महिला दिवस
महिला तो सहन शील धरती -सी
पच्चीस साल पली प्यार छोड़ आती ससुराल;
मायके भूल पति सेवा में बन जाती बेगार;
भले ही वह स्नातक हो या स्नातकोत्तर
पति के लिए वह बन जाती दासी;
दफ्तर जाती; घर का काम करती ;
उसके सुख -दुःख पर न किसी की चिंता;
ए.टी.एम् कार्ड तक पति के काबू में ,
कमाने का अधिकार ; खर्च करने का नहीं ;
थप्पड़ ,झिडकियां, न जाने कितने संकट झेलती ;
त्यागमयी ममता मयी भारतीय नारी;
सहनशील धरती जैसी;
पति कीसेवा परमेश्वर की सेवा मान सब सह लेती;
सीता समान अग्नी में कूद पड़ती ;
राम समान निर्दयी पति जंगल में छोड़ आता ;
सोलह साल के होते ही बदमाशी नज़रों का भय ,
सड़क पर चलना मुश्किल;
वह सचमुच देवी है नर के जीवन में;
पंतजी --यदि स्वर्ग है तो नारी के उर के ही भीतर ;
यदि नरक हो तो नारी के उर के ही भीतर;
अन्य कवि -- अर्द्धांगिनी न होती तो गृह -बनजाता शून्य .
नारी की जय.
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