का प्यार धीरे धीरे   

 पिता का दुलार धीरे  धीरे।

 पति पत्नी का प्यार अंत तक।

 संतानों का पालन,

 जिम्मेदारी बुढापा।

 बहु दामाद का

 बेटे बेटियों का प्यार

 बुढ़ापे में मिलना भाग्य की बात।

कर्मफल, विधि की विडंबना।।

 सनातन धर्म में 

 आसक्ति की अवस्थाएँ  दो


 शारीरिक शक्ति तक।

प्रौढावस्था में अनासक्ति का श्रीगणेश।

वृद्धावस्था में परिपक्व मन,

 माया मोह तजकर,

 संन्यासी जीवन।

 केवल मोक्ष की चिंता,

ईश्वर का  आत्मचिंतन।

काशी में मरणावस्था में 

 कुछ लोग जलने तैयार।

 न रिश्तों की बातें।

 केवल ईश्वर ध्यान।

 ये 120की पूर्ण जीवन 

 संतोष असंतोष 

 शांति शांति 

 हास्यमय अश्रुमय जीवन।

 यही  मानव जीवन।

सुख दुख की आँख मिचौनी।

  दिन और रात समान।

उजियारे और अंधकार भरा।

 यथार्थता यही, चार दिन की चाँदनी।

 अपना अपना भाग्य।

 सबहीं नचावत राम गोसाईं।।

 

एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई द्वारा स्वरचित 

 भावाभिव्यक्ति यथार्थ चित्रण।

[18/02, 3:55 am] Meta AI: आपकी यह रचना मानव जीवन की वास्तविकता को बहुत ही सुंदर और यथार्थ तरीके से चित्रित करती है। आपने मानव जीवन की विभिन्न अवस्थाओं, जैसे कि गर्भावस्था, शैशवास्था, बचपन, जवानी, प्रौढ़ावस्था, और बुढ़ापे का वर्णन किया है।


आपकी रचना में कई महत्वपूर्ण बिंदु हैं:


- मानव जीवन की विभिन्न अवस्थाएं और उनकी विशेषताएं।

- मानव जीवन में सुख और दुख की अनिवार्यता।

- मानव जीवन में रिश्तों और प्रेम की महत्ता।

- मानव जीवन में आत्म-चिंतन और ईश्वर की ओर बढ़ने की आवश्यकता।

- मानव जीवन की नश्वरता और मृत्यु की अनिवार्यता।


आपकी रचना में सनातन धर्म के सिद्धांतों का भी वर्णन है, जैसे कि आसक्ति और अनासक्ति की अवस्थाएं, और मोक्ष की चिंता।


आपकी यह रचना हमें मानव जीवन की वास्तविकता को समझने और जीवन की विभिन्न अवस्थाओं में सुख और दुख को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करती है।

Saturday, February 15, 2025

तमिल हिंदी सेवा தமிழ் ஹிந்தி பணி

 [16/02, 8:55 am] sanantha.50@gmail.com: तमिल हिंदी सेवा 

தமிழ் ஹிந்தி பணி.

     இறைவணக்கம்.

           प्रार्थना।

இன்றைய இறை செய்தி 

आज का ईश्वर संदेश।

              

           ऊँ।ஓம்!

          मानव दुखी हैं, --मनुष्य  तुण्बम उळ्ळवन्  மனிதன் துன்பம் உள்ளவன்.

             चंचल है। -- சஞ்சலம் உள்ளவன். चंचलमुळ्ळवन।

         कारण  --कारणम् 

वह अपने को ही ==अवन त्न्नैये

 =அவன் தன்னையே =

 सर्वे सर्वा मानता है। --அனைத்தும்   என கருதுகிறான். = 

अनैत्तुम् ऍन् करुतुकिरान्।


सद्यःफल के लिए  ==உடனடி நலனுக்காக

उडनडि पलनुक्काक


 अधर्म  =அதர்மம் =अधर्मम्


पाप कार्य में ही --पावकार्यंकळिळेये=பாவகார்யங்களிலேயே


 उसका मन इच्छित है। =अवन् मनम् इच्छैयाक इरुक्किऱतु।=

அவன் மனம் விரும்புகிறது.


 अधर्मी रुपये देने पर ---अधर्मम्  उळ्ळवन् पणम् अळित्ताल् =அதர்மம் உள்ளவன் பணம் அளித்தால் 

 उस अधर्मी के --அந்த அதர்மியின்  -अंत अधर्मियिन 

 गुणगान करने  ==पुकऴ् पाड

 सन्नद्ध है। ==तयाराक इरुक्किरान् =தயாராக இருக்கிறான்.


 परिणाम  --பலன் -पलन्‌


 आजीवन  =वाऴनाल् मुऴुवतुम् 


दुखी हैं। --तुन्बमुळ्ळवनाक इरुक्किरान्‌.

துன்பமுள்ளவனாக இருக்கிறான்.


 यही यह संसार है। = इतुतान इंत उलकम्।=


இதுதான் உலகம்.


माया ही = मायै तान = மாயை தான்.


 आत्मज्ञान =आत्मज्ञानी  =ஆத்ம ஞானி 


मनुष्य को  =मनितनै =மனிதனை

 

 अज्ञानी बनाता है। --अज्ञानी आक्कुकिरतु।அக்ஞானி ஆக்குகிறது.


शिवदास 

पऴनि  से. अनंत कृष्णन, चेन्नई 

சிவதாசன் 

பழனி சே. அனந்த கிருஷ்ணன் , சென்னை.

  ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

[16/02, 8:55 am] Meta AI: आपका यह संदेश बहुत ही प्रेरक और आध्यात्मिक है। आपने मानव जीवन की वास्तविकता और अज्ञान के कारण होने वाले दुखों को बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया है।


आपके द्वारा दिए गए संदेश में कई महत्वपूर्ण बिंदु हैं:


- मानव जीवन में अज्ञान के कारण दुख और चिंताएं होती हैं।

- अधर्मी और पापी कार्यों में लिप्त रहने से मानव जीवन दुखी और असफल होता है।

- माया और अज्ञान के कारण मानव जीवन में भटकाव और दुख होता है।

- आत्मज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान के माध्यम से ही मानव जीवन में शांति और सुख प्राप्त हो सकता है।


आपके संदेश में शिवदास पऴनि से अनंत कृष्णन की बात भी बहुत ही प्रेरक है, जिसमें उन्होंने मानव जीवन की वास्तविकता और अज्ञान के कारण होने वाले दुखों को समझाया है।


आपका यह संदेश हमें मानव जीवन की वास्तविकता को समझने और अज्ञान के कारण होने वाले दुखों से बचने के लिए प्रेरित करता है।

Tamil Hindi seva

: तमिल हिंदी सेवा 

தமிழ் ஹிந்தி பணி 

+++++++++++++++

ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் 

 இன்றைய  इन्रैय =आजका

இறை சிந்தனை. इऱै चिंतनै =ईश्वरीय चिंतन 

 தெய்வம்  देय्वम्- देव 

உடனடி பலன்उडनडि फलन = सद्यःफल 

 தரும் என்றோ देंगे या 


 உடனடி उडनडि=  सद्यः 

  दंड देंगे தண்டனை दंडनै  तरुण  यों 

தரும் என்று

 நினைப்பதும்  =सोचना 

பரிகாரம் -- परिहार 

 செய்வதும் -करना 

  தற்காலிக  तात्कालिक 

மன சாந்தியே. मन शांतये =  मन शांति ही है।

 ஒவ்வொரு ओव्वोरु= हरएक 

மனிதனும் मनितनुम् मनुष्य

 பிறக்கும் पिऱक्कुम=  जन्म 

 போதே पोते =  लेते समय ही

 அவனுடைய  अवनुडैय =उसका

கர்ம யோகம்  कर्मयोगम् =कर्मयोग 

உடன் வருகிறது. उड़न वरुकिऱतु। साथ आता है।

 மழைத்துளி  मऴैत्तुळि

புனித पुनित =पवित्र 

  கங்கையிலும் गंगैयिलुम्  =गंगा में சமுத்திரத்திலும்  समुद्दिरत्तिलुम् =समुद्र में 

 சிப்பியிலும்  सिप्पियिलुम्  =सीपी में  

விழுந்தாலும் विऴुन्तालुम्  =गिरने पर भी 

 அதன் குணம் अतन् गुणम् =उसका गुण

 மதிப்பு  मतिप्पु  मूल्य 

 வேறுபடுகிறது. वेरुपडुकिऱतु। भिन्न होता है।

 கழிவுநீர்  कऴिवु नीर  मोरे में வாய்க்காலிலும் 

 விழுகிறது. विऴुकिऱतु। गिरता है।

 இதையே   इसी को

 நெல்லுக்கிறைத்த  नेल्लुक्किरैत्त  -धान के खेत को सींचा 

 நீர்  =नीर =पानी

வாய்க்கால்    वाय्क्काल्  = नाले 

வழியோடி वऴियोडी  मार्ग पर बहकर 

 புல்லுக்கும் पुल्लुक्कुम्  घास को भी

ஆங்கே वहाँ

 புசியுமாம் पुसियुमाम्  काम आएगा। 

 நல்லார்  नल्लार अच्छे

ஒருவர் ओरुवर 

 एक 

  உளரேல் उळरेल=  हो तो 

அவர் பொருட்டு अवरपोरुट्टु =उनके  प्रति

எல்லோருக்கும் ऍल्लोरुक्कुम्=  सब को பெய்யும் மழை  पॆय्युम मऴै=वर्षा होगी।

 என்றார் ऍन्ऱार् कहा

ஔவை முதாட்டி.

औवै बूढ़ी।

 ஆகையால் आहैयाल 

इसलिए 


 நாம்  नाम= हम

இப்பிறவியில் इप्पिऱवियिल  इस जन्म में

 தானம் दानम् दान्

 தர்மம் धर्मम् धर्म

 செய்வதை விட 

सेय्वतै विड करने से

 இறை நாமம் इरै नामम् 

भगवान के नाम 

 ஜபித்தால்  जपित्ताल् जप करने से

அதுவே  अंतुवे =वही

நற்சிந்தனை களை

नऱ्चिंतन को 

अच्छे चिंतन को


நல்ல வினைகளைச்

नल्लविनैकळै


अच्छे कर्मों को 

 செய்யத் தூண்டும்.

सेय्यत्तूंडुम् =करने की प्रेरणा देगी।

 சுருக்கமாகக் चुरुक्कमाकक् =संक्षेप में 

 கூறினால்  कूरिनाल्

कहें तो

 நம் மனம்नम् मनम्

 हमारा मन

 ஆத்மாவில் आत्माविल् =आत्मा में 

இணைந்து इनैंतु ==जुड़कर 

பரமாத்மா परमात्मा நிலையடையு ம். निलैयडैयुम्  स्थिति पर पहुँचेगी।

 அது தான் अतुतान् =वही அத்வைத்  अद्वैत्= நிலை. निलै =स्थिति 

ஆதி சங்கரர் आदी शंकर சித்தாந்தம். सिद्धांत।

 சிவதாசன் 

பழனி சே. அனந்த கிருஷ்ணன்.

शिवदास पऴनी

  से. अनंत कृष्णन।

[15/02, 11:52 am] Meta AI: आपका यह संदेश बहुत ही प्रेरक और आध्यात्मिक है। आपने भगवान की भक्ति और नाम जप के महत्व को बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया है।


आपके द्वारा दिए गए संदेश में कई महत्वपूर्ण बिंदु हैं:


- भगवान की भक्ति और नाम जप से हमारा मन शुद्ध होता है और हमें आत्मज्ञान प्राप्त होता है।

- नाम जप करने से हमारे मन में अच्छे विचार और कर्मों की प्रेरणा मिलती है।

- भगवान की भक्ति और नाम जप से हमारा मन परमात्मा में जुड़कर अद्वैत स्थिति पर पहुँचता है।

- आदि शंकराचार्य के सिद्धांत के अनुसार, भगवान की भक्ति और नाम जप से हमें मोक्ष प्राप्त होता है।


आपके संदेश में औवै मुदालार की बात भी बहुत ही प्रेरक है, जिसमें उन्होंने कहा है कि भगवान की भक्ति और नाम जप से हमारा मन शुद्ध होता है और हमें अच्छे विचार और कर्मों की प्रेरणा मिलती है।


आपका यह संदेश हमें भगवान की भक्ति और नाम जप के महत्व को समझने और अपने जीवन में इसका अभ्यास करने के लिए प्रेरित करता है।

Thursday, February 13, 2025

तमिल हिंदी सेवा தமிழ் ஹிந்தி பணி

 வணக்கம்.       नमस्ते। --वणक्कम्।

तमिऴ् हिंदी सेवा।

தமிழ் ஹிந்தி பணி 

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 இறைவணக்கம்.

इरै वणक्कम् ।   प्रार्थना ।

 சனாதன  सनातन 

தர்மத்தில் धर्मत्तिल---  धर्म में 

 தனத்திற்கு धनत्तिर्कु ---धन को  

முக்கியத்துவம்  मुख्यत्तुवम् -प्रधानता  அளிக்கப்படவில்லை.

अळिक्कप्पडविल्लै। ---

 नहीं दी गयी है।

தனத்தை धनत्तै---

  धनको 

தர்ம धर्म -- धर्म காரியங்களுக்குத் தான்

कार्यंकंलुक्कुत्तान

 कार्यों के लिए ही

 

 பயன் படுத்த  -पयन पडुत्त --उपयोग करना 

 வேண்டும். वेंडुम्-- चाहिए।

அப்போது தான்  

अप्पोतुतान्


तभी  

நிரந்தர निरंतर -- स्थाई 

மன நிறைவு मननिऱैवु

  मानसिक संतोष

சாந்தி शांति  शांति 


ஆனந்தம் आनंद -- आनंद 

 பரமானந்தம் परमानंद --

परमानंद

  கிடைக்கும்किडैक्कुम्. मिलेंगे।

 தனம் இல்லைधनम् इल्लै ऍन्रालुम्- धन न होने पर भी என்றாலும்

 மன நிறைவுடன் मन निषत्वऱैउडन् 

मानसिक  संतोष के साथ

 இறைவனை इरैवनै   ईश्वर से  வழிபடவேண்டும். वऴिपडवेंडुम्

 प्रार्थना करनी चाहिए।

 கலியுகத்தில்  कलियुगत्तिल्

कलियुग में 

 நாம் ஜபம் नामजपम्

  नाम जप 

மட்டுமே मटृटुमे --  मात्र ही

  செய்ய முடியும்.

चेय्यमुडियुम्।

  कर सकते हैं ।

 அதை --अतै-- उसे  

ஆழ்மன -आऴ्मन-- गहरे मन से 

 பக்தியுடன் भक्तियुडन-- भक्ति के साथ 

 செய்ய  வேண்டும்.चेय्य वेंडुम्--

 करनी चाहिए।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ 

ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம் ஓம்

Wednesday, February 12, 2025

நாம் ஜபம்

 नमस्ते वणक्कम्। 


நமஸ்தே வணக்கம்


 भगवान भक्ति  பகவான்  பக்தி

 

   भला करेगी। நன்மை செய்யும்.


 बला टलेगी। ஆபத்து போகும் 


 पल पल नाम जप कर।।


ஒவ்வொரு நொடியும் ஜபம் செய்ய.


 फल ही फल सफल ।

பயனே பயன் வெற்றியே.


 सफलता की कुंजी

வெற்றியின் திறவுகோல் 


 नाम जप।

நாமஜபம்.

 राम राम बोले

ராம ராம சொன்னார் 

 तुलसीदास बने साहित्य शशि।

 துளசிதாசர்  இலக்கியத்தில் சந்திரன்.


 डाकू बने आदी कवि।

கொள்ளையன் ஆனான் ஆதிகவி.

 सत्संग से  कबीर का राम।

சத்சங்கத்தால் கபீர் ராமர்

 व्यापक विस्तृत  जानकारी।

 பரந்த விரிவான  தகவல்.

 वरकवियों की रचनाएँ

வர கவிஞர்கள் படைப்பு 

 दिव्य प्रेरक व्यक्तित्व।

தெய்வீக தூண்டல் ஆளுமை.

 मन की एकाग्रता 

மனதின் ஒருமை

 नाम जप से।

நாம் ஜபித்தால்.

 आत्मज्ञान 

ஆத்ம ஞானம் தன்னறிவு

 आत्मविश्वास 

தன்னம்பிக்கை 

 ईश्वरीय शक्ति।

இறைவன் சக்தி 

 फल सफल 

பயன் வெற்றி.

 नाम जप से 

நாம் ஜபத்தால்

जानो, समझो, जागो।

அறிந்து கொள்.

 புரிந்து கொள்.

விழித்துக்கொள்.


சிவதாசன் இறைவழிபாடு.

[13/02, 7:32 am] Meta AI: आपका यह संदेश बहुत ही प्रेरक और आध्यात्मिक है। आपने भगवान की भक्ति और नाम जप के महत्व को बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया है।


आपके द्वारा दिए गए संदेश में कई महत्वपूर्ण बिंदु हैं:


- भगवान की भक्ति और नाम जप से हमें आत्मज्ञान और आत्मविश्वास प्राप्त होता है।

- नाम जप से हमारे मन की एकाग्रता बढ़ती है और हमें ईश्वरीय शक्ति का अनुभव होता है।

- भगवान की भक्ति और नाम जप से हमें फल और सफलता प्राप्त होती है।

- हमें नाम जप के माध्यम से जानो, समझो, और जागो की आवश्यकता है।


आपके संदेश में तुलसीदास, कबीर, और अन्य महान संतों का उल्लेख भी है, जिन्होंने भगवान की भक्ति और नाम जप के महत्व को अपने जीवन और कार्यों में दर्शाया है।


आपका यह संदेश हमें भगवान की भक्ति और नाम जप के महत्व को समझने और अपने जीवन में इसका अभ्यास करने के लिए प्रेरित करता है।

Monday, February 3, 2025

आम शब्द

 இமயம் முதல் குமரி வரை 

 பொதுவான சொற்கள்.

 आ सेतु हिमाचल आम शब्द।

 हिंदी -तमिऴ  सेवा

ஹிந்தி தமிழ் பணி.

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 भाषा ==भाषै பாஷை

 पुस्तक = पुत्तकम् 

 राजा --राजा, अरसन्

दिशा ==दिशै,  

 ज्ञान =ज्ञानम् 

चिंतन =चिंतनै

कष्ट =कष्टम्

नष्ट  नष्टम्

 इष्ट =इष्टम्

लाभ==लाभम्

 व्यापार ==वियापारम्

कुल =कुलम्

वंश ==वंशम्

परंपरा =परंपरै।

समाचार ==समाचारम् 

परीक्षा --परिच्चै, तेर्वु

प्रचार ==प्रारम्भ

विश्वनाथ ==विश्वनाथन्

लोकनाथ --उलकनाथन् 

धैर्य = धैरियम्

 कठिन =कठिनम्

 सरल -सरळम्

दिन --दिनम्

 समूह= समूहम्

उत्साह =उऱ्चाकम्


कल्पना =कऱ्पनै।

प्रयत्न =प्रयत्तनम्

विश्वास ==विश्वासमत

मुख ==मुख्य

लक्षण --लक्षणम्

संप्रदाय ==संपिरदायम्

महत्व --महत्तुवम्

वर्ण ==वर्णम् 

 अंग = अंगम्

योग्यता --योग्यतै

दृष्टि ==दिरुष्टि

कारण ==कारणम्

कर =करम्

वर =वर्णम्

धर्म ==धर्मम् 

क्षण ==क्षणम्

 प्रिय --पिरियम्

 वन =वनम्

देव ==देवन।

देवी -देवि

 











संघ ==संगम्

निर्णय ==निर्णयम्

संतान ==संतानम्





  

 

 



 


 









 

 






Sunday, February 2, 2025

आम शब्द பொது சொற்கள்

 आसेतु आम शब्द 

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तमिऴ् हिंदी सेवा। नागरी लिपि सेवा 

தமிழ் ஹிந்தி நாகரி எழுத்துப் பணி 



धन --धनम् 

मन -मनम्

  शरीर--शरीरम् 

मूर्ख --मूर्क्कन

 शाला --शालै

 ओर -ओरम्

 कोण -- कोणम।

 वीर --वीरम्

धीर -धीरम् 

साहस -साहसम्

 नगर -नगरम् 

रोश --रोशम्

मान --मानम्

लक्ष्य -लक्ष्यम्

गगन =गगनम्

 मेघ --मेघम्

 गान -गाणम्

 पाठ --पाडम्

 विषय  -विषयम्

 दोष --दोषम्

गुण --गुणम्

 कथा पात्र --कथा पात्तिरम्

नायक -नायकन।

नायिका -नायकि।

सवाल -सवाल।

 वाद -वादम् 

चर्चा -चर्च्चै।

 तर्क -तर्क्कम।

 सत्य -सत्तियम्

 कोप --कोवम।

अपमान -अवमानम्

 अन्याय =अनियायम्

  विवाह --विवाहम्

देश           देशम्

  विवरण -विवरम्

 निर्वाह -निर्वाकम् 

   मास -- मासम्

   यों ही शाब्दिक एकता 

भारत में आ सेतु हिमाचल।

 विदेशियों के आने के बाद 

 खासकर अंग्रेजों ने

 संस्कृत के स्थान को

 अंग्रेज़ी में देने

 जीविकोपार्जन को प्रधानता दी।

 धन प्रधान जग के सामने

 भाषा किस खेत की मूली।

 ग्रीक लत्तीन संस्कृत पाली अपभ्रंश ।

 १२५ साल की खड़ी बोली का अद्भुत विकास।

 भाषा बहता नीर है।

 धन प्रधान होने पर 

  भाई भाई को मारता है।

 अशोक, औरंगजेब, आंभी, विभीषण इतिहास में असंख्य लोग।

  ईसा आज ईश्वर का दूत्

 तब सजा का पात्र।

 यही ईश्वर की सूक्ष्मता 

 मानव बुद्धि किस काम की

 सुनामी, कोराना भूकंप के सामने।

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एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक 



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अवश्य = अवसियम्

 शीघ्र - शीक्किरम्

वेग =वेगम्

 बंद --बंद।

भक्ति  ==भक्ति 

मुक्ति = मुक्ति

शक्ति =शक्ति

परीक्षा =परिच्चै

इच्छा --इच्छै

विधि =विधि

 निधि =निधि

परिवार ---परिवारम्

बुध = बुधन

शनिवार =शनिक्किऴमै।

अनेक = अनेकम्

विवेक --विवेकम्

दुख --दुक्खम

शोक ==शोकम्

करुणा =करुणै

वेदना ==वेदनै

 काव्य =कावियम्

अलंकार =अलंकारम्

 नाटक ==नाटकम्

कविता ==कवितै

छंद। --चंदम्

मात्रा --मात्तिरै

वाक्य =वाक्कियम्

शुद्ध =चुत्तम

विमान  विमानम्




















 




Saturday, February 1, 2025

मरा

 

तमिल हिंदी सेवा 

 தமிழ் ஹிந்தி பணி.



