Friday, June 4, 2021

वचन की दरिद्रता

 नमस्ते वणक्कम।

साहित्य बोध ।

 विषय  वचन की दरिद्रता।

 विधा

मौलिक रचना मौलिक विधा

___________

१-६-२०२१

--------------+++-

 भगवान ने जीने

मुफ्त में पंचतत्व

पानी,हवा, अग्नि,भूमि आकाश की

 सृष्टियाँ की हैं।

प्राणी जगत को और वनस्पति 

जगत केलिए  एक समान ।।

 इनमें भेदभाव नहीं,

 सब के लिए बराबर।।

 मानव को ज्ञान दिया।

 ज्ञानाभिव्यक्ति करने

 भिन्न भाषाएँ ,भिन्न‌ लिपी।

 ऐसा क्यों पता नहीं।

   इंकित भाषा से बोली।

 शब्द । 

अजब की बात है,

 मातृभाषा बोलने,

जहाँ रहते हैं,वहाँ की भाषा बोलने  

एक शिक्षक की जरूरत नहीं, 

अपने आप ही आ जाता है।

 दक्षिण भारत से उत्तर भारत में 

रहनेवाले हिंदी सरलता से ही बोलते।

वैसे ही तमिल नाडु आते 

कर्मचारी तमिल बोलते।

अमेरिका में मेरा पोता 

 मातृभाषा और अंग्रेज़ी ध

ड़ाधड़ बोलता जान।।

  तब मधुर बोली बोलने में कंजूसी क्यों?

 भगवान सुखी रखें।

 आशीष में है आनंद।

 भगवान सर्वनाश करें

 शाप का उल्टा परिणाम।

 विश्वामित्र का तपोबल घट जाता।

एक माँ बोलती ---

 मेरे प्यारे बेटे। 

तुम खूब पढ़ो,फूलों फलों।

 परिश्रम करो, 

भगवान पर विश्वास रखो।

सर्वसंपन्नवान बनो।


 दूसरी माँ बोलती 

 ऐसे

अपशकुन शब्द :

 हरे नालायक गधा।

 नपढोगे तो भीख लेना पड़ेगा।

 दरिद्र बनोगे।

 तथास्तु भगवान ऊपर।

 ऐसा ही हो 

कहने पर बस ।

बेटे के मन में तनाव।

 भगवान ने मुफ्त में

 शब्दभंडार दिया है।

 कंजूसी क्यों।

 बुद्ध महावीर  ऋषि-मुनियों ने

 अपने उदार मधुर बोली से

 समाज को सुधारा है।

कठोर निर्दयी डाकू ,

क्रूर अत्याचारी शासक

उदार  दानी बने हैं।

 बोली में दरिद्रता नहीं,

 बोली में उदारता,

मधुर आशीष वचन

 आसपास के वातावरण में ही नहीं,

अड़ोस पड़ोस को भी

सुखी और दोस्ती बढ़ाने में समर्थ।।

  कठोर वचन से 

आत्मसंतोष खो देते।

 मधुर वचन में 

आत्मसंतोष

आत्मानंद।

 शुभ शब्दों में उदारता,

अशुभ शब्दों में कंजूसी।

 वहीं जीवनानंद जान।।

 स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

No comments: