हिंद देश परिवार जम्मू कश्मीर इकाई को नमस्ते।वणक्कम।
२४-३-२०२१.
विषय उम्मीद
विधा
मौलिक रचना मौलिक विधा
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कई दलों में
विश्वास उम्मीद,
आशा ,भरोसा
लिख रहा हूँ
भगवान पर भरोसा रखकर।।
कोराना का आतंक,
उम्मीद है
इसलिए मानव
जी रहा है,
जी में भय है तो
जीने का भरोसा न होगा।।
हमारे भारतीय सनातन,
आरोग्य मार्गदर्शन पर
अविश्वास उत्पन्न करके
अन्य अजनबी शासकों पर
उम्मीद परिणाम,
रोग उल्लंघन शक्ति कम।।
हाथ पैर धोना,
घर में प्रवेश करना।
जूता उतारकर अंदर आना।
इस पर खिल्ली उठाकर
जूते के साथ जाना।।
पाश्चात्य देशों में,
सर्दी ज्यादा।।
हमारे देश में गर्मी।
उनके समान वर्दी पालन,
भारतीय रहना सहन बदलना
भारतीय संस्कृति,
आचार व्यवहार पर
नाउम्मीदी
कोराना का आतंक जान।।
स्नान करके मंदिर जाना,
जीव नदियों के हरे-भरे देश
भारत देश आचरण।
बिना स्नान करके
मस्जिद गिरिजाघर जाना,
एक रेतीला प्रदेश,
दूसरा बर्फीला प्रदेश।
पानी नहीं,सर्दी ज्यादा
विपरीत जलवायु
उन्हीं का पालन भारतीय।
भारतीयता छोड़ जीवन।।
अपने पर उम्मीद नहीं तो
अपने धार्मिक आचरण पर
अपनी भाषा पर,
अपने प्रशासकों पर,
शासकों पर उम्मीद नहीं,
अपने भगवान पर
उम्मीद नहीं
धन ही प्रधान ,
भ्रष्टाचार रिश्वत सद्यःफल पर विश्वास।
जब अपना उम्मीद खोकर
विदेशी भाषा पोषाक
भोजन पर उम्मीद तो
उच्च शिक्षा अपनी मातृभाषा पर नहीं,
अब कोराना से बचने
भारतीय दवा प्रधान।
जैनाचार्यों का मुख कवच,
मुनि ऋषियों-मुनियों का एकांत जीवन ,
स्नान,हाथ मुख की सफाई।
बाहर पड़ोसी खाना न खाना।
पानी,चाय बाहर न पीना,
पुराने आचरण पर उम्मीद।।
अगजग में यही प्रचार।
एक ही थाली में जूठा खाना
खाना मना।
भारतीय संस्कृति का आचरण
पर उम्मीद रखना,
कोराना से बचने का मार्ग।।
स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
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