नमस्ते वणक्कम।
साहित्य बोध ।
दांपत्य तकरार।
मौलिक रचना मौलिक विधा।
४-६-२०२१.
दांपत्य जीवन में
रूप न तो आनंद नहीं।
रूप और वियोग
भारतीय संस्कृति में प्रधान।
बेटी की बिदा,
मायके में
वियोग विराहवस्था फिर मिलन।
उसमें अपूर्व आनन्द।
प्रसव काल में पत्नी मायके में
पति दाढ़ी बढ़ाकर सात महीने
बेटी या बेटी की प्रतीक्षा में,
सातवें महीने के मिलन
तकरार में अतुलित आनंद।
मिथ्या तकरार
दक्षिण ध्रुव उत्तर ध्रुव।
फिर चिपकना चुंबक समान।
पर तलाक का तकरार,
कामांध में पराया संबंध,
जितेंद्र या संयम खोना,
दांपत्य तकरार दुखप्रद।।
सहना,अहंरहित रूठ
यकीनन मानिए स्वर्ग सुख।
थोड़ी देर स्पर्श का अवरोध रूठ गाली मिलन
अति संतोष जान।।
स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
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