कुछ तुम लिखो, कुछ हम लिखे

संस्थापक संचालक सहभागियों को प्रणाम।


नमस्ते। वणक्कम्।    வணக்கம். वणक्कम्।

   कम शब्दों में   குறைந்த சொற்களில்.‌कुरैंद चोऱ्कळिल् 

अधिक   --அதிக 

 தகவல் अधिक तकवल्कळ् ।

जानकारी देना अळित्तल् । 

    ग़म दूर करना  --तुन्बम् पोतल्  துன்பம் போதல் 

आनंदित करना --आनंदप्पडुत्तुतल्। ஆனந்த ப் படுத்துதல் 

 शांति संतोष मिलना  --अमैति मन निऱैवु किडैत्तल्।

அமைதி மன நிறைவு தருதல்

 सनातन धर्म की देन। = सनातन धर्मम् अळित्ततु  சனாதன தர்மம் அளித்தது.

 एक मंत्र==  ऒरे  मंतिरम् ஒரே மந்திரம் 

" ॐ". ஓம்

 ॐ कहो =ॐ  चोल्‌। ஓம் சொல் 

 दो अक्षर  --इरंडेऴुत्तु  இரண்டெழுத்து  

शिव कहो। = शिव। चोल्=சிவ  சொல்

राम कहो,  राम कहो =ராம் சொல்.

ढाई अक्षर  कृष्ण कहो।   இரண்டரை எழுத்து ஷா க்ரு ஷ்ண சொல்.  इरंडरै ऍऴुत्तु कृष्ण चोल्।

 कबीर का. कबीरिन्  கபீரின் 

 राम मानो,  इरामनै ऍट्रुक्कोळ्  இராமனை ஏற்றுக்கொள்.

 व्यापक  விரிவானவர் विरिवानवर् 

 अनंत  முடிவில்லாதவர் मुडिविल्लादवर।

सर्वव्यापी =அனைத்து இடத்திலும் பரந்தி ருப்பவர் 

अनैत्तु इडततिलुम्  परंतिरुप्पवर्।

 मानवीय.  --மனித நேய  मानित नेम।

 एकता का मूल. ஒற்றுமைக்கு மூலம்.

ऒटरुमैक्कूम् मूलम् 

 मंत्र  -மந்திரம் मंतिरम्।

 निराकार  உருவமற்ற उरुवमट्ऱ

 अनंत  முடிவில்லா  मुडिविल्ला

भुजों वा

ल राम। புஜங்கள் உள்ள இராமர்.

भुजंगळ्  उळ्ळ इरामर् 

 

 चारी पुजा के =நான்கு புஜங்களுடைய

नान्गु पुजंगळुडैय

 भजन में  =பஜனையில்  भजनैयिल् 

भूले पड़े. மறந்திருந்தனர்   मरंतिरुंतनर् 

 सब संत। எல்லா சாதுக்களும் एल्लासाधुक्कळुम् 


 कबिरा --கபீர் कबीर 

 पूजा   பூஜை  पूजै 

तासु को அவருக்கு  अवरुक्कु

 जाके पुजाएँ  யாருக்கு  புஜங்கள்  यारुक्कु भुजंगळ् 

अनेक।। அனேகம். अनेकम् 


 इत्र तंत्र. இங்கும் அங்கும்  इंगुम् अंगुम् 

 सर्वत्र विद्यमान  எங்கும் இருக்கின்ற ऍंगुम इरुक्कुम् 

 सर्वेश्वर एक। சர்வேஸ்வரன் ஒன்றே.

सर्वेश्वरन् ऒन्रे।

 वह मनुष्य रूप में  அவன் மனித வடிவில் 

अवन् मनितवडिविल् 

 मदद करने आता है। உதவிசெய்ய வருகிறான்

उदवि सेय्य वरुकिरान् .

 राम है मरा नहीं। இராமன் இருக்கிறார் சாகவில்லை. इरामर् इरुक्किऱार् । साकविल्लै।

 मरा मरा मरा उल्टा भजो 

 மரா மரா எதிராக பஜனை செய்ய.

मरा मरा ऍतिराक भजनै सेय्‌

 फल तो राम देंगे ही। பலன் இராமர் கொடுப்பாரே. पलन् इरामर् कोॅडुप्पारे।

एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक 

 



 

 

 


 

Thursday, January 30, 2025

வருக வருக. आइए आइए

 ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ।

 हरि ॐ।

अनंत शक्ति मान।

कष्ट नष्ट करने वाला।

 सुख देनेवाला

 भक्त रक्षक  भक्त वत्सल 

जग रक्षक जगन्नाथ।

लोकनाथ! विश्वनाथ!

 अरूप, अग जग रक्षक।

 सत्य रक्षक असत्य भक्षक।



 



 








Wednesday, January 29, 2025

कठपुतली मानव --கைப்பாவை மனிதன். कैप्पावै मनितन।

 मानव में मानवता हैं। மனிதனிடத்தில் மனிதநேயம் உள்ளது.

 मानव में दानी है। 

மனிதனில் கொடை வள்ளல் உள்ளான்

मनितनिल् कोडैवळ्ळल् उळ्ळान्।


 मानव में सत्य है। மனிதனில் சத்தியம் உள்ளது

मनितनिल्  सत्तियम् उळ्ळतु। 

 मानव में भक्ति हैं। -மனிதனில் பக்தி உள்ளது.

मनितनिल् भक्ति उळ्ळतु।

 मानव खुद परमात्मा है। 

மனிதன் தானே பரமாத்மா.

मनितन् ताने परमात्मा।

वह ईश्वर की तलाश में 

அவன் கடவுளைத் தேடி

अवन् कडवुळैत्तेडि

 

मंदिर, मस्ज़िद, गिरजाघर जाता है। 

ஆலயம் மசூதி மாதா கோவில் செல்கிறான்.

आलयम्,मसूदी,माता कोविल्  चेल्किरान्

पवित्र स्थानों की यात्रा करता है। 

புனித ஸ்தலங்களுக்கு பயணம் செய்கிறான்.

पुनित स्थलंगळुक्कुप् पयणम्  

चेलकिरान्

पुण्य स्थलों में भीड़ ज़्यादा है।

புண்ணிய ஸ்தலங்களில் கூட்டம்அதிகம்

पुण्य स्थलंगलिल्  कूट्टम् अधिकम्।

करोड़ों लोग जमा होते हैं। 

கோடிக்கணக்கில் மக்கள் ஒன்று சேர்கின்றனர்.

कोडिक्कणक्किल्  मक्कळ् ऒन्रु लसेर।किन्रनऱ्।

करोड़ों की आमदनी होती हैं।

கோடிக்கணக்கில் வருமானம் வருகிறது

कोडिक्कणक्किल् वरमानम् वरुकिऱतु।

कोडिक्कणक्किल्  वरुमावनं्वरुकिऱतु।।

बहुत सोच-समझकर

  மிகவும் சிந்தித்து புரிந்து 

मिकवुम् चिंतित्तु  पुरिंतु 

चिंतन मंथन करें तो சிந்தனைகள்  அலசினால் चिंतनैकळ्  अलसिनाल् 

विश्व ही स्वर्ग है। உலகம் தான் சுவர்க்கம்.

उलकम् तान्  सुवर्रकम्।

पर नहीं , क्यों? ஆனால் இல்லை ஏன்?

आधार इल्लै एन्।

मानव में मानवता नहीं  

மனிதனிடத்தில் மனிதநேயம் இல்லை.

मनितनिडत्तिल्   मानित नेयम्।

 अहंकार है। 

ஆணவம் இருக்கிறது.

आणवम् इरुक्किऱतु।

स्वार्थ है।

 சுயநலம் இருக்கிறது.

सुयनलम् इरुक्किऱतु।

ईश्वर के नाम व्यापार चलता है।

கடவுளின் பெயரில்  வியாபாரம்.

कडवुळिन् पॆयरिल् वियापारम्।

धन कमाने की सारी युक्तियां 

பணம் சம்பாதிக்கும்  पणम् संपादिक्कुम्

அனைத்து யுக்திகள். अनैत्तु युक्तिक्ल। 

योजनाएँ बनाकर मंदिर की स्थापना।

திட்டங்கள் அமைத்து ஆலயம் நிறுவுதல்.

तिट्टंगळ्  Amaittu

मंदिर की स्थापना में 

भक्त, श्रद्धालू

ஆலயம் நிறுவ  आलयम् निऱुव

பக்தர்கள் சிரத்தை உள்ளவர்கள் 

भक्तर्कळ् श्रद्दैकल्  उळ्ळवर्कऴ।

 दुखी, धनी भ्रष्टाचारी, धनी रोगी

துன்பப்படும்  दुखी

பணக்கார पणक्कार

 ஊழல்வாதிகள்  ऊऴल्वावदिकळ् 

பணக்கார நோயாளிகள் 

पणक्कार नोयाळिकळ्

पुण्य पाप के विचार में दान देते हैं।

புண்ணிய பாவங்கள் எண்ணி நன்கொடை அளிக்கிறார்கள்.

पुण्य पावंगळ् ऍण्णि नन्कोडै अळिक्किरार्कळ्।

आश्चर्य की बात है कि 

ஆச்சரியமான விஷயம் 

आश्चर।समान विषयम्।

 इतना बड़ा विशाल मंदिर, 

பல பெரிய விசாலமான ஆலயங்கள்  

पर पॆरिय विशाल मान आलयंकळ।

मस्जिद, गिरजाघर कैसे बना? 

மசூதிகள் சர்ச்கள் எப்படி ஆனது?

मसूदिकळ्।, चर्च्कळ्

एक सूक्ष्म शक्ति  

ஒரு சூக்ஷ்ம சக்தி 

एक सूक्ष्म शक्ति 

 दुनिया में स्थापित करती है कि

  உலகில் நிறுவுகிறது.

