नमस्ते। वणक्कम।
चित्र लेखन ।
पुरुषों की भीड़।
अकेली हूँ,पर
अबला मत समझना।
सबला हूं। वीरांगना हूँ।
वारांगना के अभिनय में
बड़े बड़े मंत्री मेरे मोबाइल में।
संस्कृत पढ़ी लिखी पतिव्रता बाद में
पाँचों उंगलियों के नाखून बघनखा समान।।
दाँत मेरे बत्तीस तलवार।
भीड़ आती तो मिर्चचूर्ण
काला मिर्च चूर्ण तैयार।
मैं तो विष कन्या हूं,
कंचुकी में कटार।
मुस्कुराहट,छूने की अनुमति
चूम ,खड्ग कृपाण कटारी
उसके पहले खड्गधारी विषकन्या बन
घुसा दूँगा खड्ग।साथ ही मिर्च चूर्ण।
अंग करोड़ रुपए के दिखा
सांसद, विधायक मुख्यमंत्री बनती रंडियाँ
पांडिचेरी सचिवालय के सामने रंडी मंडप।।
मैं झांसी रानी बनूंँगा,
छूने से पतिव्रता भंग नहीं
कुंती से गया गुजरी नहीं।
चीर फाड़कर कर खंड खंड कर दूँगा।।
मैं वीरांगना विष कन्या ,
भाग कर नहीं मुस्कुराहट में ही
काट दूँगा गुप्तांग।।
आधुनिक नारी हूँ, सावधान।
अबला नहीं,सबला हूँ।।
अंग्रेज़ी पढ़ी लिखी पाश्चात्य सभ्यता
प्राण बचाने का प्रयोग।।
स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै।
तमिलनाडु।
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