नमस्ते वणक्कम।
प्रणेता साहित्य संस्थान, दिल्ली।
11-3-2021.
भक्त और भक्ति।
विधा गद्य ।
भारत आध्यात्मिक भूमि है।
भक्ति केंद्रित देश।
जीविकोपार्जन मंदिर केंद्रित।
परिणाम भक्ति भी एक उल्लास यात्रा जैसा बदल गया।। घंटों यात्रा कर बिजली दर्शन करते हैं। न भगवान के नाम का नारा,न भजन ।
मैं रेल में काशी यात्रा चेन्नई से निकला।सभी भक्त।पर किसीने हर हर महादेव का नारा न लगाया। मैं उन सब के संवाद पर ध्यान मग्न बैठा था।
बनारसी ठग का शब्द सुना है।
इनके संवाद में भक्ति से ज़्यादा ठहरने की जगह,
बढ़िया तमिलनाडु खाना न मिलेगा, अपने पूर्वजों की आत्म शांति की क्रियाएँ,
काशी के आसपास के दर्शनीय स्थल,वापस आने की तारीख।
बाह्याचार बाह्याडंबर ही ज्यादा। भक्ति कम।।
मुझे कबीर के पद याद आयी।
मन तुम नाहक दुंद मचाये। करी असनान छुवो नहीं काहू , पाती फूल चढ़ाये।
मूर्ति से दुनिया फल माँगे, अपने हाथ बनाये।यह जग पूजैदेव–देहरा, तीरथ –वर्त–अन्हाये।
चलत –फिरत में पाँव थकित भे , यह दुख कहाँ समाये। झूठी काया झूठी माया , झूठे झूठे झुठल खाये।
बाँझिन गाय दूध नहीं देहै , माखन कहँ से पाए। साँचे के सँग साँच बसत है, झूठे मारि हटाये।
कहैं कबीर जहँ साँच बसतु है, सहजै दरसन पाये।
(मन तू व्यर्थ उलझन में है द्वंद मचा रहा है। फूल पत्ती चढ़ाकर भी कोई आकाश को हाथों से नहीं छु सकता। दुनिया अपने हाथ की बनाई हुई मूर्ति से फल मांगती है और देवी देवताओं की चौखट पूजती है। तीर्थयात्रा पर जाती है , व्रत रखती है और स्नान करती है। इसी चक्कर में चलते चलते पाँव थक जाते है यानी असली ईश्वर का ध्यान करने के बजाय हम कर्मकांडों पे अपना समय गवाते है और उसे भूल जाते है। आखिर यह दुख कहाँ समाएगा। ये काया भी झूठी है और संसार की माया भी झूठी है। हम व्यर्थ ही जूठन खाते फिरते है। बाँझ गाय जब दूध ही नहीं देगी तो मक्खन कहाँ से मिलेगा? सच्चे के साथ सच्चा ही बसता है, झूठे को भगा दो। कबीर कहते है की जहां सत्य का वास है वहां ईश्वर के दर्शन सहज हो जाते हैं।--पाखंडी)
मन चंगा तो कठौती में गंगा।।
दिखावे की भक्ति से कोई लाभ नहीं. )
मन चंगा तो कठौती में गंगा।
स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक
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