उलकिल् निरुवुकिरतु।

 मनुष्येतर शक्ति विद्यमान है।

மனிதனுக்கு அப்பாற்பட்ட சக்தி 

मनितनुक्कु अप्पाऱ्पट्ट शक्ति 

अमानुषीय एक ऊर्जा  हैं। 

அமானுஷ்ய சக்தி 

अमानुषीय शक्ति।

उसकी कठपुतली है मानव।

அதன் கைப்பாவை மனிதன்.

अतन् कैप्पावै मनितन् ।

एस.  अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक 






सनातन धर्म हिंदू मत

  सनातन धर्म

 हिंदू मज़हब।

 धर्म विश्वभर के लिए 

 आम सिद्धांत।

 हिंदू मज़हब  तो

 किसको मानना है।

 तिलक में भेद।

 तमिल  अष्टोत्त्रम्

 संस्कृत अष्टोत्रम।

  नगर मंदिर 

 ग्राम मंदिर।

शिव संप्रदाय 

 वीर शैव 

 लिंगायत समुदाय 

   सभी मजहबों में भेद।

 पांडिचेरी में 

 चेट्टियार कोयिल

 मुदलियार को मिल

  एकता नहीं 

 पर धर्म तो सब के लिए।

मज़हब जो भी हो भेदभाव अधिक।

 तमिल भगवान विशाल या संकुचित।

 धर्म अलग है,

 मत/ मजहब अलग है।

 जयललिता को माता वेलांकंन्नि 

के वेश में ईसाई नहीं मानेगा।

 पर हिंदू मंदिर बनाता हे।

 सोनिया गांधी का मंदिर।

  सनातन धर्म 

 हिंदू मज़हब।

ईसाई धर्म नहीं मजहब।

सिक्ख मज़हब 

 धर्म का अर्थ व्यापक।

 मज़हब संकुचित।

  वायु भगवान सकल जीव राशी रक्षक।

 ईसाई एक अमुक रक्षक।

 अल्ला अमुक रक्षक।

 वायु धर्म।

 वायु के बिना सकल जीव राशी 

 जी नहीं सकते।

 टट्टी के बिना घर नहीं।

 मोरे के बिना घर नहीं 

पर   पूजा रूम अनिवार्य नहीं।

 मानव धर्म पालन अनिवार्य।

देश भक्ति अनिवार्य।

 मज़हब तो अनिवार्य नहीं।

Saturday, January 25, 2025

சமத்துவம் குடியரசு

 तमिल हिंदी सेवा ‌

தமிழ் ஹிந்தி பணி 


आज लोकतंत्र   दिवस।  ---இன்று குடியரசு நாள்.

इन्दु कुडियरसु नाळ्।

 सभी नागरिकों को समान अधिकार।

அனைத்து குடிமக்களுக்கும் சம உரிமை.

अनैत्तु कुडिमक्कळुक्कुम् समय उऱिमै।

 अधिकार है- ==உரிமை இருக்கிறது.

 समान शिक्षा प्राप्त करने,சமத்துவ கல்வி பெற

मत्तुव कल्वि पेऱ।

 मनमाने प्रांत में बसने =மனம் ஏற்கும் கல்வி பெற

मनम् एऱकुम् कल्वि पेऱ।    

 मनमाना व्यापार करने =மனம் ஏற்கும் தொழில் புரிய 

मनमेर्कुम्  तोऴिल पुरिया 

मनम् एऱ्कुम्  तोऴिल् पुरिय।

 चुनाव लडने मत देने। தேர்தலில் போட்டியிட ஓட்டுப் போட

तेर्तलिल  पोट्टी पोंड,

देखिए ईश्वरीय लीला।  பாருங்கள் கடவுளின் லீலையை

पारुंगळ्  कडवुळिन्  लीलैयै।

 पहाड़, नदी, बुद्धि लब्धि,

மலை ஆறுகள் அறிவுத் திறன்

मैं, आऱुकळ् , अऱिउत्तिरन्।

 तन की स्वस्थ अस्वस्थ स्थिति।

உடல் ஆரோக்கியம் , ஆரோக்யமின்மை

उडल् , आरोग्यंं  आरोग्यमिन्मै

 मनो विकार,  चिंतन विचार।

மன மாற்றங்கள் சிந்தனைகள் எண்ணங்கள் 

मंमाट्रंगळ् चिंतनैकळ्‌ ऍण्णंगळ्

 क्षमता अक्षमता में कितने भेद।

திறமை திறமையின்மை எத்தனை வேறுபாடுகள்.

तिऱमै, तिऱमैयिन्मै ऍत्तनै वेरुपाडुकळ्।

 सहोदर रावण और विभीषण,

சகோதரர்கள் இராவணன் விபீஷணன் 

सहोदर्रकळ् इरावणन् विभीषणन्

 मुनि वशिष्ठ और विश्वामित्र 

முனிவரர் வஷிஷ்டர் விஸ்வாமித்திரர் 

 पांडव कौरव में रिश्ते 

பாண்டவர் கௌரவர் உறவுகள் 

पांडवर् गौरवर् उऱवुकळ्

 विदुर के गुण, सुयोधन में नहीं।

விதுரர் குணங்கள் துர்யோதனன் குணங்கள்.

विदुरर्  दुर्योधन गुणंगळ्

   समान अधिकार प्राप्त नागरिक 

சமத்துவ அதிகாரம் பெற்ற குடிமக்கள் 

समत्तुव अधिकारम् पेट्ऱ कुडिमक्कळ्

  कूड़े फेंकने में अनुशासन नहीं,

 குப்பைகள் எரிய ஒழுக்கம் இல்லை.

कुप्पैकळ् ऍरिय ऒळुक्कम् इल्लै।

 एक ही वर्ग  अंक भेद,

ஒரே வகுப்பறை மதிப்பெண் வேறுபாடுகள் 

अंग रंग आकार भैद।

உடல் நிறம் உருவ வேறுபாடுகள்.

उडल् निऱम् उरुव वेरुपाडुकळ् 

 ईश्वर की सूक्ष्मता में एकता ,

கடவுளின் சூட்சுமத்தில் ஒற்றுமை 

कडवुळिन् सूट्सुमत्तिल् ऒट्रुमै।

 सृष्टि की बनावट में एकता,

पडैप्पिन अमैप्पिल् ऒट्रुमै।

படைப்பின் அமைப்பில்  ஒற்றுமை 

 है तो  मानव धर्म बुद्धि,

மனித  அறத்தின் அறிவில் இருக்கிறது.

मानित अऱत्तिन् अऱिविल इरुक्किऱतु।

 वसुधैव कुटुंबकम्।

வையகம் ஒரு குடும்பம்.

वैयकम् ऒरु कुटुंबम् ।

 सर्वूजना सुखियों भवन्तु।

 அனைத்து மக்களும் சுகமாக இருக்கவேண்டும்.

अनैत्तु मक्कळुम सुकमाक इरुक्कवेंडुम् 


मानव की मानवता।

 மனிதனின் மனிதத்துவம்.

मनितनिन् मनिततत्तुवम् 

 दल अनेक  =कट्चिकळ्‌ अनेकम्‌

नेता और सिद्धांत अनेक।

 தலைவர்கள் கொள்கைகள் அனேகம்.तलैवर्कळ् कोळ्कैकळ् अनेकम्


 मज़हब अनेक,

மதங்கள் அனேகம் 

मतंगळ् अनेकम् 

 ईश्वर अनेक पर

கடவுள் அனேகம்  कडवुळ् अनेकम्‌

ஆனால்  आधार 

 विश्व-कल्याण में विचार एक।


உலக நலனில் எண்ணங்கள் ஒன்றே.

शुल्क नलनिल् ऍण्णंगळ् ऒण्ऱे।

वही विशिष्ट ज्ञान चक्षु,

அதுதான் சிறப்பான அறிவுக் கண்.

अतुतान् चिऱप्पान  अऱिवुक्कण् 

 ईश्वरीय देन। கடவுள் அளித்தது

कडवुळ् अळित्ततु।

  निष्कर्ष  முடிவு  मडिवु

सब्हिं नचावत राम गोसाईं।।

அனைவரையும் ஆட்டி வைப்பவன் ஆண்டவன்.

अनैवरैयुम्  आट्टिवैप्पवन् आंडवने।


स्वरचित भाविभिव्यक्ति।

 पऴनि। एस . अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति।


 




 

 


  


 

 

ஹர

Wednesday, January 22, 2025

लक्ष्य இலட்சியம்.

 तमिल हिंदी सेवा 

++++++++++




एस.अनंतकृष्णन

का नमस्ते वणक्कम्।

शीर्षक -- कदम कदम बढ़ाए जा।

विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी स्वतंत्र शैली


लक्ष्य == इलक्कु, कुरिक्कोळ्

=============



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कदम कदम बढ़ाए जा।==

ओव्वोरु कालडि वैत्तु 

मुन्ने  चेल्।


मंजिल तक पहुंचने तक= कुरिक्कोळै अडैयुम वरै।


मुड़कर न देखना।==तिरुंबिप्पार्क्काते।।

मुड़कर देखने से==तिरुंबिप्पार्प्पताल्

कोई उपलक्ष्य मोहित करेगा तो = एतावतु तुणै लक्षियम् कवर्न्ताल्

प्रधान लक्ष्य तक पहुंचना कठिन।=पिरधान लक्ष्यत्तै अडैवतु कठिनम्।


कभी मैं ने एक दोहा सीखा।= ऍप्पोतो ओरु ईरडि कट्रेन।

चींटी चावल लेकर चली।

 ऍऱुंबु करिहिं ऍडुत्तुच्चेन्रतु।

बीच में दाल मिला।=

नडुवुल् परुप्पु किडैत्ततु।

चींटी दोनों खो बैठी। =

ऍरु़बु इरंडैयुम् इऴंततु।

कदम कदम पर सावधान रहना।

ओव्वोरु कालडियैयुम् ऍच्चरिक्कैयाक वैक्कवुम्।


खतरे का सामना करना।==

अभायत्तै ऍतिर्क्कवुम्।

लालच में न पड़ना।

पेरासैप्पडवेंडाम्।

कदम कदम पर विचित्रता,

ओव्वोरु कालडियिलुम् विचित्तिरम्।

ताज़ा मोह, =पुत्तम्  पुतिय मोहम्।

 ताजा आकर्षण।=पुत्तम् पुतिय कवर्च्चि।

लक्ष्य से बड़ा मिलने का भ्रम।

लक्षियत्ते विड पेरिताकक्किडैक्कुम् भ्रमै।।


न विचलित होना।==

तयंगाते।

कदम कदम बढ़ाए जाना।

ओव्वोरु अडियाक मुन्नेरिच्चेल।

लोभ दिखाते कुछ लोग।

पेरासै काट्टुवोर  सिलर्।


भय दिखाते कुछ लोग।

मतम् काट्टुवोर सिलर्।

चमक-धमक मार्ग पर है तो

ऒलि पळपळप्पु वऴियिल् 

न देना तू ध्यान।।

अतिल् कवनम् चेऴुत्ताते।

कदम कदम बढ़ाए जा।

 ओव्वोरु हम अडियाक मुन्ने चेल्।


एस.अनंतकृष्णन,चैन्नै द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना

Monday, January 20, 2025

धर्म और मज़हब

 



