तिरुवेंपावै --माणिक्कवासकर =मारशीर्ष महीने में कन्याओं द्वारा आत्मा-परमात्मा जागरण
तिरुवेंपावै श्री माणिक्कवासकर .."तिरुवेंपावै "का मतलब है ,श्री कन्यायें तड़के उठकर
नहा-धोकर घरकेद्वार पर रंगोली खींच, भक्ति -श्रद्धा से ईश्वर का यशोगान करती हुई
मंदिर जाने के दार्शनिक चित्र की कविताएँ हैं। इस ग्रन्थ के रचनाकाल के सम्बन्ध में
विभिन्न विचार प्रकट करते हैं। जे। यू। पॉप अंग्रेज़ी तमिलविद्वान के अनुसार ९वीं शताब्दी का ग्रन्थ माना जाताहै।
कुछ लोग तीसरी तो कुछ लोग सातवीं तो कुछ ग्यारहवीं मानते हैं।
तिरुवेंपावै अगजग के सृष्टि कर्ता ,जगतरक्षक के अनुग्रह से
नवशक्तियों के अवतार और उनके जगत
मङ्गल समन्वयक कार्यों की व्याख्या है ।
एक शक्ति दूसरी शक्ति को जगाती है।
कन्याएँ अपनी सखियों को
जगाकरजुल मिलकर स्नान करने जाती हैं।
भगवान को अपनीआत्मा से जगाना ,आत्मा में सुप्त अवस्था में
रहनेवाले भगवान को जगाना ,इन पद्यों का उद्देश्य है।
मनुष्य को दुरमार्गसे सद्मार्ग कीओर ले चलना ,
ईश्वरीय अनुभूति प्राप्त कर परमानंद की स्तिथि पर पहुँचाना।
पहला गीत --
ஆதியும் அந்தமும் இல்லா அருட்பெருஞ்
ஜோதியை யாம்பாடக் கேட்டேயும்
வாள் தடங்கண் ,
மாதே வளருதியோ
நின்செவிதான்
மாதேவன் வார்கழல்கள் வாழ்த்திய வாழ்த்தொலிபோய்
வீதிவாய்க் கேட்டலுமே விம்மி விம்மி மெய் மறந்து
போதார் அமளியின் மேல் நின்று புரண்டுஇங் கண்
ஏதேனும் மாகா ள் கிடந்தாள் என்னே என்ன
ஈதே எந் தோழி பரிசேலோர் எம்பாவாய் .
மாணிக்கவாசகர் .
भावार्थ --हिंदी में --अनंतकृष्णन
हे सखी,
आदी -अंत रहित शिव भगवान के यशोगान
सुनकर भी सो रही हो।
क्या तुम्हारे कान अनुभूति रहित हैं
महादेव के चरण कमलों के यशोगान सुनकर
एक सखी सुधबुध खोकर उठ खड़ी है
तुम तो सो रही हो। विस्मय कीबात है।
तुम उठो ,जागो ,ईश्वर अनुभूति अपनाओ।
भाव है कि आँखें भगवान के दर्शन के लिए हैं।
कान भगवान के यशोगान सुनने के लिए हैं।
ईश्वर की स्तुति करने वालों के साथ न चलकर ,
सत्संग में भाग न लेकर सोना सही नहीं है।
अतः एक आत्मा दूसरीआत्मा को ईश्वरीय चिंतन केलिए ,
परमात्मा की अनुभूति के लिए जगाती है।
---------------------------
तिरुवेंपावै---माणिक्कवासकर -२.
திருவெம்பாவை -மாணிக்கவாசகர்-2
--------+----++--++
अनुवाद -- एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई
---------------------------------------
तड़के सोनेवाली लड़की को जगाते हुए
सखियाँ गाती। हैं
अति खूबसूरत कन्या!
अभी सो रही हो।
रात -दिन शिव से प्रेम और भक्ति करना,
यशोगान कीर्तन, नाम जप तजकर
बिस्तर पर सोने के प्रेम में सोना
उचित है क्या ?
तब एक सखी ने कहा --
छि:!ऐसा उससे मत बोलना!
फिर सखी को जगाते हुए --
हम तो तिल्लैयंबलम् के शिव भगवान के प्रेम पात्र हैं।
हम उसके फूलचरणों पर वंदना करेंगी! जागो।उठो।
सुप्त भक्ति को जगाने की शक्ति हममें है।
वह कहीं से संकेत करेगी। जगानेवाले के संकेत से
जागने वाले
ईश्वर के प्रेम पात्र बनेंगे ।।
तिरुवेंपावै -माणिक्कवासकर -3
सखियाँ मीठी नींद की सखी को जगाती हुई कहती है ----
निष्कपट मुस्कुराहट करने वाली सखी,
तू तो मधुर धुन में शिव स्तुति करने वाली,
आज क्यों किवाड़ भी न खोलें
गहरी नींद में हो?
