नमस्ते वणक्कम।।
२०२० वर्ष का अंतिम दिन।
बीस घंटों में २०२१.
संक्रामक किरीट
विषाणु काल।
बंद नगर बंद।
करोड़ों का साँस बंद।।
बाहर जाने में आतंक।।
जैसा भी हो,
बरवाला फल देता।
तड़के दूधवाला दूध देता।।
तरकारियाँ द्वार पर मिलती।
मार्च से अगस्त तक का आतंक
सितंबर महीने मधुशाला खुलते ही दूर।।
मज्हबी मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर बंद।
बच्चन जी की मधुशाला।
मजहबों के कारण
मानव मानव में नफ़रत।
मानवता नहीं,दया नहीं।
रहम नहीं, भाईचारा नहीं।
मंदिर बंद।।
पाठशालाएँ बंद।
शिक्षितों में नहीं ईमानदारी।।
भ्रष्टाचारी अमीरों को,
पियक्कड़ चालक अभिनेताओं को,
भ्रष्टाचारी नेताओं को, मंत्रियों को
छुड़ाने में वकीलों का हाथ।।
धन साथ न देता जान।।
आज धन है,तन आतंकित,
तन छोड़ प्राण न उड़ जाएँ।
कोराना भय डाक्टरों का लूट।।
मध्य वर्ग से लूट बैंक वाले।
मिनिमम बेलन्स नहीं।
विजय मल्लय्या जैसे लोगों को
सांसद बनने सौ करोड़
देश सेवक कैसे बनते।।
कोराना आतंक फिर भी
स्वार्थ किसानों का बंद।।
२०२० आज के साथ,
अलविदा हो जाेएँ अन्याय।।
२०२१ रोग तन का
रोग मन का धन का स्वार्थ रोग
दूर हो जाएँ।
मनुष्य मनुष्य में नफ़रत फैलानेवाले
मज़हबी कट्टरता दूर हो जाएँ।।
२०२१संतोष प्रद, आनंद प्रद ,शांति प्रद हो जाएँ।।
घर घर में मंगल हो।।
स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई। तमिल भाषी।
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