नमस्ते वणक्कम।
साहित्य बोध।
जीवन में धैर्य जरूरी है।
विधा। मौलिक विधा मौलिक रचना।
3-7-2021.
धैर्य साहस न तो
धिक्कार है मानव जीवन।।
ज्ञान धारा के प्रवर्तक कबीर की यादें।
जिन ढूंढे तिन पाइया,गहरे पानी पैठ।
मैं बौरी डूबन डरी,रही किनारे बैठ।।
साहसी न तो अमेरिका का पता नहीं।
साहसी धीर वीर नहीं तो देश की सुरक्षा नहीं।
जंगली जटि- बूटियों का पता नहीं।।
पारासूट से कूदने वाले वीर नहीं।
नये नये द्विपों का पता नही।
खूँख्वार जानवरों से हिफाजत नहीं।।
धैर्यवान पुरुषोत्तम न तो सिकंदर लौटता नहीं।
शारीरिक, मानसिक धैर्य न तो जीना दुश्वार।।
मंच पर भाषण देना कायरों से असंभव।।
दरबार में बोलने का साहस न तो
वह शिक्षा का कोई मूल्य नहीं।
स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन, चेन्नै।
No comments:
Post a Comment