यह सुनकर सखी कहती है---
मैं तो शिव भक्ति में नयी हूँ,
आप तो शिव के अनन्य भक्ता हैं।
भकति के लगन में आदी हो गयी हैं।
मुझे सुमार्ग दिखाइए।
क्या आप सब को मुझसे सच्चा प्यार है?
तब सखियों ने। कहा --
हम तो तेरी शिव के प्रति के
अनन्य भक्ति जानती -समझती हैं।
सहृदय भक्त विष के नीलकंठ के
कीर्तन अवश्य गाएँगे ही।
हमें भी यशोगान कीर्तन करना है।
अतः
बुला रही हैं। आओ।
मिलकर शिव की
प्रसन्नता के लिए
यशोगान करेंगे।।
तड़के सोनेवाली लड़की को जगाते हुए
सखियाँ गाती। हैं ---
अति खूबसूरत कन्या!
अभी सो रही हो।
रात -दिन शिव से प्रेम और भक्ति करना,
यशोगान कीर्तन, नाम जप तजकर
बिस्तर पर सोने के प्रेम में सोना
उचित है क्या ?
तब एक सखी ने कहा --
छि:!ऐसा उससे मत बोलना!
फिर सखी को जगाते हुए --
हम तो तिल्लैयंबलम् के शिव भगवान के प्रेम पात्र हैं।
हम उसके फूलचरणों पर वंदना करेंगी! जागो।उठो।
सुप्त भक्ति को जगाने की शक्ति हममें है।
वह कहीं से संकेत करेगी। जगानेवाले के संकेत से
जागने वाले
ईश्वर के प्रेम पात्र बनेंगे ।।
=====================================
नमस्ते।वणक्कम।
तिरुवेंपावै-५
माणिक्कवासकर
सखी को जगाती हुई अन्य सखियाँ
कहती हैं --
विष्णु और ब्रह्मा को भी कैलाश नाथ को
समझ सकना दुर्लभ है।
ऐसी वास्तविकता में तुम झूठ बोली कि
मैं कैलाश नाथ को जानती हूँ।
अपूर्व अगजग से अनभिज्ञ परमेश्वर ,
हम सब को नचाने वाले,
सर्वेश्वर के गुण गान सुनकर भी,
अनसुनी करके सो रही हो।
सुगंधित केशवाली तुम कब महसूस करोगी?
जागो।उठो।
ईश्वर को समझना सरल कार्य नहीं है।
उनकी अनुभूति हो जाने पर अज्ञान की नींद टूटेगी।।
तिरुवेंपावै--6
माणिक्कवासकर।
सखियाँ सखी को
जगाते हुई कहती है--
तूने कल कहा था,
मैं खुद ही आकर आपको
जगाऊँगी।
पर तू बेशर्म हो रही है।
सुबह हो गया।
भगवान के यशोगान
हम गा रही हैं,तू तो
आँखें मूंद हो रही हैै !
उठो,भजन में हमारे साथ भाग लो।
तिरुवेंपावै। -7.माणिक्कवासकर
मार्गशीर्षमहीने अति तड़के उठकर
शिव भगवान की स्तुति करने
सब सखियॉँ भगवान के भजन करते हुए
एक सखी को जगाती हुई गाती है ----
सखी ! मंदिर में शिव के बाजा बजा रहेहैं।
शंख ध्वनियाँ और ढोल सुनकर भी सोना क्या उचित हैं।
शिव नाम जपते जपते उठो। सुंदर शिव भगवान
के नाम जपते ही आग लगे मोम समान
तेरा मन पिघल जाएगा।
हमारे भजन सुनकर भी सो रही हो.
तेरी नींद भोली-भाली लडकी -सी है।
आलसी ,नींद बुरे व्यसन मनुष्य के शत्रु है।
तब भगवान संबंधी मधुर सुखात्मक बातें
कान में सुनाई नहीं पड़ती।
--------------------------------
8.सखियाँ शिव वंदना के लिए अन्य सखियों को
जगाती हुई गाती हैं---मुर्गा बांँग रहा है। पक्षी चहचहाते हैं।शंख नाद गूँज रहा है।।
बेजोड़ ईश्वर के बड़प्पन गा रही हैं। क्या ये सब तुम्हारे कानों पर सुनाई नहीं पड़ते। इतनी नींद क्यों? तुम तो भाग्यशाली हो। उठो; दरवाजा
खोलो। ईश्वर का गुण न गाना तेरे लिए। शोभा नहीं है। उमा पति का कीर्तन-भजन करेंगे।
पक्षी भी समय पर जागते हैं। मनुष्य का सोना सही नहीं है।
No comments:
Post a Comment