हरिश्चंद्र नाटक
स्थान --श्मशान (रात के अनुकूल -भयानक संगीत )
पात्र --हरिश्चंद्र ,,चंद्रमती , विश्वामित्र
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हरिश्चंद्र --अरी स्त्री ! तू कौन है ? लाश लाई है ! जलाना है तो दे मुहरें .
(चंद्रमती की ओर देखकर )
निःशुल्क जलाना राजाज्ञा के विरुद्ध है.
शुल्क : राजा के लिए दस मुहरें ; खर्च के लिए पाँच;
मेरे लिए एक गज की तौली; दो मुहरें आदि .
बगैर इनके काम न होगा.दे ; न तो ले चल .
शव को;
शव को;
यह है क़ानून.
चंद्रमती -(रोती हुई ):- क़ानून ! राजाज्ञा !लाश जलाने!
आदमी जिन्दा है तो क़ानून जला रहा है.
मृत्यु के बाद भी क़ानून.
अधिकार! क़ानून! राजाज्ञा! अफसोस !हुज़ूर !
दया की भीख मांगती हूँ !अनाथिन हूँ मैं!
बेचारी हूँ ,बेसहारा हूँ ,यह लाश मेरा पुत्र है.
रोहित है नाम उसका. इकलौता बेटा लाचारी बेचारी मैं.
हरिश्चंद्र :--शव जलाने में दया !असंभव ! विधि की विडम्बना में भी छूट .
एक को छूट दूँगा तो यह छूट ही नियम बन जाएगा!
यहाँ इनाम का काम न होगा.
दे मुहरें !जला ले लाश ! न तो चल हट .
चंद्रमती :-क्या आप में दया नहीं है ?जरा भी.?
हरिश्चंद्र :-अरी स्त्री !मैं हूँ राज कर्मचारी !मेरा धर्म राजाज्ञा निभाना !
चंद्रमती : मैं कहाँ जाऊँ ?किससे मांगूँ ?अबला हूँ मैं.
हरिश्चंद्र :-क्यों ?तेरे गले में मंगल सूत्र है न ?
चंद्रमती :-(रोती हुई अपने आप )
श्मशान रक्षक को मेरा मंगल सूत्र दीख पड़ा .
यह कैसे संभव है ?
यह कैसे संभव है ?
सिवा मेरे पति के और कोई देख न सकता .
हे ईश्वर ! यह तो तेरी लीला है.
(प्रकट ) हुज़ूर! आप कौन हैं ?
(क्रमशः )
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