नमस्ते वणक्कम।
साहित्य संगम संस्थान।
तेलंगाना इकाई।
२-३-२०२१
सजना ,पति,
सजना सजाता है,
बार बार सजाना पड़ता है।
शब्दों का श्रृंगार,
भेंट का श्रृंगार।
पति तो बनावट श्रृंगार नहीं,
पति सहज क्रिया तो
सजना बनावटी श्रृंगार।।
पति आजीवन बंदी,
सजना अस्थाई बंधन तोड़ने ,
छोड़ने की संभावना।
सजना धन, शारीरिक ,
शंकाओं से भयभीत बुजदिल।
पति तो मानसिक बंधन।
स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
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