भगवान से सृष्टित भगवान
धनुष गीत नाटक (विल्लुप्पाट्टू )
मूल --तमिल ---लेखक --कलैमामणि सुब्बू आरुमुखम.
हिंदी अनुवाद --एस . अनंतकृष्णन
भाग लेनेवाले पात्र --
भारती तिरुमुरुगन :--गायक ,हारमोनियम
एस. गांधी --डमरू ,समर्थक ( हाँ में हाँ मिलानेवाला )
बी. गणेशराम ---तबला
टी .मालती --घड़ा और ताल
तवमनी अन्बलगन --नाटक अभिनेत्री
कोटा --नाटक अभिनेता
***************************************************
भारत में हर प्रांत के लोक गीत ,लोक नृत्य , लोक नाटक आदि का अपना विशिष्ट महत्त्व है.
स्वतंत्रता संग्राम में अनपढ़ ,
अज्ञानी जनता में खासकर ग्रामीण
जनता में देश -भक्ति जगाने ,ईश्वर -भक्ति के प्रचार में ,रामायण ,महाभारत की कथा को समझाने में अपना विशेष हिस्सा इनको है.
ऐसे ही तमिलनाडु में भक्ति भावना जगाने में धनुष गीत का योगदान सराहनीय रहा.
यह धनुष गीत के शरुआत की कहानी मर्मस्पर्शी ,
रोचक और शिक्षाप्रद है.
दक्षिण तमिलनाडु का एक राजा शिकार खेलने गया था. तब उसका एक तीर एक पशु पर पड़ा.
वह पशु बहुत देर तड़पता रहा.उसकी दयनीय
दशा देख राजा को असहनीय पीड़ा हुई.
तुरंत उसने हिंसा को त्यागा;
और अहिंसा मार्ग को अपनाया.
हाथ के धनुष को पैर पर बाँधा;
तूणीर से शर निकाला और धनुष के डोर पर पीटते -पीटते गाने लगा.
धनुष बाजा बना;
उस राजा के ग्रामीण गीत की मधुर ध्वनि
चारों ओर गूँज उठी.
भयभीत भागते पशु -पक्षी उनके चारों ओर
गीत में तन्मय होकर खड़े रहे;
उसके दुश्मन उनकी दुश्मनी भूल ,उसकी प्रशंसा में लग गए;
यह अहिंसा का सन्देश हज़ारों साल पुराना था ;फिर भगवान बुद्ध और महावीर का सन्देश बना; बाद को गांधीजी ने अहिंसा के द्वारा सशक्त शासकों को जड़- मूल नष्ट कर दिया .
उस अहिंसा मूर्ति विश्ववन्द्य आदर्श राष्ट्र पिता महात्मा गाँधीजी का यशोगान
इस धनुष संगीत में सौ फीस सदी समुचित होगा ही.
धनुष गीत तो तमिलनाडु में प्रसिद्ध है.
नाटक तो विश्व विख्यात है.
इसलिए इस धनुष गीत के साथ एकांकी मिलाकर
प्रस्तुत करना भी उचित होगा;
इस धनुष गीत में प्रधान गायक के साथ मूल कथा के समर्थक ,कथावाचक ,हँसी उड़ानेवाले ,हाँ में हाँ मिलानेवाले ,बीच बीच में प्रश्न करनेवाले आदि होंगे .
जिनके कारण धनुष गीत सुनने में और विचारमग्न होने में श्रोतागण लीन हो जायेंगे. तन्मय होकर सुनेंगे.
धनुष गीत नाटक (विल्लुप्पाट्टू )
मूल --तमिल ---लेखक --कलैमामणि सुब्बू आरुमुखम.
हिंदी अनुवाद --एस . अनंतकृष्णन
भाग लेनेवाले पात्र --
भारती तिरुमुरुगन :--गायक ,हारमोनियम
एस. गांधी --डमरू ,समर्थक ( हाँ में हाँ मिलानेवाला )
बी. गणेशराम ---तबला
टी .मालती --घड़ा और ताल
तवमनी अन्बलगन --नाटक अभिनेत्री
कोटा --नाटक अभिनेता
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भारत में हर प्रांत के लोक गीत ,लोक नृत्य , लोक नाटक आदि का अपना विशिष्ट महत्त्व है.
स्वतंत्रता संग्राम में अनपढ़ ,
अज्ञानी जनता में खासकर ग्रामीण
जनता में देश -भक्ति जगाने ,ईश्वर -भक्ति के प्रचार में ,रामायण ,महाभारत की कथा को समझाने में अपना विशेष हिस्सा इनको है.
ऐसे ही तमिलनाडु में भक्ति भावना जगाने में धनुष गीत का योगदान सराहनीय रहा.
यह धनुष गीत के शरुआत की कहानी मर्मस्पर्शी ,
रोचक और शिक्षाप्रद है.
दक्षिण तमिलनाडु का एक राजा शिकार खेलने गया था. तब उसका एक तीर एक पशु पर पड़ा.
वह पशु बहुत देर तड़पता रहा.उसकी दयनीय
दशा देख राजा को असहनीय पीड़ा हुई.
तुरंत उसने हिंसा को त्यागा;
और अहिंसा मार्ग को अपनाया.
हाथ के धनुष को पैर पर बाँधा;
तूणीर से शर निकाला और धनुष के डोर पर पीटते -पीटते गाने लगा.
धनुष बाजा बना;
उस राजा के ग्रामीण गीत की मधुर ध्वनि
चारों ओर गूँज उठी.
भयभीत भागते पशु -पक्षी उनके चारों ओर
गीत में तन्मय होकर खड़े रहे;
उसके दुश्मन उनकी दुश्मनी भूल ,उसकी प्रशंसा में लग गए;
यह अहिंसा का सन्देश हज़ारों साल पुराना था ;फिर भगवान बुद्ध और महावीर का सन्देश बना; बाद को गांधीजी ने अहिंसा के द्वारा सशक्त शासकों को जड़- मूल नष्ट कर दिया .
उस अहिंसा मूर्ति विश्ववन्द्य आदर्श राष्ट्र पिता महात्मा गाँधीजी का यशोगान
इस धनुष संगीत में सौ फीस सदी समुचित होगा ही.
धनुष गीत तो तमिलनाडु में प्रसिद्ध है.
नाटक तो विश्व विख्यात है.
इसलिए इस धनुष गीत के साथ एकांकी मिलाकर
प्रस्तुत करना भी उचित होगा;
इस धनुष गीत में प्रधान गायक के साथ मूल कथा के समर्थक ,कथावाचक ,हँसी उड़ानेवाले ,हाँ में हाँ मिलानेवाले ,बीच बीच में प्रश्न करनेवाले आदि होंगे .
जिनके कारण धनुष गीत सुनने में और विचारमग्न होने में श्रोतागण लीन हो जायेंगे. तन्मय होकर सुनेंगे.
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