Monday, March 15, 2021

चित्र लेखन दो नारियाँ बैल

 नमस्ते वणक्कम।

शब्दाक्षर साहित्यिक संस्था

सोमवार कार्यशाला।१५-३-२०२१.

चित्र लेखन।

 बैल बनी दो नारियाँ,

 किसान बना हलधर।

 जो उगाता 

अन्यों के पेट भरने।।

 खुद खाता 

रूखा सूखा।।

 मालिक के घर में

 अनाजों का ढेर।।

  महलों में मालिक।

  बेगार खेती मज़दूर।

 आजादी के बाद हालत 

 सुधरने के बदले,

 और भी हुई दशा बुरी।।

औद्योगिकीकरण शहरीकरण के नाम

  खेती की भूमि बनी आवास, कारखाना, कालेज।।

 नदी के रेत खाली,

 झीलें , तालाब,नहर नाले सूखते,

है तो गंदे विषैले कारखाने बदबू पानी मिश्रित।।

 कृषी प्रधान समृद्ध भूमि,

पेय विदेशी, पूँजी विदेशी, महँगाई अधिक।।

किसान बेचारा,

 दलालों  और दूकानदार 

 अति सुखी।।

 गाँव में काम करने जवान नहीं,सब के सब शहर में बने मज़दूर।।

  सद्यःफल पाने शैतानों का नजर,

  दलाल संपन्न , 

 भावी पीढ़ी  दाने दाने के लिए तरसेगी।।

 कार,बंगला, 

चाँदी की चिड़िया,

 भूख  मिटाने काम न आएँगे।।

 जय जवान! जय किसान!! का नारा  न बुलंद गूँजेगा तो 

 भूमि सूखा,

 पेट में चूहा दौड़ेगा।।

 स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन, चेन्नै


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 तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

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