Thursday, July 8, 2021

वर्षा

 नमस्ते वणक्कम।

नव साहित्य परिवार।

8-7-2021.

विषय =काले काले मेघा पानी दें।

विधा---मौलिक रचना मौलिक विधा। निज शैली निज रचना।

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 हवा और पानी जगत के लिए 

 जीने के लिए अति अनिवार्य।।

 नदी,झील,ताल तलैया,पोखर

सूख जाएँगे तो वनस्पति,पशु पक्षी मानव

सब के प्राण पखेरु उड़ जाएँगे।।

अकाल से पीड़ित जग ,

 धरती पर दरारें पड़ जाएँगे।

 हम मानव अति मेधावी,

 स्वार्थ वश जंगल  का नाश कर रहे हैं।।

 नदी को रेत हीन बना रहे हैं,

नगरीकरण नगरविस्तार के नाम,

 लाखों करोड़ एकड़ भूमि इमारत कारखाने बन गये हैं।

 कृषी प्रधान भारत  मरुभूमि बन रहा है,

 मिनरल और पेयशराब के कारखाने ,

 भारत को जलरहित कर रहा है,

खेद की बात है पवित्र गंगा के किनारे

पीने का पानी मिनरल वाटर की बिक्री बढ़ रही है।

 मानव अपराध माफ कर ,

 कोराना,सुनामी से बचाने,

काले मेघा पानी दें,न नाराज न होना।।

  स्व रचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै।

तमिल नाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

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