Sunday, December 27, 2020

धरती।

 नमस्ते वणक्कम।।

शीर्षक -धरती /वसुंधरा/भूमि,

 २८-१२-२०२०

 मेरी मातृभूमि  भारत,

  यहाँ की धरती उगलती सोना। 

 धरती अत्यंत समृद्धिशाली।

 यहाँ कोई ऐसा फल नहीं,

 ऐसा कोई अनाज नहीं,

 जो नहीं उपजती।।

 एक ही मौसम में 

सभी मौसमों का आनंद।

 गर्मी चाहते तो जाओ चेन्नै।

 ठंड चाहते तो जाओ शिमला।

सभी  यहाँ सुखी भोगी।।

सिवा आलसी के,सब सौपन्न।।

कृषी की भूमि यह,  चार बीज बोओ तो

सलाद, पालक उगा सकते हो।

सर्व संपन्न भूमि मेरी, 

आध्यात्मिक भूमि,

ज्ञान भूमि मेरी,

मंदिर की वास्तुकला, मूर्ति कला,

अपूर्व अति अदभुत।

मेरी धरती स्वर्ग की धरती।

मेरे प्राण से प्यारा,अति पुरातन।

स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई

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