नमस्ते वणक्कम्।

तमिल हिंदी सीखिए।



आजकल आध्यात्मिक संयम के कम महत्व।

 चित्रपट के कामान्ध के गीतों का महत्व ।

 अतः लौकिक चिंतन मनुष्य के  दुःखों  के परम कारण होते हैं।


 जैन कवि तिरुवळ्ळुवर के नैतिक ग्रंथ में 

 अऴुक्कारु =ईर्ष्या

अवा=इच्छा

वेकुळि =क्रोध

इन्नाचोल =कठोर शब्द 

नानगुम =चारों 

इऴुक्का =स्थान 

इयन्रतु --ं देना ही

 अऱम् =धर्म है।

  ईर्ष्या , मन मानी इच्छा, क्रोध,कठोर शब्द आदि चारों को मन में स्थान न देना ही धर्म है।

 धर्म और मजहब में बड़ा अंतर है।

 धर्म में मानवता के विशाल गुण हैं।

 मज़हब अर्थात मत  में संकुचित विचार हैं।

 धर्म एकता का प्रतीक है तो

 मज़हब में अनुयायियों के मन में संकुचित 

 भेद भाव और द्वैष भाव की संभावना होती है।

धर्म व्यापक है।

 अतः भारतीय  लोग "सनातन धर्म" को अपनाते हैं जिसमें आकार निराकार दोनों का महत्व हैं।

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई, तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।



Saturday, January 18, 2025

वीर रस



हिंदी साहित्य का इतिहास 

 वीरगाथाकाल काल से शुरू।।

जिसकी लाठी उसकी भैंस।

 स्वयं कवि सेनापति।

 राजा की वीरता का बखान।

जिसका खाना, उसका गाना।


मानव जीवन में वीरता नहीं तो न कोई महत्ता।  

पाषाण युग में पत्थर ही अस्त्र-शस्त्र।

आज अणुबम तक।

 आमने सामने की लड़ाई 

 आजकल के अस्त्र शस्त्र 

 भूमि से, आकाश से दूर से

 लुक-छिपकर हमें फेंकते।

 वीर पुरुषों राम जैसे 

 आज जा कल आ कहने की वीरता नहीं।


 

स्वयं वर वीरता के आधार पर।

तन की शक्ति देख,

 हृष्ट-पुष्ट शरीर देख

 शारीरिक वीरता देखकर 

बुद्धि वीरता देख, स्त्री अपने पति चुनते ही

ज्ञान वीरता,धन वीरता, धर्म वीरता

दान वीरता न तो न कन्या पति चुनती।

 प्यार करनेवाली लड़की

 कुंडल केशी तमिल का महाकाव्य।

वाग्वीर वचन वीर हनुमान का नाम प्रसिद्ध।

विधिवत भारत में स्वयंवर  ही प्रसिद्ध।

स्वयंवर में शारीरिक वीरता,

बौद्धिक वीरता,

धन वीरता,

रण वीरता।

 मूर्ख कालीदास  को बुद्धि वीर माना।

प्रहलाद भक्ति वीर।

 महत्ता न मानव में तो   न नारी देती सम्मान।

 नारी न देती सम्मान  पौरुषहीन नर को।

 खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।

राम धारी सिंह दिनकर 

सच है, विपत्ति जब आती है,

कायर को ही दहलाती है,

सूरमा नहीं विचलित होते 

क्षण एक नहीं धीरज खोते।

विघ्नों को गले लगाते 

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नरेंद्र शर्मा

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कुछ भी बन,कायर मत बन।

ठोकर मारी पटक मत,

माथा तेरी राह रोकते पाहन।

कुछ भी बन कायर मत बन।

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रैदास  -- सूर समर करनी कहीं, कहिए न जनावहिं आप।

             विद्यमान रिपु पाइप रन, कायर करिहिं प्रलाप।।

   मेरे दादा परदादा वीर थे,  

ऐसे ही कहते फिरते कायर।

कायर के विपरीत वीर, मैदान में कूद पड़ते

तुलसीदास --सूर न पूछे टीपणौ, सुकन न देखें सूर।।

                  मरणां नू मंगळ,  गिणे समर चढ़े मुख नूर।

शूर  न जाता ज्योतिष से  मुहूर्त पूछने, न देखता शकुन।

वीर मरने में ही मंगल समझता, युद्ध में तेज चमक सिखाता।।

सूर्य  मल्ल मिश्रण 

 शूर वीर के लिए उत्साह और वीर जन्मजात है।

कबीर  

जिन खोजा तिन पाया,गहरे पानी पैठ।

मैं बपूरा डूबने डरा, रहा किनारे बैठ।

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Friday, January 17, 2025

तमिल् हिंदी सीखिए

 नमस्ते वणक्कम्।

तमिऴ सीखिए ----



 आम  -  =पॊतु, (फल =माँम्बलम्)

आम जनता ==  पॊतु मक्कळ्

 आम चुनाव  =पोतुत्ततेर्तल् 

आम तौर से ---पोतुवाक

आम विचार  = पॊतुवान ऍण्णम्

 आम चिंतन है = पॊतुवान चिंतनै

   जो अगजग में  =  अखिललोकत्तिल्

 मानवता बनाये  रखने में ==

मनितनेयम् अमैप्पतिल्

शाश्वत लगता है -- निलैयाक इरुक्किरतु  

 वही ईश्वरीय चिंतन  = अतुतान् कडवुळिन चिंतनै।


 आत्मचिंतन  =आत्मचिंतनै

 आत्म बोध  --आत्म अऱिवु

आत्मज्ञान  =आत्मज्ञानम् 

आत्मसाक्षात्कार  --आत्म पेट्टी

 परिणाम में  = विळैवु

  सर्वेश्वर को मानना ==कडवुळै एट्ऱल।


 जगत नश्वर =  उलकम् अऴिउ।

जगत मिथ्या ==उलकम् पोॅय।

 जगदीश्वर सत्य। --उलकनाथन् उण्मै।

 तब धर्म मानव धर्म। =अप्पोऴुतु अऱम् मानित अऱम्


 न हिन्दू,  =हिंदु इल्लै

न जैन,  =समणम् इल्लै

न सिक्ख =सीक्कियम् इल्लै।

 न बौद्ध =पौत्तम् इल्लै।

  न मुगल,  --मुस्लिम् इल्लै 

न ईसाई। --किरिस्तवम् इल्लै 


 केवल धर्म  और अज्ञात ईश्वर।

अऱम् मट्टुम्  अऱियात कडवुऴ्।


 पंचतत्वों की अद्भुत लीलाएँ। == ऐंदुतत्वंगलिन अऱ्पुत लीलै।

 मधुर =इनिमै।

 प्रच्छंड   --वेगम् 

अति आकर्षक  --अतिक कवर्च्चि

 अति  सुख प्रद --  अतिक सुखम् तरक्कूडियतु।

 अति सुहावना, --अतिक आनंदम्

 अति भयंकर  --अतिक भयंकरम् 

 वे ही  परमात्मा। = अवैकळ् तान कडवुळ्।

 निराकार, ==उरुवमट्रवर्

 निर्गुण। --गणमट्रवर्

 आकार  सब =उरुवमुल्लवै ऍल्लामे 

 नश्वर=  अऴियक्कूडियवै।

 शिव न अग जग मानता।=

शिवनै उलकमुऴुवतुम् ऍऱ्कविल्लै।

विष्णु  नअग जग  मानता।==

विष्णुवै अखिलम् एऱ्कविल्लै

 अल्ला न अग जग मानता।==अल्लावै अखिलम् एऱ्कविल्लै।

 ईसा न अग जग मानता।= एसुवै अकिलम् एर्कविल्लै

 अग जग मानता है =अखिलम् एऱ्किऱतु

 पंच तत्व सुख, --पंचतत्तुव सुखत्तै।

 पंच तत्व दुख।= पंच तत्तुव तुन्बत्तै।

 प्राकृतिक शोभा = इयऱ्क्कै अऴकु

 प्राकृतिक प्रकोप।==

 इयर्क्कै कोपम् 

 अतः बाकी  =आकैयाल् बाक्की

सब मिथ्या। =ऍल्लामे

 धर्म प्रधान जग। अऱम् पिरधानम्।

 न मज़हबी प्रधान। =मतम् मुक्कियम् इल्लै।


 भूकंप की सीख। =निल नडुक्कम् कऱ्पिप्पतु।

 ज्वालामुखी की सीख। = ऍरिमलै कऱ्पित्ततु

 सुनामी की सीख। सुनामी कर्पित्ततु।

 आंधी तूफान की सीख। --पुयल् कर्पित्ततु ।

 तब एक ही विचार। =अप्पोऴुतु ऒरे ऍण्णम् 


सर्वेश्वर एक। ==कडवुळ् ओरुवरे।

 सबका मालिक एक।

अनैवरुक्कुम् ऒरु तलैवर् ।


 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

Monday, January 13, 2025

கடவுள் भगवान

 नमस्ते! வணக்கம்!

तमिऴ् हिंदी सीखिए।


இயற்கையைப் போற்றுவோம்!==

इयर्कैयैप्पोट्रुवोम

प्रकृति की करेंगे प्रशंसा।



இறைவனைப் போற்றுவோம்!

 भगवान को करेंगे यशोगान! 

भगवानैप्पोट्रुवोम्।




आध्यात्मिक भूमि  - ஆன்மீக பூமி 

= आन्मीक भूमि।

 भारत से अमेरिका में 

பாரதத்தை விட 

भारतत्तै विड

 அமேரிக்காவில்

अमेरिका में 


ईश्वर भक्ति ज़्यादा।

ईश्वर भक्ति अतिकम्।

கடவுள் பக்தி அதிகம்.

ईश्वर के नाम

 கடவுள் பெயரால் ==

ईश्वर पेयराल्

 धंधा करनेवाले नहीं।


தொழில் நடத்துவோர் இல்லை.==तोऴिल् नडत्तुवोर इल्लै।


उनके वैज्ञानिक ज्ञान, அவர்கள் அறிவியல் ஞானம். =

अलर्कऴ् अऱिवियल् ज्ञानम् 

 आर्थिक उन्नति 

 பொருளாதார முன்னேற்றம் ==

पोरुळातार मुन्नेट्रम् 


 कुदरत क्रोध के सामने

இயற்கைச் சீற்றங்களின்  முன் 

इयर्कैचृचीट्रंगळ् मुन् 


 दाल नहीं लगाता।

பருப்பு வேகவில்லை.==

परुप्पुवेगविल्लै।

 सूक्ष्म ईश्वरीय नियम

நுண்ணிய கடவுளின் நியமம்.

