Thursday, December 17, 2020

बरोठे/आंगन

 स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै।

शीर्षक --बरोठे/आँगन।

मैं हूंँ नगर वासी,

बैठक अति कृत्रिम।

न चारपाई आंगन में।

न निर्मल ग्राम वासी।।

न ताज़ी हवा।

न ताज़ी तरकारियाँ।

न ताज़ा दूध।।

 खुली हवा , चार पाई,खाट नहीं।।

 गया  एक बार  नाना के गाँव,

 आंगन में ठंडी स्वच्छ हवा।।

 भोले भाले  किसान।

ग्रामीण  वासी,बोली, लोकोक्तियाँ।।

अति सुहावना,अति आनंद।

स्वरचित, स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चैन्नै।

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