समतावादी कलमकार शोध संस्थान,भारत
नमस्ते वणक्कम।
7-6-2021.
मौलिक रचना मौलिक विधा।
निज रचना निज शैली।
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जल है तो कल है।।
जलन सूरज का न तो
भाप नहीं, वर्षा नहीं।
वनस्पति नहीं,
जीना मुश्किल।
जलहीन मानव ,
वनस्पति,पशु पक्षी,
सूख जाते हैं,
प्राण पखेरु उड़ाते हैं।
कल न चलेगा,
जल विद्युत असंभव।
कारखाना भी बस,
चलेगा नहीं।
रूखी सूखी भूमि है बंजर।।
जल है तो कल है।।
शरीर गर्म है तो जिंदा,
ठंडा है तो शव।
जल है तो कल है।
स्वरचित स्वचिंतक
एस. अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
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