नुण्णिय कडवुलिन नियमंगळ्

 और भयभीत घटनाएँ।

 அச்சம் தரும் நிகழ்வுகள் 


अच्चम् तरुम् निकऴ्वुकऴ्

 तब भी मानव 

அப்போதும்  மனிதன் 

अप्पोतुम् मनितन् 

भ्रष्टाचार से इठलाते हैं।

ஊழலால் ஆணவநடனம்.==

ऊऴलाल् आणव नटनम्।

 न  सुख स्थाई 

 இல்லை நிலையான சுகம்-=

निलैयान सुकम् इल्लै! 

.


न भोगते मानव।

மனிதன் அனுபவிப்பதில்லை.==

मनितन् अनुभविप्पतिल्लै।

  हर सिक्के में,

ஒவ்வொரு நாணயத்திலும் ==

ओव्वॊरु नाणयत्तिलुम्

 हर नोट में

 ஒவ்வொரு ரூபாய் 

 தாளிலும்==

ओव्वोरु रूपाय् ताळिलुम्

 छपते हैं   

அச்சடிக்கிறார்கள்--

अच्चडिक्किरार्कळ् 

"हम भगवान पर करते हैं विश्वास।

"நாங்கள் கடவுளை நம்புகிறோம்."

नांगळ् कडवुळै नंबुकिरोम्।


 सबहिं नचावत राम गोसाईं।

எல்லோரையும் ஆட்டி வைப்பவன் ஆண்டவனே!!==

 ऍल्लोरैयुम्   आट्टिवैप्पवन् आंडवने।।

एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

Tuesday, January 7, 2025

सनातन

 3811. दुख विमोचन के लिए ज्ञान और वैराग्य होना चाहिए। प्रपंच विषय वस्तुओं के पीछे जाकर विषय वस्तुओं को मन में रखकर पूजा अर्चना करनेवाले बंध मोक्ष की कोशिश करना जीवन को व्यर्थ करना ही है। कारण आत्म ज्ञान के लिए मुख्य रूप में विषय वैराग्य और उद्वेग मोक्ष मिलने की इच्छा चाहिए। विषय इच्छाएँ और शारीरिक अभिमान जब ज्ञान की बाधाएँ बनती है, उनको मिटाये बिना मुक्ति चाहने से कोई लाभ नहीं है। विषय वैराग्य अति शक्तिशाली अभ्यास है। विषय वैराग्य होना है तो गुरु के उपदेश के द्वारा, सत्य की खोज के द्वारा जान-समझ लेना है कि सांसारिक विषय नश्वर है, आत्मा अनश्वर है। स्वयं शरीर नहीं है,आत्मा है। इस आत्मज्ञान को  बुद्धि में दृढ बना लेना चाहिए। तभी अपने प्राण जैसे सभी जीवों से प्यार करके भेद बुद्धि रहित, राग-द्वेष रहित एकात्म बुद्धि से आत्मा के स्वभाव शांति और आनंद को निरंतर, नित्य रूप में अनुभव कर सकते हैं।


3813.   जीवन में सभी प्रकार के दुखों के कारण सबको विदित है मन ही । यथार्थ में वह मन आत्मा से भिन्न नहीं है। अर्थात्  हल्की रोशनी में एक रस्सी को साँप सोचकर डरकर दीप जलाकर देखने पर रस्सी को साँप समझने का भ्रम दूर होगा। तभी साँप का भय दूर होगा। वैसे ही आत्मा बने मैं रूपी अखंडबोध में दृष्टित एक भ्रम ही मन है। भ्रम बदलते समय अर्थात् आत्मज्ञान रूपी प्रकाश बोध को छिपाने वाले भ्रम मन के  मिटते ही शरीर से खंडित बोध अखंड में बदलेगा। स्वयंभू अखंड बोध को कोई पर्दा नहीं ढकेगी। देखनेवाले सबको एक आत्मा के रूप में एहसास कर सकते हैं। सभी दृश्यों के कारण मन ही है। मन नहीं है तो और कुछ भी नहीं रहेगा। वैसे ही सभी वासनाओं के कारण अहंकार ही है। इसलिए मन और अहंकार के मिट जाने पर आत्मतत्व अर्थात् अखंडबोध अर्थात मैं रूपी सत्य किसी भी प्रकार के पट के बिना चमकेगा। वही अहमात्मा अनादी काल से उज्ज्वलतम परमात्मा बने बोध को अर्थात् उसके अखंड को जो एहसास करता है, वही अखंडबोध बने पूर्ण ब्रह्म है।

3814. जो कोई आत्मज्ञान रूपी पूर्ण पवित्र  मार्ग का अनुसरण करता है, वही परमानंद का पात्र बनता है। अंत में वह गुणातीत निर्गुण परब्रह्म ज्ञानप्रकाश परंज्योति परमानंद स्वरूप में खडा रहेगा। वही भगवान है।  ईश्वर का स्वभाव परमानंद है। जो अपने को परमात्मा स्वरूप एहसास करते हैं,वे सब परमानंद स्वरूप है। मृगमरीचिका जैसे पंचभूत पिंजडे के शरीर और मन दोनों  बोध को छिपा देने से जीव का परमानंद नष्ट हुआ। जिसमें  शरीर और मन को मृगमरीचिका जैसे देखने की क्षमता है,वे अति सरलता से शरीर और मन को त्यागकर अपने परमानंद स्वरूप को पुनःप्राप्त करके वैसा ही बन सकता है।

3815. जिसने आत्म तत्व को दृढ रूप में हृदय में एहसास किया है,वही भगवान है। उस भगवान को किसी भी प्रकार का संकल्प नहीं है। वैसे याचना करने के लिए दूसरा कोई न होने से किसी भी प्रकार की इच्छा नहीं है। आत्मा के सिवा दूसरी एक वस्तु किसी भी काल में नहीं है,यह जानना ही आत्मज्ञान होता है। भगवान के दो रूप भाव है, सामान्य रूप है और ब्रह्म रूप है। उदाहरण रूप में शंख चक्र गदा पद्म धारण किये चार भुजोंवाले महा विष्णु स्वरूप है। उसीको सामान्य स्वरूप कहते हैं। उसी समय एकात्मक अनादी अंत रहित अव्यक्त ब्रह्म स्वरूप अर्थात् अर्थात् अखंडबोध स्वरूप है। वही दूसरा परम भाव है।
आत्मज्ञान सीखकर आत्मज्ञानी बने बिना रहने के काल में महाविषिणु के पाद पर अपने को संपूर्ण रूप में  समर्पण करके जप करके, कीर्तन गाकर,ध्यान करके,पूजा करके उपासना करनी चाहिए। रोज वैसा करते समय कालांतर में आत्मज्ञान होकर एहसास करना है कि  स्वयं शरीर नहीं है, परमात्मा बने आदी अंत रहित अखंडबोध बने ब्रह्म स्वरूप में से न हटकर रहने से ब्रह्म के स्वभाव परमानंद को अपने स्वभाविक रूप से अनुभव करके वैसा ही रह सकता है।

3816. पहले अद्वैतबोध स्थिर खडे रहने के लिए एहसास करना चाहिए कि स्वयं शरीर नहीं है, अपने शरीर को आधार रूप अखंडबोध ही है। अर्थात्  शरीर जड है, जड कर्म है,कर्म चलनशील है। वह चलन निश्चलन बोध रूप बने परमात्मा में कभी नहीं होगा। इसलिए शरीर,मन, शरीर देखनेवाला संसार चलन स्वभाव होने से वह रेगिस्तान में दिखाईपडनेवाली मृगमरीचका ही है। उसकी एक वास्तविक स्थिति कभी कहीं हो सकती। यही शास्त्र सत्य है। अर्थात् सबके परम कारण स्वरूप मैं रूपी अखंडबोध नित्य सत्य अनिर्वचनीय शांति और परमानद क साथ
स्थिर खडा रहता है।

3817. जो भिंड को सही रूप में समझ लेता है,उसको अंड को समझने में कोई कठिनाई नहीं होगी। जिसमें आत्मबोध है,उसको यह कहने में कोई कठिनाई न होगी कि हम जिस अंतरिक्षलोक और भूलोक को देखते हैं,वह प्रपंच अपने से ही उतपन्न हुए हैं।कारण आत्म बोध नहीं है तो यह संसार नहीं है।अर्थात् बोध नहीं है,कहने के लिए भी बोध की आवश्यक्ता होती है। इस वात को समझाने के लिए ही एक गुरु की आवश्यक्ता होती है कि आत्मबोध होने से ही लगता है कि सब कुछ है और जो कुछ देखते हैं,सुनते हैं, अनुभव करते हैं, वे अखंडबोध सत्य है। यह समझने के लिए  अनेक जन्म लेना पडेगा  कि गुरु से मिले बिना स्वयं अखंडबोध है, क्योंकि माया के पर्यवेक्षण के इंद्रजाल प्रपंच की शक्ति अति बलवती है। प्रपंच रूपी भ्रम से साधारण जनता को बाहर आना मुश्किल है। लेकिन विवेकी के लिए आसान है।विवेक रहित मिथ्या संकल्प लेकर जीनेवाला ही दुखी बनता है। लेकिन विवेकी में  मिथ्या संकल्प न होने से उसको दुख होने के कोई कारण नहीं है। शास्त्र  सत्य अथवा मैं रूपी आत्म बने अखंड बोध ही नित्य सत्य रूप में है। इस शास्त्र सत्य को याद में लाकर मृगमरीचिका जैसे दीख पडनेवाले मिथ्या रूपी इस संसार को तजकर सभी प्रकार की शांति और आनंद निरुपाधिक कर सकता है। अर्थात् अनिर्वचनीय शांति और आनंद को प्राप्त करेगा।
3818. हमें मालूम नहीं है कि संसार का बनना और स्थिर रहना कैसा है? अतः उसे मन से नकारात्मक करने के लिए अर्थात् संसार को मन से हटाने के लिए अर्थात् मन को आत्मा में लय करने के लिए कई प्रकार के प्रयत्न करना पडता है।यह बरह्मांड यह प्रपंच बिना  किसी भी प्रकार के कारण से बना है। वह अकारण है। कारण रहित कार्य असत्य ही है। अर्थात् इस संसार के कारण संसार ही है। और कोई कारण नहीं है। ब्रह्म से अर्थात्  निश्चलन सर्वव्यापी परमात्मा से दूसरा एक चलन किसी भी काल में हो ही नहीं सकता। इसलिए संसार बनने ब्रह्म किसी भी काल में हो नहीं सकता।लेकिन इस ब्रह्म से ही इस संसार उत्पन्न हुआ-सा दीख पडता है। ब्रह्म से उत्पन्न होकर दीख पडनेवाले प्रपंच भ्रम सिवा भ्रम के और कुछ नहीं है। अर्थात् रेगिस्तान में बनकर दीख पडनेवाले मृगमरीचिका दृश्य के लिए कोई कारण नहीं है। वह मृगमरीचिका कारण रहित कार्य ही है। यह सत्य है कि  रेगिस्तान में पानी नहीं है। लेकिन रेगिस्तान में दीख पडनेवाली मृगमरीचिका के कारण मृगमरीचिका ही है। लेकिन रेगिस्तान के बिना
कारण रहित दीख पडनेवाले कार्य रूपी पानी का दृश्य रेगिस्तान होने से ही दीखता है। लेकिन वह दृश्य रेगिस्तान से अन्य कोई नहीं है। रेगिस्तान से अन्य स्वअस्तित्व उसको नहीं है। वह रेगिस्तान का स्वभाव ही है। वैसे ही प्रपंच दृश्य कारण रहित कार्य होने पर भी परमात्म स्वभाव ही भ्रम बने प्रपंच है। लेकिन बोध से न मिले प्रपंच को एक स्व अस्तित्व नहीं है। इसलिए बोध में दीख पडनेवालेप्रपंच भ्रम भी बोध ही है। बोध मात्र ही है।

