नमस्ते वणक्कम।
तमिलनाडु साहित्य संगम संस्थान इकाई।
१५-६-२०२१.
मैं अपना वैराग्य तज
वैराग्य जैसा भी हो
भले ही प्रसव हो,
श्वान हो,प्रसव हो,
चाँद छिपे बादल सा,
मेरी अभिव्यक्ति छिप रही।
अब न जाने स्वैच्छिक
हवा बही, बादल हटे।।
हर एक की जिंदगी में बादल
छिपे चाँद -सा कौशल।
अनुकूल वातावरण में चमकता है जैसे
गायिका भिखारिन का भाग्य चमका।
भूमि में छिपी सीता माता की चमक,
जनक के हल हवा से चमकी।
लहर तालाब में फेंका शिशु
छिपा ज्ञान का चाँद
सत्संग की हवा से चमका।
सीपी में छिपा मोती चाँद
गोताखोर की साहसी डुबकियों से बाहर चमका।
हर क्षमता
बादल में छिपे
चाँद -सा,
अनुकूल हवा में चमकता जान।।
गडरिए के हाथ में मिला कोहिनूर,
राजा की दृष्टि की हवा से
खुलकर अगजग में चमका।।
सिद्धार्थ में छिपे ज्ञान का चाँद
कठोर तपस्या हवा से चमकी।
चमकने चाहिए अनुकूल हवा।
सबहिं नचावत राम गोसाईं।।
स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
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