नमस्ते
वणक्कम।
अभिलाषाएँ अलग अलग।।
अच्छों की अभिलाषा जन कल्याण।।
माखनलाल की अभिलाषा
वीर जवानों की सेवा।।
सनातन धर्म की अभिलाषा
वसुदैव कुटुंबकम्।।
ईर्ष्यालु की अभिलाषा जो नहीं है,
उस के लिए आजीवन रोना।।
प्रेमी प्रेमिका की अभिलाषा
बीच में कोई न आना।
स्वार्थों की अभिलाषा,
खुद जीना सानंद।
आदर्शो की अभिलाषा,
जिओ और जीने दो।।
मनुष्यता की अभिलाषा,
परोपकार करना।।
दूसरों के लिए जीना मरना।।
ईसाई, मुगल मजहबी की अभिलाषा
सिर्फ अपने मजहब ही विश्व में रहें।
सनातन धर्मी यही चाहता,
सर्वे जना:सुखिनो भवन्तु।।
अतिथि देवो भव।।
मेरी अभिलाषा भारतीय भाषाएँ,
अंग्रेज़ी सम बनें।
स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै।
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