Monday, March 1, 2021

हम सफ़र

 नमस्ते वणक्कम।

साहित्य संगम संस्थान उड़िया इकाई

हम सफर  

ग़ज़ल।

 हमसफ़र में   हम कब तक।

 बेटी  होती तो शादी तक।

 आजकल बेटा होता तो

   स्थानीय व्यापार न तो

 नौकरी मिलते तक।

 पता नहीं  हम

 सफर कब तक। 

बार बार यही शीर्षक ।

 कल्पना नयी नयी।

  हम सफर 

अर्द्धांगिनी के अर्थ में

भाग्य वानों को ही

 आधुनिक समाज में।

चैन की जिंदगी।

 हमारे वीर जवान के परिवार त्याग , 

देशवासियों की चैन नींद,

हम सफर उनका अलग।।

धूप में, वर्षा में बर्फीले प्रदेश में

  हम सफर की आँखों में आँसू नहीं, शत्रु की प्रतीक्षा।

 हमसफ़र  रहित साधु संत।

यही जीवन,

हम सफर बदलते रहते।

पंद्रह साल की उम्र तक,

जवानी में  ,प्रोढावस्ता में

 बुढ़ापे में  हमसफ़र के

 विचारों में परिवर्तन।

अंत में अकेला सफर कफ़न ओढ़कर, यही से जीवन।

स्वरचित स्वचिंतक अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

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