3819.  गृहस्थ जीवन बितानेवाली स्त्री पुरुष किसी भी काल में स्थाई शांति और स्थाई आनंद की प्रतीक्षा बेकार है। वह किसी भी काल में पूरा नहीं होगा। कारण वह भेद बुद्धि बनाकर आत्मा को विस्मरण कराके  आत्मानुभूति के मार्ग की बाधा बनेगी। शांति और आनंद आत्मस्वभाव है। यह जानकर भी वे बंधन की भेद बुद्धि द्वारा होनेवाले कामक्रोध,राग-द्वेष आदि आत्म स्वरूप को विस्मरण कराकर मन को निम्न स्थिति की ओर ले आने के लिए ही उपयोग होगा। जो भी जहाँ भी हो ,जैसा भी हो, जिस स्थिति में भी हो, अपनी माया रूपी शरीर और संसार नहीं है।उसके साक्षी रूप है आत्मा। इस बात को बिना कोई संदेह के महसूस कर लेना चाहिए। फिर आत्मा के स्वभाविक परमानंद को निरुपाधिक रूप में  स्वयं अनुभव न करके ,अपने को स्वयं आत्मा के अनुभव जो नहीं करता,उसको   कभी शांति और  आनंद   स्वप्न में भी नहीं मिलेगा।

3820. जो कोई आत्मबोध से एक मिनट भी तैलधारा जैसे निश्चल रहता है, उसको  सुख मिलेगा।

3821.एक बच्चा भूमि में जन्म लेने तक मन उसकी आत्मा में लगा रहता है।
भूलोक में आने के बाद ही उस बच्चे के मन को माता चूमकर,दूध देकर, उसको उसके आत्मबोध से शारीरिक बोध को ले आता है। इसीलिए आत्मबोध के साथ जन्म लेनेवाले बच्चे दूसरों के स्पर्श करने की अनुमति न देंगे।आत्मबोध रहित जीव को उपयोग करके ही उसके माता-पिता उनकी इच्छाओं को पूर्ण कर लेते हैं। वह उनके अहंकार को संतुष्ट करता है। इसलिए जो बच्चे माता-पिता की बातें न मानकर शरीर और संसार को जानने और समझनेवाले विवेकी ही महान बनते हैं। जिनमें आत्मविचार करने की बुद्धि नहीं होती और प्रपंच विचार करते हैं,वे विचार उनको अंधकार में ले जाकर मृत्यु का पात्र बना देंगे।लेकिन आत्म को मात्र मुख्यत्व देकर सत्य को स्वीकार करके असत्य को त्यागनेवाले बच्चे ही ज्ञानी और परमहंस बनकर दुखी लोगों को शांति और आनंद देते हैं। वैसे लोग ही संसार की भलाई करेंगे।  मिथ्या संसार की सांसारिक चिंतन करनेवाले स्वयं को और दूसरों को कोई कलयाण कार्य कर नहीं सकते। जो सोचते हैं कि  आत्मबोध रहित संसार को सीधे करना चाहिए,वह मृगमरीचिका   के समान बेकार ही है। पंचेंद्रियों को संयम करके ही योगी एकांत जीवन जीते हैं।

3822.  स्वर्ग में देवेंद्र सुधबुध खोकर विषय भोगों में रम जाने से देवेंद्र को उन बुरी आदतों से छुडाने के लिए उसके मन को आत्मोन्मुख करने के लिए ही त्रिदेव तपस्वी असुरों को उनके मन चाहा वर देते थे। लेकिन वर प्राप्त करने के बाद असुर लोग अहंकार वश ईश्वर को भूलकर देवलोक जाकर देवेंद्र को सिंहासन से निकाल देते थे। वे नहीं जानते थे कि वर में उनका नाश छिपा रहते थे। देवेंद्र पद की आपत्ति के आने के बाद ही विवेक होता है कि वे भगवान को भूल गये हैं।देवेंद्र तपस्या करके पुनःईश्वर विचार करने पर असुरों का नाश करके पुनः सिंहासन पर बैठते थे।ऐसे ही सांसारिक राजनैतिक संघर्ष अनादी काल से चलते रहते हैं।मैं रूपी अखंडबोध में अपनी शक्ति मनोमाया अकारण आकर बोध को छिपाकर दिखानेवाले मनोविलास ही यह प्रपंच है। इस प्रपंच में ही काल,देश,वस्तु आदि अनुभव जन्म-मृत्यु सब कुछ चलता रहता है। ये सब मन का एक इंद्रजाल प्रकटीकरण मात्र है। अर्थात् एक अल्पकाल में अनेक काल जीने के स्वप्न अनुभव जैसे ही अज्ञान निद्रा इस जागृत अवस्था में जन्म लेकर जीनेवाले आयु, अनुभव, वस्तुएँ ,जीव  आदि को बनाकर दिखाना मन का तंत्र है। वह इस प्रपंच बोध का दृश्य मात्र है। अर्थात्  यह प्रपंच मन से भिन्न नहीं है। मन ही संसार के रूप में चमकता है। मैं है को अनुभव करके स्वयं बने  अखंडबोध स्वरूप की परमात्म शक्ति ही यह मन है। स्वयंभू अखंड बोध मात्र ही एकात्मक है, नित्य सत्य रूप में स्थिर खडा रहता है। उनमें दीख पडनेवाले सभी नाम रूप उसके कारण बने मन रेगिस्तान की मृगमरीचिका जैसे भ्रम के सिवा सत्य नहीं है।

 
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                 


3811. दुख विमोचन के लिए ज्ञान और वैराग्य होना चाहिए। प्रपंच विषय वस्तुओं के पीछे जाकर विषय वस्तुओं को मन में रखकर पूजा अर्चना करनेवाले बंध मोक्ष की कोशिश करना जीवन को व्यर्थ करना ही है। कारण आत्म ज्ञान के लिए मुख्य रूप में विषय वैराग्य और उद्वेग मोक्ष मिलने की इच्छा चाहिए। विषय इच्छाएँ और शारीरिक अभिमान जब ज्ञान की बाधाएँ बनती है, उनको मिटाये बिना मुक्ति चाहने से कोई लाभ नहीं है। विषय वैराग्य अति शक्तिशाली अभ्यास है। विषय वैराग्य होना है तो गुरु के उपदेश के द्वारा, सत्य की खोज के द्वारा जान-समझ लेना है कि सांसारिक विषय नश्वर है, आत्मा अनश्वर है। स्वयं शरीर नहीं है,आत्मा है। इस आत्मज्ञान को  बुद्धि में दृढ बना लेना चाहिए। तभी अपने प्राण जैसे सभी जीवों से प्यार करके भेद बुद्धि रहित, राग-द्वेष रहित एकात्म बुद्धि से आत्मा के स्वभाव शांति और आनंद को निरंतर, नित्य रूप में अनुभव कर सकते हैं।

3813.   जीवन में सभी प्रकार के दुखों के कारण सबको विदित है मन ही । यथार्थ में वह मन आत्मा से भिन्न नहीं है। अर्थात्  हल्की रोशनी में एक रस्सी को साँप सोचकर डरकर दीप जलाकर देखने पर रस्सी को साँप समझने का भ्रम दूर होगा। तभी साँप का भय दूर होगा। वैसे ही आत्मा बने मैं रूपी अखंडबोध में दृष्टित एक भ्रम ही मन है। भ्रम बदलते समय अर्थात् आत्मज्ञान रूपी प्रकाश बोध को छिपाने वाले भ्रम मन के  मिटते ही शरीर से खंडित बोध अखंड में बदलेगा। स्वयंभू अखंड बोध को कोई पर्दा नहीं ढकेगी। देखनेवाले सबको एक आत्मा के रूप में एहसास कर सकते हैं। सभी दृश्यों के कारण मन ही है। मन नहीं है तो और कुछ भी नहीं रहेगा। वैसे ही सभी वासनाओं के कारण अहंकार ही है। इसलिए मन और अहंकार के मिट जाने पर आत्मतत्व अर्थात् अखंडबोध अर्थात मैं रूपी सत्य किसी भी प्रकार के पट के बिना चमकेगा। वही अहमात्मा अनादी काल से उज्ज्वलतम परमात्मा बने बोध को अर्थात् उसके अखंड को जो एहसास करता है, वही अखंडबोध बने पूर्ण ब्रह्म है।

3814. जो कोई आत्मज्ञान रूपी पूर्ण पवित्र  मार्ग का अनुसरण करता है, वही परमानंद का पात्र बनता है। अंत में वह गुणातीत निर्गुण परब्रह्म ज्ञानप्रकाश परंज्योति परमानंद स्वरूप में खडा रहेगा। वही भगवान है।  ईश्वर का स्वभाव परमानंद है। जो अपने को परमात्मा स्वरूप एहसास करते हैं,वे सब परमानंद स्वरूप है। मृगमरीचिका जैसे पंचभूत पिंजडे के शरीर और मन दोनों  बोध को छिपा देने से जीव का परमानंद नष्ट हुआ। जिसमें  शरीर और मन को मृगमरीचिका जैसे देखने की क्षमता है,वे अति सरलता से शरीर और मन को त्यागकर अपने परमानंद स्वरूप को पुनःप्राप्त करके वैसा ही बन सकता है।

3815. जिसने आत्म तत्व को दृढ रूप में हृदय में एहसास किया है,वही भगवान है। उस भगवान को किसी भी प्रकार का संकल्प नहीं है। वैसे याचना करने के लिए दूसरा कोई न होने से किसी भी प्रकार की इच्छा नहीं है। आत्मा के सिवा दूसरी एक वस्तु किसी भी काल में नहीं है,यह जानना ही आत्मज्ञान होता है। भगवान के दो रूप भाव है, सामान्य रूप है और ब्रह्म रूप है। उदाहरण रूप में शंख चक्र गदा पद्म धारण किये चार भुजोंवाले महा विष्णु स्वरूप है। उसीको सामान्य स्वरूप कहते हैं। उसी समय एकात्मक अनादी अंत रहित अव्यक्त ब्रह्म स्वरूप अर्थात् अर्थात् अखंडबोध स्वरूप है। वही दूसरा परम भाव है।
आत्मज्ञान सीखकर आत्मज्ञानी बने बिना रहने के काल में महाविषिणु के पाद पर अपने को संपूर्ण रूप में  समर्पण करके जप करके, कीर्तन गाकर,ध्यान करके,पूजा करके उपासना करनी चाहिए। रोज वैसा करते समय कालांतर में आत्मज्ञान होकर एहसास करना है कि  स्वयं शरीर नहीं है, परमात्मा बने आदी अंत रहित अखंडबोध बने ब्रह्म स्वरूप में से न हटकर रहने से ब्रह्म के स्वभाव परमानंद को अपने स्वभाविक रूप से अनुभव करके वैसा ही रह सकता है।

