कलमकार कुंभ।
नमस्ते वणक्कम।
विषय
आग में तपकर ही
स्वर्ण दमकता है।
विधा मौलिक रचना
मौलिक विधा।
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स्वर्ण आग में
तपकर ही चमकता है।
स्वाति नक्षत्र की बूंद ही
सीपी में गिरकर
मोती बन दमकता है।
मानव तो आग में
बच नहीं सकता।
काला बन जाता है।
मानव को भक्ति की
आग में तपना है।
परिश्रम की आग।
कोशिश की आग।
कोराना विष किरीटाणु जलाने जलवाने तैयार।
सावधान से रहना।
स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
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