नमस्ते वणक्कम नमस्कार।
नव साहित्यकार मंच।
5-3-2021.
न जाने कहाँ गये वो दिन।
विधा --अपनी शैली अपनी भाषा अपनी भावाभिव्यक्ति।
मैं छठवीं कक्षा तक ,
एक श्रेष्ठ ही
मेरी पाठ्य पुस्तक।
कितने धर्म के गीत।
तमिल कवयित्री औवैयार के
एक वाक्य की नसीहतें।
आत्तिच्चूडी।
धर्म-कर्म करना चाह।
माता पिता गुरु देव।
मंदिर जाकर प्रार्थना अति बढ़िया प्रयोजन का काम।।
तिरूक्कुरल
अध्ययन करो,कसर रहित अध्ययन करो, अधिगम की बातों को अक्षरशः पालन करो।
समय पर की गरी मदद ब्रह्माण्ड से अधिक बड़ी।
कृतघ्नता का पाप अक्षम्य।
शाम का वक्त खेल कूद।
मुफ्त शिक्षा,पढ़ो पढ़ो का
कर्ण कठोर ध्वनि,
ट्यूशन का संक्रामक रोग नहीं नहीं।
न जाने आजकल के बच्चों को वह आनंद नहीं।
न जाने कहाँ गये वो दिन।।
एक रटते ले जाता,
चावल, शक्कर, दाल,तेल ,
नारियल का टुकड़ा,
सब ले आता।
दूकान दार खाने मुफ्त में देता मूँगफली,गुड।
न जाने कहाँ गये वो दिन।।
गणेश मंदिर में नारियल तोड़ना,
गरीबों के लिए।
आजकल ठेकेदार।
गरीबों को नहीं वह भी व्यापार।।
स्कूल, घर,ट्यूशन,
पढ़ो पढ़ो का तनाव।
हरफन मौला बनाने
अतिरिक्त जानकारी
कोच जाने कोसना।
बच्चों के मुँह में हँसी नहीं।
दादा
कीबोर्ड वर्ग जाना है,
क्रिकेट कोच जाना है,
जाना है,जाना है,
उसने क्या जाना है,
दादा को जानने,
दादा के पास बैठ ने समय नहीं।
न जाने वो दिन कैसे,कहाँ गये
पता नहीं,।
स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
No comments:
Post a Comment