3816. पहले अद्वैतबोध स्थिर खडे रहने के लिए एहसास करना चाहिए कि स्वयं शरीर नहीं है, अपने शरीर को आधार रूप अखंडबोध ही है। अर्थात्  शरीर जड है, जड कर्म है,कर्म चलनशील है। वह चलन निश्चलन बोध रूप बने परमात्मा में कभी नहीं होगा। इसलिए शरीर,मन, शरीर देखनेवाला संसार चलन स्वभाव होने से वह रेगिस्तान में दिखाईपडनेवाली मृगमरीचका ही है। उसकी एक वास्तविक स्थिति कभी कहीं हो सकती। यही शास्त्र सत्य है। अर्थात् सबके परम कारण स्वरूप मैं रूपी अखंडबोध नित्य सत्य अनिर्वचनीय शांति और परमानद क साथ
स्थिर खडा रहता है।

3817. जो भिंड को सही रूप में समझ लेता है,उसको अंड को समझने में कोई कठिनाई नहीं होगी। जिसमें आत्मबोध है,उसको यह कहने में कोई कठिनाई न होगी कि हम जिस अंतरिक्षलोक और भूलोक को देखते हैं,वह प्रपंच अपने से ही उतपन्न हुए हैं।कारण आत्म बोध नहीं है तो यह संसार नहीं है।अर्थात् बोध नहीं है,कहने के लिए भी बोध की आवश्यक्ता होती है। इस वात को समझाने के लिए ही एक गुरु की आवश्यक्ता होती है कि आत्मबोध होने से ही लगता है कि सब कुछ है और जो कुछ देखते हैं,सुनते हैं, अनुभव करते हैं, वे अखंडबोध सत्य है। यह समझने के लिए  अनेक जन्म लेना पडेगा  कि गुरु से मिले बिना स्वयं अखंडबोध है, क्योंकि माया के पर्यवेक्षण के इंद्रजाल प्रपंच की शक्ति अति बलवती है। प्रपंच रूपी भ्रम से साधारण जनता को बाहर आना मुश्किल है। लेकिन विवेकी के लिए आसान है।विवेक रहित मिथ्या संकल्प लेकर जीनेवाला ही दुखी बनता है। लेकिन विवेकी में  मिथ्या संकल्प न होने से उसको दुख होने के कोई कारण नहीं है। शास्त्र  सत्य अथवा मैं रूपी आत्म बने अखंड बोध ही नित्य सत्य रूप में है। इस शास्त्र सत्य को याद में लाकर मृगमरीचिका जैसे दीख पडनेवाले मिथ्या रूपी इस संसार को तजकर सभी प्रकार की शांति और आनंद निरुपाधिक कर सकता है। अर्थात् अनिर्वचनीय शांति और आनंद को प्राप्त करेगा।
3818. हमें मालूम नहीं है कि संसार का बनना और स्थिर रहना कैसा है? अतः उसे मन से नकारात्मक करने के लिए अर्थात् संसार को मन से हटाने के लिए अर्थात् मन को आत्मा में लय करने के लिए कई प्रकार के प्रयत्न करना पडता है।यह बरह्मांड यह प्रपंच बिना  किसी भी प्रकार के कारण से बना है। वह अकारण है। कारण रहित कार्य असत्य ही है। अर्थात् इस संसार के कारण संसार ही है। और कोई कारण नहीं है। ब्रह्म से अर्थात्  निश्चलन सर्वव्यापी परमात्मा से दूसरा एक चलन किसी भी काल में हो ही नहीं सकता। इसलिए संसार बनने ब्रह्म किसी भी काल में हो नहीं सकता।लेकिन इस ब्रह्म से ही इस संसार उत्पन्न हुआ-सा दीख पडता है। ब्रह्म से उत्पन्न होकर दीख पडनेवाले प्रपंच भ्रम सिवा भ्रम के और कुछ नहीं है। अर्थात् रेगिस्तान में बनकर दीख पडनेवाले मृगमरीचिका दृश्य के लिए कोई कारण नहीं है। वह मृगमरीचिका कारण रहित कार्य ही है। यह सत्य है कि  रेगिस्तान में पानी नहीं है। लेकिन रेगिस्तान में दीख पडनेवाली मृगमरीचिका के कारण मृगमरीचिका ही है। लेकिन रेगिस्तान के बिना
कारण रहित दीख पडनेवाले कार्य रूपी पानी का दृश्य रेगिस्तान होने से ही दीखता है। लेकिन वह दृश्य रेगिस्तान से अन्य कोई नहीं है। रेगिस्तान से अन्य स्वअस्तित्व उसको नहीं है। वह रेगिस्तान का स्वभाव ही है। वैसे ही प्रपंच दृश्य कारण रहित कार्य होने पर भी परमात्म स्वभाव ही भ्रम बने प्रपंच है। लेकिन बोध से न मिले प्रपंच को एक स्व अस्तित्व नहीं है। इसलिए बोध में दीख पडनेवालेप्रपंच भ्रम भी बोध ही है। बोध मात्र ही है।

3819.  गृहस्थ जीवन बितानेवाली स्त्री पुरुष किसी भी काल में स्थाई शांति और स्थाई आनंद की प्रतीक्षा बेकार है। वह किसी भी काल में पूरा नहीं होगा। कारण वह भेद बुद्धि बनाकर आत्मा को विस्मरण कराके  आत्मानुभूति के मार्ग की बाधा बनेगी। शांति और आनंद आत्मस्वभाव है। यह जानकर भी वे बंधन की भेद बुद्धि द्वारा होनेवाले कामक्रोध,राग-द्वेष आदि आत्म स्वरूप को विस्मरण कराकर मन को निम्न स्थिति की ओर ले आने के लिए ही उपयोग होगा। जो भी जहाँ भी हो ,जैसा भी हो, जिस स्थिति में भी हो, अपनी माया रूपी शरीर और संसार नहीं है।उसके साक्षी रूप है आत्मा। इस बात को बिना कोई संदेह के महसूस कर लेना चाहिए। फिर आत्मा के स्वभाविक परमानंद को निरुपाधिक रूप में  स्वयं अनुभव न करके ,अपने को स्वयं आत्मा के अनुभव जो नहीं करता,उसको   कभी शांति और  आनंद   स्वप्न में भी नहीं मिलेगा।

3820. जो कोई आत्मबोध से एक मिनट भी तैलधारा जैसे निश्चल रहता है, उसको  सुख मिलेगा।

3821.एक बच्चा भूमि में जन्म लेने तक मन उसकी आत्मा में लगा रहता है।
भूलोक में आने के बाद ही उस बच्चे के मन को माता चूमकर,दूध देकर, उसको उसके आत्मबोध से शारीरिक बोध को ले आता है। इसीलिए आत्मबोध के साथ जन्म लेनेवाले बच्चे दूसरों के स्पर्श करने की अनुमति न देंगे।आत्मबोध रहित जीव को उपयोग करके ही उसके माता-पिता उनकी इच्छाओं को पूर्ण कर लेते हैं। वह उनके अहंकार को संतुष्ट करता है। इसलिए जो बच्चे माता-पिता की बातें न मानकर शरीर और संसार को जानने और समझनेवाले विवेकी ही महान बनते हैं। जिनमें आत्मविचार करने की बुद्धि नहीं होती और प्रपंच विचार करते हैं,वे विचार उनको अंधकार में ले जाकर मृत्यु का पात्र बना देंगे।लेकिन आत्म को मात्र मुख्यत्व देकर सत्य को स्वीकार करके असत्य को त्यागनेवाले बच्चे ही ज्ञानी और परमहंस बनकर दुखी लोगों को शांति और आनंद देते हैं। वैसे लोग ही संसार की भलाई करेंगे।  मिथ्या संसार की सांसारिक चिंतन करनेवाले स्वयं को और दूसरों को कोई कलयाण कार्य कर नहीं सकते। जो सोचते हैं कि  आत्मबोध रहित संसार को सीधे करना चाहिए,वह मृगमरीचिका   के समान बेकार ही है। पंचेंद्रियों को संयम करके ही योगी एकांत जीवन जीते हैं।

3822.  स्वर्ग में देवेंद्र सुधबुध खोकर विषय भोगों में रम जाने से देवेंद्र को उन बुरी आदतों से छुडाने के लिए उसके मन को आत्मोन्मुख करने के लिए ही त्रिदेव तपस्वी असुरों को उनके मन चाहा वर देते थे। लेकिन वर प्राप्त करने के बाद असुर लोग अहंकार वश ईश्वर को भूलकर देवलोक जाकर देवेंद्र को सिंहासन से निकाल देते थे। वे नहीं जानते थे कि वर में उनका नाश छिपा रहते थे। देवेंद्र पद की आपत्ति के आने के बाद ही विवेक होता है कि वे भगवान को भूल गये हैं।देवेंद्र तपस्या करके पुनःईश्वर विचार करने पर असुरों का नाश करके पुनः सिंहासन पर बैठते थे।ऐसे ही सांसारिक राजनैतिक संघर्ष अनादी काल से चलते रहते हैं।मैं रूपी अखंडबोध में अपनी शक्ति मनोमाया अकारण आकर बोध को छिपाकर दिखानेवाले मनोविलास ही यह प्रपंच है। इस प्रपंच में ही काल,देश,वस्तु आदि अनुभव जन्म-मृत्यु सब कुछ चलता रहता है। ये सब मन का एक इंद्रजाल प्रकटीकरण मात्र है। अर्थात् एक अल्पकाल में अनेक काल जीने के स्वप्न अनुभव जैसे ही अज्ञान निद्रा इस जागृत अवस्था में जन्म लेकर जीनेवाले आयु, अनुभव, वस्तुएँ ,जीव  आदि को बनाकर दिखाना मन का तंत्र है। वह इस प्रपंच बोध का दृश्य मात्र है। अर्थात्  यह प्रपंच मन से भिन्न नहीं है। मन ही संसार के रूप में चमकता है। मैं है को अनुभव करके स्वयं बने  अखंडबोध स्वरूप की परमात्म शक्ति ही यह मन है। स्वयंभू अखंड बोध मात्र ही एकात्मक है, नित्य सत्य रूप में स्थिर खडा रहता है। उनमें दीख पडनेवाले सभी नाम रूप उसके कारण बने मन रेगिस्तान की मृगमरीचिका जैसे भ्रम के सिवा सत्य नहीं है।