कलम की ताकत नमस्ते वणक्कम।
१५-७-२०२१.
इष्ट वंदना।
मौलिक रचना मौलिक विधा।
++++++++++++++
इष्ट वंदना या अनिष्ट वंदना
करना मानव मन चंचलता।
सूर कृष्ण को न तजे।
तुलसी राम को न तजे।
कबीर ज्ञान को न तजे।
सद्यःफल के लोभ में
मानव मन तितली समान,
रंग ,स्वाद , स्वार्थ के लिए
आश्रमों की संख्या बढ़ाता है,
आश्रम अपनी शाखाएँ बढ़ाती है।
एकै सधै सब सधै, सब सधै सब जाय।।
चंचल मन की वंदना अर्वाचीन भक्ति जान।।
इष्ट भगवान की वंदना देता इष्ट फल।।
दादी एक,नानी एक, समाज एक।
प्रचार करते तो मन चंचल।
एकाग्र चित्त न तो एकाग्र भक्ति नहीं।
एक देव के उपासक पाते इष्ट वर।।
स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,
No comments:
Post a Comment