तमिलनाडु हिंदी साहित्य संगम संस्थान को नमस्कार। वणक्कम।
विषय पर्यावरण संरक्षण
विधा --अपनी शैली अपनी भाषा अपनी भावाभिव्यक्ति।
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भारत भक्ति से ही सुरक्षित।
भक्ति ही त्याग का मार्ग।
भक्ति धारा में एकाग्र चित्त से बहते रहेंगे तो हमारा मन अचंचल बन यह भावना बस जाएगी कि जगत मिथ्या है।
शरीर में बसी आत्म प्राण उड़ जाएँगे।
काम,क्रोध,मंद,लोभ
मानव चरित्र को
पशु चरित्र बना देगा।
हम मानव के गुणों की विशेषता अक्सर पशु-पक्षियों की तुलना में करते हैं। सिंह की चाल,बाज की दृष्टि, लोमड़ी की चालाकी,
भेडिये की क्रूरता,
नेवले की पकड़,
मगरमच्छ आँसू,
हाथी का बल,
नाग- सा बदले लेने की भावना,
साँप सा विषैला,
मृगनयनी,कमल नयन,
कोकिलवाणी,
स्वर्ण लता, कोमलवल्ली,
कुत्ते की कृतज्ञता,
मीन लोचनी,
बगुला भगत।
नदी पेड़ समान निष्काम जीवन,
मधु मक्खी समान परिश्रम,
चींटी सा कतार बंद अनुशासन,
कामधेनु ।
सिंहवाहिनी,
ऋषभ देव,
मयुरवाहन,
मूशिकवाहन,
गरुड़ वाहन।
सभी गुणों से मानव सुरक्षित और मिश्रित
मोम पत्ती सा त्याग,
तब तो मानव को सभी आहार,पानी,हवा,
प्रकाश,कायाकल्प,
जडी बूटियाँ प्रकृति से ही संभव है तो
हमें अपने पर्यावरण का संरक्षण सतर्कता से करना चाहिए।
प्राकृतिक संरक्षण के लिए ही ऋषि मुनि साधु संत, वन भोज,वनदर्गा,कापाली आदमखोर जानवर,जटिबूटियाँ
मंदिर आश्रम सब बने,बनाये,बनवाते।
पर स्वार्थ मानव
अपनी अस्थाई जिंदगी के ईश्वर सृष्टित सुंदर डरावने जंगल ,पशु,पक्षी ,नदी,नाले झील सबके विनाश में लगा है।
ये सभी योजना
बनाने वाले बड़े बड़े अभियंता, स्वार्थ भ्रष्टाचारी रिश्वतखोरी
राजनीतिज्ञ, प्रशासक अधिकारी,शिकारी, मांसाहारी।
जनसंख्या निरोधक बड़े पापी धूल, कुरान, बाइबिल तीनों में नसीहतें हैं।
पर्यावरण संरक्षण नहीं करेंगे तो भावी पीढ़ी
दाने दाने के लिए,
पानी की बूंदों के लिए
तडपेंगी इसमें कोई शंका नहीं है।
कारखाना, शहरीकरण,
नगरविस्तार आदि शैतानियों की शक्ति का कुप्रभाव है जिसके संबंध में ही
कहानी "चैन नगर के चार बेकार".
कहानी का अंत पहले नगर में अमन चमन,एकता, प्रेम, भाईचारा, सहानुभूति,मानवता,
सत्य, ईमानदारी, वचन का पालन आदि दिव्य गुण थे, शैतान की कुदृष्टि पड़ते ही डकैती,चोरी,खून,
बेरहमी आदि बढ़ गये।
पहले परीश्रमी सुखी थे,अब बेकार सुखी,
मेहनती दुखी,भूखे।
अतः विचार प्रदूषण,
पर्यावरण प्रदूषण आदि का संरक्षण अनिवार्य है।
पैसे वकील को खूनी की रिहाई में,ठेका रिश्वत से, नौकरी जाति के आधार पर,
आजादी के सत्तर साल के बाद भी वोट के लिए पिछड़ी ,अति पिछडीऔर आदिवासी
सूची बढ़ाना,शिक्षक अमीरों का गुलाम बनना,
अस्पताल के लूट,
पुलिस का रिश्वत में
सब विचार प्रदूषण ।
विचार प्रदूषण
सभी प्रदूषणों के मूल हैं।
स्वरचित, स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै ।तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
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