स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै।
शीर्षक --बरोठे/आँगन।
मैं हूंँ नगर वासी,
बैठक अति कृत्रिम।
न चारपाई आंगन में।
न निर्मल ग्राम वासी।।
न ताज़ी हवा।
न ताज़ी तरकारियाँ।
न ताज़ा दूध।।
खुली हवा , चार पाई,खाट नहीं।।
गया एक बार नाना के गाँव,
आंगन में ठंडी स्वच्छ हवा।।
भोले भाले किसान।
ग्रामीण वासी,बोली, लोकोक्तियाँ।।
अति सुहावना,अति आनंद।
स्वरचित, स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चैन्नै।
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