नमस्ते वणक्कम।
नव साहित्य परिवार।
भारत और मेरा अनुभव।
,गद्य ---लेख
27-9-2021
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भारत मेरी मातृभूमि है।
सर्व संपन्न देश में
विदेशी शैतानों की कुदृष्टि पड़ी।
विदेशी आते,खूब लूटे। शासन भी करने लगे। भारतीय लोग इतना स्वार्थ थे, इनमें कई देश द्रोही निकले।
सद्यःफल के लिए वे भारत
के नमकहराम बन गये।
अंग्रेज़ी आते तो ब्राह्मण संस्कृत ,वेद मंत्र सब तजकर अंग्रेज़ी के पारंगत बन गये।
चोटी तजकर धोती तजकर,
पूजा-पाठ तजकर , वकील, क्लर्क, डाक्टर बन गये।
अंग्रेज़ों ने भारतीय आम जनता और समाज का गहरा अध्ययन किया।
मालूम हुआ कि संस्कृत भाषा का महत्व कम कर देने पर भारत महत्वहीन हो जाएगा।
भारत में छूत अछूत की समस्या है। इस भेद के बीच खाई बनाने अछूतों की बस्तियों के पास गिरजाघर, स्कूल खोलने लगे।
भारतीय संस्कृत पंडित जिनको सिखाना पाप समझते थे,उनको ईसाई लोग सम्मान दिया, इन्सानियत की सीख दी। गिरजाघर के अंदर प्रवेश करने दिया। उनके बाइबिल को भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया। उनसे संचालित स्कूलों में प्रार्थना अनिवार्य कर दी। केरल तमिलनाडु के शिक्षित लोग
ईसाई बनने न हिचके।
उत्तर भारत में मुगल आम कत्ल के द्वारा मुगल धर्म की संख्या बढाने लगे।
छूत अछूत की भावना सनातन धर्म में एकता लाने में असमर्थ कर रहा है।
अशिक्षित अछूत ईसाई धर्म में मिलकर अध्यापक बने। सर्व शिक्षा अभियान अंग्रेज़ी ने ईसाई स्कूल खोलने लगे।
ऐसा कोई भारतीय स्नातक नहीं जिनका संबंध ईसाई शिक्षा संस्थान से संबंध न हो।
जर्मन के मैक्समूलर जैसै लोग भारतीय दर्शन, वेद वेदों का अध्ययन किया।
इनके आधार पर दवाएँ अपने देश में बनाकर अपना कहने लगे।
इतने में भारतीय नेता नेहरू जिनको भारतीय संस्कृति , संस्कृति भाषा के अनभिज्ञ थे, मोहनदासकरम चंद गांधी ने भी पाश्चात्य और मुगलों से प्रभावित थे।
उन्होंने दक्षिण भारत में हिंदी प्रचार सभा की स्थापना की। पहले हिंदी को हिंदुस्तानी नाम दिया। हिंदी परीक्षाओं में
उर्दु लिपी सीखना , परीक्षा देना अनिवार्य कहा।
मुगलों को अलग देश देकर भी मुगलों को रहने दिया। दो हजारों से ज्यादा मंदिर जो मस्जिद बनवाते ग्रे,उनको फिर मंदिर बनवाने का कदम आजाद भारत में नहीं उठाया गया,इतना ही नहीं अल्पसंख्यक अधिकार देकर बहुसंख्यक लोगों को शक्ति हीन बना दिया।
आज भी विदेशी पूंजी लेकर भारत को गुलाम बनाने के द्रोही है। पंद्रह मिनट में भारत के सभी हिन्दुओं को मिटाने वाले सांसद हैं। तमिलनाडु के शासक द्वि जिह्वा के राजनीतिज्ञ सांसद में हाँ में हाँ मिलाकर विधानसभा चुनाव में विरोध करते हैैं।
नवोदया स्कूल तमिलनाडु में मात्र नहीं है।
भारतीयों में विष की बूंद के समान देशद्रोही और स्वार्थी हैं।
भारतीय धर्म और मजहब के कारण भी देश द्रोही हैं।
अब भी भारत का अपना महत्व है, अपनी विशेषता है, भारतीय भाषाएँ जिंदा है तो सर्वेश्वर हमारे शिक्षक हैं।
स्वरचित स्वचिंतक एस-अनंतकृष्णन, चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
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