नमस्ते वणक्कम।
पत्थर की अभिलाषा।
मैं हूँ पाषाण।
मानव का मन पाषाण।
यह तुलना मुझसे
सहा नहीं जाता।
पत्थर के छेद में
पक्षी रहते हैं।
जटी-बूटियाँ पलती है।
मैं मंदिर निर्माण में सहायक।
मंदिर की सीढियाँ,
बुनियादी पत्थर,
सुंदर ईश्वर की मूर्तियाँ,
स्तंभ,स्तंभ की प्रतिमा एँ,
गुफाएँ, सिद्ध पुरुषों की तपस्या आवास।
मुहम्मद नबी को पैगाम स्थान।
मेरी तुलना मानव मन से
न करना।
मानव मन चंचल।
गिर गिर समान।
आज एक धर्म,
कल एक धर्म।
आज एक मजहब।
कल एक मजहब।
आज एक दल
कल एक दल।
सद्यःफल न मिलें तो
ईश्वर परिवर्तन।
ईश्वर पर विश्वास नहीं,
ज्योतिष पर अंध विश्वास।।
मैं पाषाण हूँ,सुदृढ।
बम रखकर चूर्ण करता
मानव निर्दयी।
कई पहाड़ नदारद।
प्राकृतिक संपत्तियों को
मैं सुरक्षा करता हूँ।
मानव बिगाड़ता है,
निर्झरी चंचल मानव को
मुझसे तुलना न करना।
मैं अपना अपमान
सह नहीं सकता।
स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
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