37.
विनैप पयनै वेल्वतर्कू वेदम मुतलाम
अनैत्ताय नूलकत्तुम इल्लै --निनैप्पतु एनक
कण णुरुवतु अल्लाल कवलैप्पडेल नेंचे मेय.
विन्नुरुवार्क्कू इल्लै विधि .
पूर्व -जन्म के बुरे कर्म फल से सफलता या बचने वेद आदि सभी ग्रंथों में कोई मार्ग या उपाय नहीं है
मुक्ति पाने ईश्वर की कृपा बिन या ईश्वर के ध्यान बिन और कोई मार्ग या विधि नहीं है.
विनैप्पयने --पूर्व जन्म के बुरे कर्म फल के परिणाम को
वेल्वतर्कू = जीतने के लिए
वेदम मुतलाम --वेद आदि
अनैत्ताय -सभी
नूलकत्तुम इल्लै --पुस्तकालय में नहीं है;
निनैप्पतु एनक---ध्यान
कण णुरुवतु अल्लाल --करने के सिवा
कवलैप्पडेल नेंचे मेय.---हे मन!
विन्नुरुवार्क्कू इल्लै विधि .--दुखी होने की विधि नहीं है.
38.
नन्रु एन्रुम तीतु एन्रुम नान एन्रुम तान एन्रुम
अन्रू एन्रुम आम एन्रुम आकाते --निन्र निलै
तानताम तत्तुवमाम सम्बरुत्तार यक्कैक्कुप
पोनावातेडुम पोरुल.
कवयित्री का कहना है कि यह अच्छा ,वह बुरा ,इसे मैंने किया इसे उसने किया
यह नहीं है ,वह है आदि भेद रहित दोनों मिश्रित दशा ही वह परम तत्व है;
यह न जानकर ईश्वर की तलाश में जाना , वैसा है जैसे चंबा नामक धान काटकर,उसे बाँधने और कोई रस्सी की तलाश करना ,जब कि उसीधान के पौधे को ही बाँधने के लिए उपयोग कर सकते हैं.
भगवान की तलाश में और कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है.
विनैप पयनै वेल्वतर्कू वेदम मुतलाम
अनैत्ताय नूलकत्तुम इल्लै --निनैप्पतु एनक
कण णुरुवतु अल्लाल कवलैप्पडेल नेंचे मेय.
विन्नुरुवार्क्कू इल्लै विधि .
पूर्व -जन्म के बुरे कर्म फल से सफलता या बचने वेद आदि सभी ग्रंथों में कोई मार्ग या उपाय नहीं है
मुक्ति पाने ईश्वर की कृपा बिन या ईश्वर के ध्यान बिन और कोई मार्ग या विधि नहीं है.
विनैप्पयने --पूर्व जन्म के बुरे कर्म फल के परिणाम को
वेल्वतर्कू = जीतने के लिए
वेदम मुतलाम --वेद आदि
अनैत्ताय -सभी
नूलकत्तुम इल्लै --पुस्तकालय में नहीं है;
निनैप्पतु एनक---ध्यान
कण णुरुवतु अल्लाल --करने के सिवा
कवलैप्पडेल नेंचे मेय.---हे मन!
विन्नुरुवार्क्कू इल्लै विधि .--दुखी होने की विधि नहीं है.
38.
नन्रु एन्रुम तीतु एन्रुम नान एन्रुम तान एन्रुम
अन्रू एन्रुम आम एन्रुम आकाते --निन्र निलै
तानताम तत्तुवमाम सम्बरुत्तार यक्कैक्कुप
पोनावातेडुम पोरुल.
कवयित्री का कहना है कि यह अच्छा ,वह बुरा ,इसे मैंने किया इसे उसने किया
यह नहीं है ,वह है आदि भेद रहित दोनों मिश्रित दशा ही वह परम तत्व है;
यह न जानकर ईश्वर की तलाश में जाना , वैसा है जैसे चंबा नामक धान काटकर,उसे बाँधने और कोई रस्सी की तलाश करना ,जब कि उसीधान के पौधे को ही बाँधने के लिए उपयोग कर सकते हैं.
भगवान की तलाश में और कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है.
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