नमस्ते वणक्कम।
कलम बोलती है।
पैसे हैं पर मेरी जवानी न रोक सका।
पद हैं, अधिकार है,अंग रक्षक है,
पर न किसी नेता को अमर न रख सका।।
मुझे न चाह है धन का।
अतः धन का न कोई प्रयोजन।
मच्छर से बचने मच्छर जाल।।
पर भावी पीढ़ी की सुख सुविधा के लिए
न वन संरक्षण।।
गंगा के किनारे मिनरल वाटर की बिक्री,
धिक्कार है शासकों को, प्रशासकों को।
हवा खरीदनी होगी।
अब पानी खरीद रहे हैं।
भावी पीढ़ी बूंद बूंद के लिए तरसेगी जान।।
पूर्वजों के पाप का फल
पोते पोतियों पर।
प्रशासक, शासक का
कुकर्म भावी पीढ़ी पर।
कृषी प्रधान देश,
हो रहा है मरुभूमि।।
सावधान! सावधान! सावधान।।
जागो जागो जागो।।
स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
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भगवान की कृपा चाहिए।
उनका अनुग्रह चाहिए।
वही काफी है।
कई नामियों का नाम नहीं,
कई राजा-महाराजाओं के नाम नहीं,
ससम्मान लिया जाता है
दिगंबर साधु संत,ऋषि मुनियों के नाम।
लंगोट धारी रमण महर्षि का नाम।
करोड़पति या रंग,शासक प्रशासक ।
सनातन धर्मी हो ,मुगल हो ,ईसाई हो
शांति प्रद,संतोष प्रदान,आनंद प्रद
सर्वेश्वर नाम,वेद,कुरान,बाइबिल जान।।
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