नयन निहारें तुम्हें।
नव साहित्य परिवार।
विधा --अपनी शैली अपनी भावाभिव्यक्ति।
मन उस रहा था,
जिंदगी सूख गई।।
मन हो गई उदासी।
संताप मन से समुद्र तट पर,
नयन निहारें, लहर तुम्हें।।
ज्वार भाटा, एक केकड़ा किनारे पर, न जाने किसी पक्षी ने उसे चोंच से पकड़ा,
दूसरी ओर मछुआरे वापस।।
नयन निहारें लहरों को
आसपास के दृश्यों को।।
बड़ी बड़ी मछलियाँ,
तड़प रही थीं नयन
निहारें उन्हें भी।
इत्र तंत्र सर्वत्र हिंसा।
हर जीव दुखी,
हर क्षण प्राण को खतरा।।
मेरी उदासी हुई।
लहरें ! नयन निहारे तुम्हें।
मन की तरंगें उठती रहीं।
नज़र भी घूमने लगी।
लहरें ! नयन तुम्हें देखते रहे।
मन में कई
भावों की लहरें
उठती रही।
स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन।
No comments:
Post a Comment